गंभीर अवस्था में बच्ची को लेकर घंटों भटकते रहे बेबस पिता, आखिरकार मां की गोद में टूट गई सांसें
फरीदाबाद:-। फरीदाबाद के बीके अस्पताल में डॉक्टर और स्टाफ की बेरहमी और बड़ी लापरवाही सामने आई है। बल्लभगढ़ सरकारी अस्पताल से रेफर होकर बीके अस्पताल पहुंचे एक पिता को अपनी बच्ची के इलाज के लिए इधर-उधर भटकना पड़ा। लेकिन अस्पताल में उसे यह बताने वाला कोई नहीं मिला कि एंबुलेंस व पंजीकरण के लिए किस काउंटर पर जाना है। इससे परेशान होकर वह अपनी बेटी और पत्नी के साथ इमरजेंसी के बाहर पार्क में बैठ गए। इसके बाद बीके अस्पताल स्टाफ ने
सफदरजंग अस्पताल के लिए रेफर कर दिया। वहीं शनिवार को इलाज में देरी होने से सात वर्षीय बच्ची ने अपनी मां की गोद में दम तोड़ दिया। इसके बाद भी अधिकारियों के रवैये में कोई सुधार देखने को नहीं मिला। तिगांव निवासी रविंदर राम रविवार को अपनी आठ माह की बेटी रोशनी के इलाज के लिए सिविल अस्पताल बीके की इमरजेंसी में पहुंचे थे। उन्होंने बताया कि बच्ची को उल्टी, दस्त, बुखार की शिकायत है। इमरजेंसी में तैनात डॉक्टर ने रोशनी की नाजुक हालत को देखते हुए उसे दिल्ली रेफर कर दिया और कैनुला लगाकर दवा चढ़ा दी।
रविंदर का आरोप है कि स्टाफ ने इमरजेंसी में बेड पर रोशनी को लिटाने नहीं दिया। उन्होंने बताया कि पहले उन्होंने बल्लभगढ़ सरकारी अस्पताल में दिखाया था। वहां से बीके अस्पताल रेफर किया गया था। उसने एंबुलेंस के लिए आवश्यक कार्रवाई के लिए कई लोगों से पूछा, लेकिन किसी ने सही से जवाब नहीं दिया। इससे परेशान होकर वह अपनी बेटी रोशनी व पत्नी सुनीता सहित अस्पताल के बाहर आकर पार्क में आकर बैठ गया। बच्ची के हाथों पर कैनुला लगा देखकर कई लोगों ने उसे इमरजेंसी ले जाने की सलाह दी।
सिविल अस्पताल बीके में काउंटर नंबर 40 पर रेफरल पर्ची बनाई जाती है। पर्ची के बाद ही कोई मरीज दूसरे अस्पताल में रेफर हो सकता है। रविंदर राम का आरोप है कि वह कई बार काउंटर पर आया, लेकिन कोई कर्मचारी मौजूद नहीं था। इमरजेंसी में तैनात डॉक्टर ने बताया कि बच्ची की छाती कफ से भरी हुई थी और निमोनिया की वजह से हालत गंभीर थी। उसे सांस लेने में भी परेशानी हो रही थी और शिशु रोग विशेषज्ञ की सलाह के बाद ही उसे सफदरजंग अस्पताल रेफर किया गया।
प्रधान चिकित्सा अधिकारी डॉ. सविता यादव ने बताया कि सिविल अस्पताल में बच्चों के आईसीयू की सुविधा उपलब्ध नहीं है। इस कारण बच्ची को रेफर किया गया था। इमरजेंसी कार्ड खुद डॉक्टर बनाते हैं और 40 नंबर काउंटर पर पर्ची बनवाने के लिए बताकर भेजते हैं।
“हिन्द वतन समाचार” की रिपोर्ट