भय एवं चिंता से मुक्ति का उपाय…

भय एवं चिंता से मुक्ति का उपाय…

 

प्राकृतिक ऊर्जाओं को दिशाओं के माध्यम से प्राप्त करने के ज्ञान को वास्तुशास्त्र कहते हैं। दिशाओं के माध्यम के द्वारा परिवर्तन लाना संभव है। ऊर्जाओं को दो नाम से जाना जाता है-सकारात्मक और नकारात्मक। दिशाओं के दूषित होने से नकारात्मक ऊर्जाएं अपना अधिपत्य जमा लेती हैं। डर, भय, चिंता, अस्वस्थता अनेक प्रकार के कुप्रभाव हमें प्राप्त हो जाते हैं। सकारात्मक ऊर्जाएं आपके जीवन को संवार देती हैं। होश और जोश आपके साथ रहता है। मानव निडर होकर कार्य कर सकता है।

परिस्थितियों का सामना करने का साहस या शक्ति हमेशा उनके पास रहती है। शास्त्रों में ऐसे नियमों का उल्लेख है कि भूखंड, मकान, बंगला, दुकान फैक्ट्री के ईशान एवं नैऋत्व दूषित हो, छटे हो, विकासग्रस्त हो वहां पर डर, भय, बीमारियां अपना डेरा डाले रहती हैं। हर समय, हर परिस्थिति में भूखंड के दोष का निवारण या स्थान परिवर्तन संभव नहीं होते। वहां पर परिस्थितां बिगड़ती जाती हैं। सुजान पुरुष विध्दानों की दिशा-निर्देशों का पालन करते हुए अपने को सुखी एवं समृध्द बना सकता है। फिल्म शोले में अमजद खान ने गब्बर (डाकू) का रोल किया था। इस फिल्म में उनका डालयॉग था-जो डर गया, समझो मर गया डरने वालों की मौत पल-पल होती रहती है।

मेरे लेख लिखने का मुख्य उद्देश्य हर परिस्थितियों में मनुष्य को डर और चिंताओं से बचना चाहिये। चिंता से ही डर की प्राप्ति होती है। डर से मन में कमजोरियां आती हैं। चिंता से नींद नहीं आती। नींद की कमी से मानसिक तनाव आता है एवं कई रोग आपके इर्द-गिर्द आकर खड़े हो जाते हैं। मस्तिष्क के तनाव के कारण रोगों का आक्रमण दुश्ननों की तरह शुरू हो जाता है। जिसको जहां मौका मिलता है, वहीं अपना अस्तित्व दिखाना चालू करता है।

चिता और चिंता में इतनी ही फर्क है, चिता एक बार मानव शरीर को जलाती है और चिंता चैबीस घंटा आपको जला-जलाकर अस्त-व्यस्त कर देती है। एक परिवार के दो भाईयों पर एक केस दर्ज हुआ। पुलिस दोनों परिवारों के घर पर पूछताछ करने गयी। सहयोग ऐसा कि दोनों ही घर पर नहीं मिले। संध्या के समय घर में आने पर परिवार ने जानकारी दीं। छोटा भाई तुरंत पुलिस स्टेशन पहुंच गया, अधिकारी से मुलाकात की एवं घर पर आने की जानकारियां प्राप्त की। पूछताछ पूरी कराकर घर लौट चैन की नींद सो गया। दूसरी ओर बड़े भाई ने सोचना शुरू किया, मेरे यहां पुलिस क्यों आई, अगर मुझे पकड़ कर ले जाएगी तो मेरी बेइज्जती हो जाएगी, मैं अपने रिश्तेदारों से राय मांगूंगा तो वे क्या सोचेंगे, मैं क्या करुं इस चिंता में घर में रात में सोना बंद कर दिया।

आफिस जाना बंद कर दिया। सिर्फ खाना खाने आते थे। मौका-बेमौका घर में आते थे, दरवाजे की घंटी सुनते ही बाथरूम में भाग जाते थे। इसी तरह 15 दिन निकल गये। संयोग से छोटे भाई ने बड़े भाई को अपने घर निमंत्रण दिया। सभी परिवार शामिल हुए। दुःखी आदमी की शक्ल दूर से पहचान में आती है। भाई ने अपनी भाभी से पूछा क्या बात आप सब इतने परेशान क्यों नजर आ रहे हो? भाभी ने डरते-डरते सब बातें बताई। सुनते ही भाई के चेहरे पर हंसी आ गयी। भइया को बोला मेरे साथ पुलिस स्टेशन चलिये। मैं, जिस दिन पुलिस आयी थी, उसी दिन जाकर आ गया था। आप भी चलिए और पूछताछ करवा आइये। दोनों भाइयों में क्या फर्क है। एक डरता है, एक डटकर परिस्थितियों का सामना करता है। आप इन दोनों में क्या बनना चाहते हैं। यह आप पर निर्भर करता है।

चिंता से बचने का एक ही उपाय है। सीधा और सरल, बगैर पैसे का, ढेला न खर्च हो, अंटी का सब काम हो जाए। सभी डर और चिंताओं को परमपिता पिता परमेश्वर को समर्पित कर दीजिए। आप चिंता मुक्त हो जायेंगे। हर मुश्किलें आसान हो जायेगी। व्यापार अपने तीर्व गति से चलने लगेगा। क्योंकि आपने समर्पण कर दिया। समर्पण की शक्ति एक सैनिक से पूछिए कि समर्पण के बाद वो देश पर मर मिटने को तैयार रहता है। एक भक्त से पूछिये समर्पण क्या होता है, उसका जवाब आपको यही मिलेगा, समर्पण के बाद चिंता मुक्त हो गया, स्वस्थ हो गया, मस्त हो गया। इसका मुख्य कारण क्या है। उसने परमपिता परमात्मा को अपना अभिभावक बना लिया है। बंदर से आप जब डर कर भागते हैं, आपके पीछे-पीछे भगता है। आप तनकर खड़े हो जाते हैं, बंदर भाग जाता है। डर भी बंदर की तरह ही है। विवेक और पुरुषार्थ की शक्तियों के साथ तन कर खड़े हो जाइये। डर और चिंता भाग जायेगी।

हिन्द वतन समाचार की रिपोर्ट…