दिल्ली दंगा : हेड कॉन्स्टेबल की हत्या मामले में 5 को जमानत…

दिल्ली दंगा : हेड कॉन्स्टेबल की हत्या मामले में 5 को जमानत…

कोर्ट ने कहा- आरोपियों को लंबे समय तक सलाखों के पीछे नहीं रखा जा सकता…

नई दिल्ली। दिल्ली हाईकोर्ट ने फरवरी 2020 में उत्तर पूर्वी दिल्ली हिंसा के दौरान हेड कॉन्स्टेबल रतन लाल की हत्या के मामले के साथ-साथ एक डीसीपी को घायल करने के मामले में 5 आरोपियों को शुक्रवार को जमानत दे दी। जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद ने आदेश पारित करते हुए कहा कि अदालत की राय है कि याचिकाकर्ताओं को लंबे समय तक सलाखों के पीछे नहीं रखा जा सकता है और उनके खिलाफ लगाए गए आरोपों की सत्यता का परीक्षण ट्रायल के दौरान भी किया जा सकता है।

गौरतलब है कि नागरिकता कानून के समर्थकों और विरोधियों के बीच संघर्ष के बाद 24 फरवरी 2020 को उत्तर-पूर्वी दिल्ली के जाफराबाद, मौजपुर, बाबरपुर, घोंडा, चांदबाग, शिव विहार, भजनपुरा, यमुना विहार इलाकों में साम्प्रदायिक दंगे भड़क गए थे। इस हिंसा में कम से कम 53 लोगों की मौत हो गई थी और सैकड़ों लोग घायल हो गए थे। साथ ही सरकारी और निजी संपत्ति को भी काफी नुकसान पहुंचा था। उग्र भीड़ ने मकानों, दुकानों, वाहनों, एक पेट्रोल पम्प को फूंक दिया था और स्थानीय लोगों तथा पुलिस कर्मियों पर पथराव किया था।

इस दौरान राजस्थान के सीकर के रहने वाले दिल्ली पुलिस के हेड कॉन्स्टेबल रतन लाल की 24 फरवरी को गोकलपुरी में हुई हिंसा के दौरान गोली लगने से मौत हो गई थी और डीसीपी और एसीपी सहित कई पुलिसकर्मी गंभीर रूप से घायल गए थे। साथ ही आईबी अफसर अंकित शर्मा की हत्या करने के बाद उनकी लाश नाले में फेंक दी गई थी।

एक ही घटना के लिए दर्ज चार एफआईआर रद्द : हाईकोर्ट ने पिछले साल उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुए दंगों के दौरान लूटपाट और परिसर में आग लगाने के आरोप में दर्ज चार एफआईआर रद्द करते हुए गुरुवार को कहा था कि एक ही संज्ञेय अपराध के लिए पुलिस पांच एफआईआर दर्ज नहीं कर सकती है।

हाईकोर्ट ने कहा कि एक ही संज्ञेय अपराध के लिए दूसरी एफआईआर और नई जांच नहीं हो सकती है। अदालत ने कहा कि एक ही घटना के लिए पांच अलग-अलग एफआईआर दर्ज नहीं की जा सकती है क्योंकि यह सुप्रीम कोर्ट द्वारा स्थापित कानून के विपरीत है। कोर्ट ने एक एफआईआर को बरकरार रखते हुए पिछले साल मार्च महीने में जाफराबाद पुलिस थाना में उन्हीं आरोपियों के खिलाफ दर्ज चार अन्य एफआईआर को रद्द कर दिया।

जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद ने कहा कि यह नहीं कहा जा सकता कि घटनाएं अलग थीं या अपराध अलग थे। जैसा कि पहले कहा गया है, संबंधित एफआईआर में दायर आरोपपत्रों के अवलोकन से पता चलता है कि वे कमोबेश एक जैसे हैं और आरोपी भी वही हैं। हालांकि, अगर आरोपी के खिलाफ कोई सामग्री मिलती है तो उसे एफआईआर में दर्ज किया जा सकता है।

अदालत ने मामले में आरोपी अतीर की चार याचिकाओं पर यह व्यवस्था दी। दिल्ली पुलिस द्वारा एक ही परिवार के विभिन्न सदस्यों की शिकायतों पर दर्ज पांच एफआईआर में आरोपी को अभियोजन का सामना करना पड़ रहा था। आरोप है कि जब पीड़ित 24 फरवरी की शाम को मौजपुर इलाके में अपने घर पहुंचे तो उन्होंने देखा कि उनका घर आग के हवाले कर दिया गया है जिससे 7-10 लाख रुपये की संपत्ति का नुकसान हुआ।

अतीर की ओर से वकील तारा नरूला ने दलील दी कि सभी एफआईआर एक ही आवासीय इकाई से संबंधित हैं, जिसे परिवार के विभिन्न सदस्यों द्वारा दायर की गई हैं और यहां तक कि दमकल की एक ही गाड़ी आग बुझाने आई थी।

उन्होंने दलील दी कि यह प्रकरण सुप्रीम कोर्ट द्वारा स्थापित सिद्धांत के दायरे में है कि एक अपराध के लिए एक से ज्यादा एफआईआर दर्ज नहीं की जा सकती है। दिल्ली पुलिस ने दावा किया कि संपत्ति अलग थी और नुकसान को निवासियों द्वारा व्यक्तिगत रूप से झेला गया है और प्रत्येक एफआईआर का विषय दूसरों से अलग है। अदालत ने कहा कि सभी पांच एफआईआर की सामग्री एक समान हैं और कमोबेश एक जैसे ही हैं और एक ही घटना से संबंधित हैं।

हिन्द वतन समाचार की रिपोर्ट…