मोहर्रम में भी लखनऊ का गंगा-जमुनी रंग…
कई पीढ़ियों से हिंदू बनाते हैं ताजिए…
लखनऊ, 17 अगस्त। शहर-ए- लखनऊ का गंगा जमुनी रंग इस गम में महीने में और चटक हो जाता है। हजरत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम सहित कर्बला के 71 शहीदों की शहादत के गम में शियों की आंखों से जार-ओ-कतार आंसू निकलते हैं तो या हुसैन… या हुसैन… की सदाएं हर इलाके में गूंजने लगती हैं हैं। शियों ने कर्बला के शहीदों का गम मनाने के लिए लोग रंग-बिरंगे कपड़े उतार कर काले लिबास में नजर आते हैं।
हजरत मुहम्मद साहब के नवासे हजरत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम सहित कर्बला के शहीदों के गम के ये 68 दिन हिंदू-मुस्लिम ताजिए बनाने वालों के लिए जिंदगी चलाने का काम करते हैं। 68 दिन की मेहनत करके ये 365 दिन की रोजी रोटी का इंतजाम करते हैं। कोरोना संक्रमण की मार से भले ही ये परेशान हों, लेकिन जो काम कर रहे हैं वे अपनी रोजी रोटी के इंतजाम में लगे हैं। हार-फूल, अलम के लिए फूल के सेहरे, इमामबाड़े के लिए फूलों के पटके और ताबूत के लिए फूलों की चादरों को बनाकर करीगर गम के इस महीने में लोगों का इंतजार कर रहे हैं। घरों में इमामबाड़ा सजाकर पैगंबर-ए-इस्लाम हजरत मुहम्मद साहब के नवासे हजरत इमाम हुसैन अलेहिस्सलाम का ताजिए रखने का सिलसिला शुरू हो गया है। न केवल शिया व सुन्नी, बल्कि हिंदू अजादार भी अपने घरों में ताजिए सजाते थे। 10 दिनों तक घर में ताजिए सजाकर अजादार इमाम को अपने घर का मेहमान बनाते हैं।
कई पीढ़ियों से हिंदू बनाते हैं ताजिए: पुराने शहर में कई हिंदू परिवार है, जो पीढ़ी दर पीढ़ी ताजिए बनाने का काम कर अवध की गंगा-जमुनी को परवान चढ़ा रहे हैं। आईए जानते हैं ऐसे ही कुछ हिंदू कारीगरों के बारे में, जो मुहर्रम के लिए हुसैन बाबा के तजिए बना रहे हैं। सआदतगंज के प्रमोद ने बताया कि ताजिए को इराक के शहर कर्बला में बने हजरत इमाम हुसैन अलेहिस्सलाम के असल रौजे की शबीह (कॉपी) माना जाता है। मेरी पिछली 21 पढ़ियां ताजिए बनाते आ रही हैं। 68 दिनों के इस गम के दिनों में ताजिया बनाकर पूरे साल के खाने का इंतजाम होता है। उनके दादा ने इस परंपरा को शुरू किया था, फिर पापा के बाद वह भी इस पंरपरा को आगे बढ़ा रहे हैं। वह आर्डर पर ताजिए बनाते हैं, जो न केवल शहर बल्कि दूर दराज के इलाकों में जाते हैं। इसी तरह हरीशचंद्र व सतोष कुमार भी वर्षों से यहीं काम कर रहे हैं। दुबग्गा के नरेश कुमार व आजाद नगर के रवि कुमार का परिवार भी दशकों से ताजिए बनाने का काम कर रहा है। इसी तरह हुसैनाबाद, मुफ्तीगंज, खदरा, सदर, बालागंज व हैदरगंज सहित कई लोगों में भी दर्जनों परिवार ताजिए बनाने का काम कर रहे हैं। कोरोना महामारी के चलते लाकडाउन में कागज, सजावटी सामान व बास सभी कुछ महंगा होने से ताजिए भी महंगे हो गए हैं। सजावटी सामान के दामों में इजाफा हुआ है।
हिन्द वतन समाचार की रिपोर्ट…