अर्जुन-परिणीति की फिल्म को ऑडियंस

तालियां दो तरह की होती हैं। जब कोई प्रस्तुति दर्शकों-श्रोताओं को पसंद आती है, तो आखिर में बजती हैं और जब कोई परफॉर्मेंस दर्शकों के झेलने की क्षमता से बाहर हो जाता है तो बीच में ही बजने लगती हैं- खत्म करो, अब बख्श दो। ‘नमस्ते इंग्लैंड’ दूसरी श्रेणी वाली प्रस्तुति है, जिसे देखते वक्त बार-बार यही ख्याल आता है कि ये फिल्म खत्म कब होगी! सवा दो घंटे का समय भी पहाड़ जैसा लगने लगता है।

एक सवाल मन में अक्सर उठता है कि कोई फिल्म क्यों देखी जाए? इस सवाल के कई जवाब हो सकते हैं, जो हर व्यक्ति के टेस्ट, मानसिक स्तर पर निर्भर करते हैं। लेकिन ‘नमस्ते इंग्लैंड’ के संदर्भ में इस सवाल का एक भी जवाब जेहन में नहीं आता है, सिवाय इसके कि निर्माता का मन फिल्म बनाने का था और उसके पास पैसे थे, इसलिए उसे निर्देशक, हीरो-हीरोइन, दूसरे कलाकार और तकनीशियन आसानी से मिल गए।

वैसे कहने को इस फिल्म में भी एक कहानी है। उसके बारे में भी थोड़ा बता देते हैं। परम (अर्जुन कपूर) और जसमीत (परिणीति चोपड़ा) पंजाब के एक ही गांव के हैं। परम एक आदर्श बेटा है। वह अपने घर-परिवार, अपनी मिट्टी को बहुत महत्व देता है। जसमीत एक प्रगतिशील विचारों वाली लड़की है, जो चाहती है कि लड़कियों को अपने फैसले लेने की आजादी मिले। वह घर से बाहर निकल कर काम करना चाहती है, लेकिन उसके दादा और पिता बहुत रुढ़िवादी हैं। उनके लिए लड़कियों की अहमियत बस खाना पकाने और बच्चे पैदा करने भर है। परम को जसमीत भा जाती है। वह उससे नजदीकियां बढ़ाने के बहाने ढूंढ़ता रहता है। आखिरकार वह इसमें कामयाब हो जाता है।

अर्जुन कपूर का अभिनय प्रभावित नहीं करता। इसमें उनकी अभिनय क्षमता से ज्यादा दोष पटकथा और निर्देशन का है। उन्हें अपनी फिल्मों के चुनाव केबारे में गंभीरता से सोचने की जरूरत है। परिणीति चोपड़ा भी बेअसर हैं। ऐसी फिल्में उनके करियर को कहां ले जाएंगी, यह अंदाजा लगाना कोई मुश्किल नहीं है। सतीश कौशिक का हर बात में डार्लिंग बोलना, हंसी कम और ऊब ज्यादा पैदा करता है। बाकी कलाकार भी ऐसे ही हैं, वैसे उनके लिए ज्यादा स्कोप भी नहीं था। बस मल्लिका दुआ और अलंकृता सहाय ही थोड़ा प्रभावित करने में कामयाब रही हैं।

सर्वेश्वरदयाल सक्सेना का एक प्रसिद्ध नाटक है ‘बकरी’। नट इसमें नटी से कहता है- कैसी बनाई चटनी/जा तेरी मेरी ना पटनी। ‘नमस्ते इंग्लैंड’ को
देख कर दर्शकों (जो थोड़े-बहुत देखने जाएंगे) का मन भी कुछ ऐसा ही कहने को करेगा।