फुटवियर कारोबारी बोले- गरीबों के पैरों से चप्पल निकालने की हो रही कोशिश…
बढ़ी जीएसटी वापस ले सरकार…
नई दिल्ली, 7 अप्रैल। राष्ट्रीय राजधानी में देश के प्रमुख जूता चप्पल निर्माताओं और व्यापारियों के संगठनों के पदाधिकारी जुटे तथा वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) में की गई ढाई गुना बढ़ोत्तरी को वापस लेने की पुरजोर मांग की। कहा कि किसी प्रकार पहने गए गरीब लोगों के पैरों से चप्पल निकालने की कोशिश हो रही है। यह ठीक नहीं है, टैक्स बढ़ने से जूते चप्पलों के दाम में बढ़ोत्तरी हुई है। इससे फुटवियर उद्योग संकट में है। संसद भवन के नजदीक कांस्टीट्यूशन क्लब में आयोजित पत्रकार वार्ता में आगरा, बहादुरगढ़ समेत देश के प्रमुख जूता चप्पल हब से प्रमुख लोगों ने अपनी चिंताएं रखी।
फुटवियर में बीआईएस की अनिवार्यता को भी अव्यवहारिक बताया, क्योंकि चप्पलों की खरीद 50 से 100 रुपये में ही खरीदता है। कई लोगों के पास यह भी स्थिति नहीं है कि ये सस्ते चप्पल। ही खरीद सकें। ऐसे में व्यवस्थाएं व्यावहारिक हो और देशवासियों की जेब को देखकर हो। देशभर के व्यापारियों और उद्यमियों को आवाज बनते हुए कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) और इंडियन फुटवियर एसोसिएशन (आइएफए) ने आयोजित पत्रकार वार्ता में केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण से आग्रह किया कि 31 दिसंबर से पूर्व के अनुसार 1000 रुपये से काम कीमत वाले फुटवियर पर जीएसटी करदर पांच प्रतिशत ही रखी जाए तथा उससे ऊपर की कीमत वाले फुटवियर पर कर दर 12 प्रतिशत रखी जाएं।
वहीं, दूसरी ओर दोनों कैट एवं आईएफए ने केंद्रीय वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल से भी आग्रह किया कि वे 1000 रुपये से ऊपर के फुटवियर पर ही बीआईएस स्टैंडर्ड को लागू करें। अपने इस आग्रह पर दोनों संगठनों ने तर्क दिया कि देश की लगभग 85 प्रतिशत आबादी 1000 रुपये से कम कीमत के फुटवियर इस्तेमाल करती है और इसलिए जीएसटी कर की दर में कोई भी वृद्धि की मार सीधे देश के 85 प्रतिशत लोगों पर पड़ेगी और चूंकि 90 प्रतिशत फुटवियर का उत्पादन बड़े पैमाने पर छोटे और गरीब लोगों द्वारा किया जाता है या घर में चल रहे उद्योग एवं कुटीर उद्योग में किया जाता है, इस वजह से भारत में फुटवियर निर्माण के बड़े हिस्से पर बीआईएस मानकों का पालन करना बेहद मुश्किल काम है।
इस संबंध में कैट एवं आईएएफ ने वित्त मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण के अलावा सभी राज्यों के वित्त मंत्रियों को फुटवियर पर 5 प्रतिशत जीएसटी टैक्स स्लैब रखने के लिए अपने ज्ञापन भेजे हैं। कहा कि ये दोनों कदम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आत्मनिर्भर भारत और मेक इन इंडिया आह्वान को सशक्त बनाएंगे।
भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा फुटवियर निर्माता है। पूरे भारत में फैली 10 हजार से अधिक निर्माण इकाइयां और लगभग 1.5 लाख फुटवियर व्यापारी 30 लाख से अधिक लोगों को रोजगार दे रहे हैं जिनमें ज्यादातर फुटवियर बेहद सस्ते और पैरों की सुरक्षा के लिए बनाए जाते हैं। मकान और कपड़े की तरह फुटवियर भी एक आवश्यक वस्तु है जिसके बिना कोई घर से बाहर नहीं निकल सकता है इसमें बड़ी आबादी घर में काम करने वाली महिलाएं, मजदूर, छात्र एवं आर्थिक रूप से कमजोर और निम्न वर्ग के लोग हैं । देश की 60 प्रतिशत आबादी 30 रुपये से 250 रुपये की कीमत के फुटवियर पहनती है वहीं लगभग 15 प्रतिशत आबादी रुपये 250 से रुपये 500 की कीमत के फुटवियर का इस्तेमाल करती और 10 प्रतिशत लोग 500 रुपये से 1000 रुपये तक के जूते का उपयोग करते हैं। शेष 15 प्रतिशत लोग बड़ी फुटवियर कंपनियों अथवा आयातित ब्रांडों द्वारा निर्मित अच्छी गुणवत्ता वाली चप्पल, सैंडल या जूते खरीदते हैं।
कैट के राष्ट्रीय महामंत्री प्रवीन खंडेलवाल ने कहा कि जीएसटी कर स्लैब में 5 प्रतिशत की वृद्धि भारत के फुटवियर उद्योग और व्यापार के लिए प्रतिकूल साबित होगी। सात प्रतिशत की इस तरह की वृद्धि देश में जूते की खपत देश के 85 प्रतिशत आम लोगों पर सीधे रूप से पड़ेगा जो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के गरीब तबके को आसान आजीविका प्रदान करने के संकल्प के खिलाफ होगा। क्योंकि फुटवियर में बड़ी संख्यां में छोटे व्यापारियों ने कंपोजिशन स्कीम का विकल्प चुना है इसलिए वे इनपुट टैक्स क्रेडिट नहीं ले पाएंगे और इस तरह फुटवियर की कीमत में सात प्रतिशत का टैक्स और जुड़ जाएगा। फुटवियर पर कर की दर बढ़ाने का मकसद उल्टे कर ढांचे को हटाना था तथा उपरोक्त आंकड़ों से पता चलता है कि इसका लाभ केवल 15 प्रतिशत बड़े निर्माताओं और आयातित ब्रांडों को ही होगा जबकि शेष 85 प्रतिशत फुटवियर से संबंधित व्यापारी एवं निर्माता पर यह अतिरिक्त भार साबित होगा। इसलिए कैट एवं आईएएफ ने आग्रह किया है की फुटवियर पर पांच प्रतिशत से अधिक जीएसटी कर की दर नहीं लगाई जानी चाहिए।
आईएफए के राष्ट्रीय अध्यक्ष रवींद्र गोयल और महासचिव सौरभ बैराठी ने कहा कि भारत में फुटवियर के निर्माण में क्योंकि 85 प्रतिशत निर्माता बहुत छोटे पैमाने पर निर्माण करते हैं एवं निर्माण की बुनियादी जरूरतों से भी महरूम हैं इसलिए उनके द्वारा सरकार द्वारा फुटवियर के लिए निर्धारित बीआईएस मानकों का पालन करना असंभव होगा। साधू संतों की खड़ाऊं,पंडितों द्वारा उपयोग की जाने वाली निम्न गुणवत्ता वाली चप्पल, मजदूरों द्वारा पहने जाने वाले रबड़ और प्लास्टिक के निम्न गुणवत्ता वाले फुटवियर पर क्या बीआईएस मानकों का पालन संभव है, इस पर विचार करना बहुत जरूरी है।
इन मानकों का पालन केवल बड़े स्थापित निर्माताओं या आयातित ब्रांडों द्वारा ही किया जा सकता है। भारत विविधताओं का देश है जहां गरीब तबके, निम्न या मध्यम वर्ग, उच्च मध्यम वर्ग और उच्च वर्ग के लोगों के विभिन्न वर्ग अपनी आर्थिक क्षमता के अनुसार विभिन्न प्रकार के फुटवियर पहनते हैं, ऐसी परिस्थितियों में केवल एक लाठी से सबको हांकना फुटवियर उद्योग के साथ बड़ा अन्याय होगा। इसलिए केवल रुपये 1000 से अधिक की कीमत पर ही बीआईएस के मानक लागू होने चाहिए।
हिन्द वतन समाचार की रिपोर्ट…