गांधी जयंती पर कन्हैया के कांग्रेस में शामिल होने में संशय, हो सकता है यूपी चुनाव का इंतजार
बेगूसराय। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष और पिछले चार वर्षों से देश के कम उम्र के चर्चित नेता बेगूसराय के बीहट निवासी डॉ. कन्हैया कुमार के कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) छोड़ कांग्रेस में शामिल होने के अटकलों को लेकर चर्चा तेज होता जा रहा है। यह निश्चित हो गया है कि कन्हैया सीपीआई को बाय-बाय कह कर हर हाल में कांग्रेस में शामिल होंगे। कहा जा रहा है कि वह अपने साथी गुजरात के निर्दलीय विधायक जिग्नेश मेवानी के साथ गांधी जयंती के
अवसर पर दो अक्टूबर को राहुल गांधी के समक्ष कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण करेंगे। इसके बाद कांग्रेस कन्हैया को बड़ी जिम्मेवारी दे सकती है लेकिन यह सिर्फ चर्चा है, क्योंकि ना तो कांग्रेस और ना ही कन्हैया की ओर से तारीख की घोषणा की गई है। कन्हैया से जुड़े करीबी सूत्रों के अनुसार राहुल गांधी से लगातार बातचीत हो रही है। राहुल गांधी जल्द से जल्द कन्हैया को कांग्रेस में शामिल कराने के पक्ष में हैं, लेकिन पार्टी के अन्य रणनीतिकार चाह रहे हैं कि उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के बाद
कन्हैया को कांग्रेस में शामिल करवा कर देशभर के युवाओं को एकजुट करने की जिम्मेदारी दी जाए। पंजाब में मुख्यमंत्री बदलने के बाद उत्तर प्रदेश चुनाव के समय कन्हैया को पार्टी में लाना खतरनाक भी साबित हो सकता है। सूत्र का कहना है कि कन्हैया कम्युनिस्ट पार्टी को छोड़कर कांग्रेस में पद के लिए नहीं, देश को बचाने के लिए एक नई क्रांति करने के उद्देश्य जा रहे हैं। राहुल गांधी और कन्हैया मिलकर जयप्रकाश और लोहिया की तरह एक नई क्रांति करेंगे। युवाओं को साथ लेकर देशभर में एक नई फौज तैयार की जाएगी। कन्हैया एवं राहुल गांधी के साथ हुई बैठक में यह निष्कर्ष निकला है कि भाजपा को चुनाव के माध्यम से निकट भविष्य में कोई हरा नहीं सकता है। इसके लिए नई क्रांति युवाओं के माध्यम से कन्हैया ही कर सकता है।
कन्हैया से जुड़े सूत्र का कहना है कि वे अभी भी सीपीआई के दिल्ली मुख्यालय में ही रहते हैं लेकिन पार्टी नेताओं द्वारा मनमानी जा रही है, कन्हैया की जबरदस्त अपेक्षा की जा रही है, जिससे आहत होकर कन्हैया ने यह कदम उठाया है। इधर कन्हैया के कांग्रेस में जाने की चर्चा तेज होने से कभी मिनी मास्को के नाम से चर्चित रहे बेगूसराय में तरह-तरह की चर्चाएं हो रही है। कन्हैया के साथ रहने वाले लोगों का कहना है कि कम्युनिस्ट पार्टी अपने इस अनमोल हीरे को संभाल नहींं सका। गिरिराज सिंह से लोकसभा चुनाव हारने के बाद भी कन्हैया ने देशभर में घूम-घूम कर युवाओं को एकजुट किया, लेकिन पार्टी के रिटायर उम्र में पहुंच चुके नेताओं ने इसे हमेशा हाशिए पर रखा। अब पार्टी से जाने के बाद लोगों को कन्हैया की अहमियत का पता चलेगा।
“हिन्द वतन समाचार” की रिपोर्ट