खबर का असर…सेवा विस्तार प्रकरण में लखनऊ नगर निगम के बाबू की जांच के आदेश…
पूरी नौकरी कर फिर सेवा विस्तार को आतुर था लेखाकार…
कोरोना काल में सेवा विस्तार की हो रही थी तैयारी…
लखनऊ/उत्तर प्रदेश:- कोरोना संकट के दौर में भरपूर नौकरी कर फिर से सेवा विस्तार के लिए जुटे लखनऊ नगर निगम के बाबू (लेखाकार) की कोशिशों को झटका लगा है। निगम के लेखाकार सत्येंद्र कुमार सिंह की सेवा विस्तार के लिए की जा रही कारगुजारियों की खबर प्रकाशित होने के बाद मामले की जांच के आदेश दे दिए गए हैं। लखनऊ नगर निगम के नगर आयुक्त इंद्रमणि त्रिपाठी ने अपर नगर आयुक्त से इस मामले की जांच करने को कहा है। अब अपर आयुक्त अमित कुमार से लेखाकार सत्येंद्र कुमार सिंह के सेवा विस्तार के लिए चलाई गयी फाइल पर बिंदुवार आख्या मांगी गयी है।
गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश के मुखिया योगी आदित्यनाथ ने विशेष परिस्थितियों को छोड़कर सेवा विस्तार देने पर रोक लगा रखी है। इसके बावजूद लखनऊ नगर निगम के लेखाकार को सेवा विस्तार दिलवाने के लिए कोरोना संकट के इस दौर में भी दिन रात एक कर पसीना बहाया जा रहा था। लेखाकार सत्येन्द्र कुमार सिंह को सेवाविस्तार दिलाने के लिए लखनऊ नगर निगम से लेकर मुख्यमंत्री कार्यालय तक लिखा-पढ़ी की जा चुकी थी।
गौरतलब है कि सत्येंद्र कुमार सिंह जो मूलतः लेखाकार हैं लेकिन बरसों से लखनऊ नगर निगम में बजट सील का काम देख रहे हैं, जो एक मलाईदार जगह मानी जाती है। इनकी सेवानिवृत्ति इसी माह 31 मई को होनी है। इसके पहले ही बाकायदा शासन की ओर एक पत्र नगर आयुक्त को भेजा गया था जिसमे सत्येंद्र कुमार सिंह के सेवाविस्तार के लिए यथोचित कार्यवाही के लिए लिखा गया है। इस पत्र में सुसंगत नियमों और शासनादेशों के अधीन कार्यवाही करने को कहा गया था। इस पत्र की जानकारी होने पर मीडिया से लेकर नगर निगम में इसको लेकर चर्चा शुरू हो गयी।
नगर निगम के एक अफसर नाम न छापने की शर्त पर बताते हैं कि सत्येंद्र सिंह का जितना रसूख है, उतना ही विवादों से नाता रहा है। लेकिन कोई भी नगर आयुक्त इस बाबू की राजनीतिक पहुँच के चलते उसकी विभागीय ताकत में कटौती करने में नाकाम रहा। इस बाबू ने अनुचित ढंग से नगर निगम से कई विभागीय लाभ भी लिये। पहले तो 58 साल की उम्र में सेवानिवृत्ति में होने वाले लाभ का फायदा उठाया और सेवानिवृत्ति भी नहीं ली और अपनी 60 साल की न केवल नौकरी की बल्कि सेवाविस्तार का भी प्रयास शुरु कर दिया।
उक्त लेखाकार के कारनामों में सबसे गजब यह रहा कि उसने गोमतीनगर के पॉश इलाके विराम खंड 3 में अपने पिता के नाम पर एक मार्ग का नामकरण कर दिया, जहां इनका खुद आवास है। जबकि इनके पिता न तो लखनऊ के निवासी थे और न ही उनका सामाजिक जीवन में कोई योगदान है। इसको लेकर विवाद भी हुआ लेकिन रसूख के आगे पूरा नगर निगम नतमस्तक हो गया।
पत्रकार आशीष अवस्थी की रिपोर्ट…