अपनी असफलताओं से निराश न हों…

अपनी असफलताओं से निराश न हों…

 

आदमी को सुख भी चाहिए, सुविधा भी चाहिए, सत्ता भी चाहिए और शक्ति भी चाहिए। इन सबके लिए प्रयास करना चाहिए क्योंकि इन सबके बिना भी जिंदगी पूरी नहीं होती। अभाव में जीना भी कोई अच्छी बात नहीं है।

जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं से आप मुंह नहीं मोड़ सकते लेकिन इंसान जो चाहता है वह उसे मिल नहीं पाता और जो मिलता है उससे उसकी कामनाओं का मेल नहीं होता। फिर आदमी को घोर निराशा होती है, रोने के सिवाय कुछ नहीं बचता। एक ही जगह पड़े रहने को मन करता है।

निराशा की स्थिति में ज्यादा अकेले नहीं बैठना, काम से जुड़े रहना। आपके मस्तिष्क और शरीर को ऑक्सीजन की बहुत जरूरत है। 5-10 मिनट व्यायाम करो, संगीत सुनो और न भी कुछ आए तो हाथ-पांव हिलाओ। भले ही दरवाजा बंद करके हिलाना क्योंकि जो तरंगें आपको हिलाती हैं, वे आपकी निराशा को तोड़कर जाती हैं।

थोड़ा बच्चों के साथ बैठिए, पंछियों की उड़ान को देखिए, बहते हुए झरने को देखिए, सागर के किनारे जाकर खड़े होइए, सागर की लहरों को देखिए। निराशा की गुफा से बाहर निकलने की कोशिश नहीं करोगे तो कभी भी डिप्रैशन से पार नहीं पा पाओगे। शरीर को अच्छी खुराक दो, ताजे फल और हरी सब्जियां खाओ। साथ ही थोड़ा पसीना भी जरूर बहाएं। खुलकर हंसने की कोशिश करें, संगीत में रुचि पैदा करें तो डिप्रैशन आपके ऊपर हावी नहीं होगा।

हिन्द वतन समाचार की रिपोर्ट…