लाचार मरीज और वेंटिलेटर पर सरकारें – धर्मपाल महेंद्र जैन…
देश बीमार है। जनता परेशान है, वेंटिलेटर वाला बेड ढूंढ़ रही है। बयान आ रहे हैं कि वेंटिलेटरों की कमी नहीं है। सच है, तीस हजार से ज्यादा वेंटिलेटर खाली पड़े हैं। कई मेडिकल कॉलेजों और जिला अस्पतालों में वेंटिलेटर धूल खा रहे हैं और उनके खरीदी अधिकारी माल पचा रहे हैं। वेंटिलेटर भेजने वालों के राजनीतिक खून का ग्रुप, पाने वाले राज्यों के राजनीतिक खून से मैच नहीं हो रहा है। इसलिए फलां-फलां राज्यों में नए वेंटिलेटर चालू नहीं हो पाए हैं। वे कहते हैं कि वेंटिलेटर खरीदी का कमीशन खाए कोई और, और चलाएं हम! न बाबा न, प्रजातंत्र में ऐसा थोड़े ही होता है, तुम चारा खाओ तो तुम्हीं भैंस को समझाओ।
देश बीमार है। एक सरकार दूसरी सरकार को नीचा दिखाने की प्रतिस्पर्धा में लगी है। जो वेंटिलेटर सात लाख में खरीदा गया था, वही खुले बाजार में दो लाख में मिल रहा है। खुले बाजार में चीजों का अवमूल्यन हो जाता है। इसलिए विधायकों जैसे पवित्र लोग पांच सितारा होटलों में बिकते हैं। वेंटिलेटर चालू हो या बंद उन्हें क्या फर्क पड़ता है। उनके लिए लोग मरें तो मरें, कल मरना था वे आज मर गए। मरने वाले लाइलाज थे, इतने बीमार थे कि न रैली कर सकते थे न वोट दे सकते थे।
देश बीमार है। वेंटिलेटर मिल गया है पर उसका एडॉप्टर नहीं है। इसे अस्पताल की ऑक्सीजन लाइन से जोड़ें कैसे! अधिकारियों का काम थोक में वेंटिलेटर खरीदना था, उन्होंने वह कर दिया। वेंटिलेटर आंकड़ों में दर्ज कर दिए। राजनेता गए, फीता काट कर बटन दबा आए। वे कोई तकनीकी आदमी तो थे नहीं कि जांच करते कि वेंटिलेटर इंस्टाल हुआ या नहीं। टेक्निकल भर्ती की मांगें सचिवालयों के स्वास्थ्य विभागों में दबी पड़ी हैं। पर अस्पतालों को वेंटिलेटर चलाने के लिए प्रशिक्षित स्टाफ नहीं मिल रहा।
देश बीमार है। क्लीनिकल ट्रायल में पास वेंटिलेटर जिले-जिले में भेजे गए हैं। जिन अस्पतालों में मेडिकल ऑक्सीजन की पाइपलाइनें नहीं हैं, वेंटिलेटर वहां भी भेजे हैं। वेंटिलेटर है, बस इंस्टाल नहीं है। जहां इंस्टाल है वहां प्रशिक्षित स्टाफ नहीं है। जहां स्टाफ भेजा है वहां ऑक्सीजन नहीं है। अब ऑक्सीजन पहुंच रही है तो रोगियों की धड़कनें बंद हो रही हैं। सत्तर सालों में जो नीयत बद से बदतर हो गई उस बदनीयत को नीयत में बदलने के लिए समय चाहिए। जिन राज्यों की हवा ठीक है, वहां वेंटिलेटर अच्छे चल रहे हैं। जिन राज्यों की सरकारें ही खराब हैं, वहां कोई कैसे ठीक से काम कर सकता है।
जिंदा लोगों को लाशों में बदलते देख-देख कर डॉक्टर थक चुके हैं। रोम, रोम-रोम जल रहा है और उसके नीरो बंसी बजा रहे हैं।
देश बीमार है। एक सरकार दूसरी सरकार को नीचा दिखाने की प्रतिस्पर्धा में लगी है। जो वेंटिलेटर सात लाख में खरीदा गया था, वही खुले बाजार में दो लाख में मिल रहा है। खुले बाजार में चीजों का अवमूल्यन हो जाता है। इसलिए विधायकों जैसे पवित्र लोग पांच सितारा होटलों में बिकते हैं। वेंटिलेटर चालू हो या बंद उन्हें क्या फर्क पड़ता है। उनके लिए लोग मरें तो मरें, कल मरना था वे आज मर गए। मरने वाले लाइलाज थे, इतने बीमार थे कि न रैली कर सकते थे न वोट दे सकते थे।
देश बीमार है। वेंटिलेटर मिल गया है पर उसका एडॉप्टर नहीं है। इसे अस्पताल की ऑक्सीजन लाइन से जोड़ें कैसे! अधिकारियों का काम थोक में वेंटिलेटर खरीदना था, उन्होंने वह कर दिया। वेंटिलेटर आंकड़ों में दर्ज कर दिए। राजनेता गए, फीता काट कर बटन दबा आए। वे कोई तकनीकी आदमी तो थे नहीं कि जांच करते कि वेंटिलेटर इंस्टाल हुआ या नहीं। टेक्निकल भर्ती की मांगें सचिवालयों के स्वास्थ्य विभागों में दबी पड़ी हैं। पर अस्पतालों को वेंटिलेटर चलाने के लिए प्रशिक्षित स्टाफ नहीं मिल रहा।
देश बीमार है। क्लीनिकल ट्रायल में पास वेंटिलेटर जिले-जिले में भेजे गए हैं। जिन अस्पतालों में मेडिकल ऑक्सीजन की पाइपलाइनें नहीं हैं, वेंटिलेटर वहां भी भेजे हैं। वेंटिलेटर है, बस इंस्टाल नहीं है। जहां इंस्टाल है वहां प्रशिक्षित स्टाफ नहीं है। जहां स्टाफ भेजा है वहां ऑक्सीजन नहीं है। अब ऑक्सीजन पहुंच रही है तो रोगियों की धड़कनें बंद हो रही हैं। सत्तर सालों में जो नीयत बद से बदतर हो गई उस बदनीयत को नीयत में बदलने के लिए समय चाहिए। जिन राज्यों की हवा ठीक है, वहां वेंटिलेटर अच्छे चल रहे हैं। जिन राज्यों की सरकारें ही खराब हैं, वहां कोई कैसे ठीक से काम कर सकता है।
जिंदा लोगों को लाशों में बदलते देख-देख कर डॉक्टर थक चुके हैं। रोम, रोम-रोम जल रहा है और उसके नीरो बंसी बजा रहे हैं।
हिन्द वतन समाचार की रिपोर्ट…