हो जाएं पांच तत्वों से मुक्त…
-सद्गुरु जग्गी वासुदेव-
जहां तक शारीरिक रचना की बात है तो हम इतने सक्षम नहीं हैं, जितने कि दूसरे प्राणी। लेकिन हम कुछ ऐसी काबिलियत ले कर इस धरती पर आए हैं, जिससे हम लोग गुजर-बसर की मौलिक प्रवृत्ति के परे भी कुछ कर सकते हैंय इंसान के लिए यह सबसे महत्वपूर्ण चीज है। लेकिन गुजर-बसर की जरूरतों से परे कुछ करने की बजाय अधिकतर लोगों ने गुजर-बसर के अपने स्तर को बढ़ा लिया है। मानव-तंत्र के इस्तेमाल का यह तरीका बड़ा ही विवेकहीन है, क्योंकि यह मानव-तंत्र तो एक बिलकुल अलग तरह की संभावना ले कर आया है। बहुत सारे ऐसे पहलू हैं, जिन्हें वैज्ञानिक तरीके से समझा जा सकता है। एक सामान्य-सी बात है -योग में रीढ़ की हड्डी को मेरुदंड कहा जाता है, जिसका अर्थ है ब्रह्मांड की धुरी। किसी इंसान की रीढ़ की हड्डी इस ब्रह्मांड की धुरी कैसे हो सकती है? आज आधुनिक विज्ञान ने साबित कर दिया है कि इस धरती पर मौजूद हर चीज के अंदर एक खास किस्म का कंपन हो रहा है। पांच तत्व लाखों तरीकों से एक-दूसरे के साथ मिल कर अलग-अलग तरह की चीजों का रूप लिए हुए हैं और हर चीज में वही पांच तत्व गुंजित हो रहे हैं। वही प्रोटॉन, न्यूट्रॉन और इलेक्ट्रॉन मिल कर असाधारण काम कर रहे हैं। और ज्यादा गहराई में जाएं तो वही ऊर्जा न जाने कितने तरीकों से स्पंदित हो रही है और आप जिसे सृष्टि कहते हैं, वह एक विशाल शून्यता की गोद में समाई हुई है।
आज इसी शून्यता को हम कई तरह के नाम देने की कोशिश कर रहे हैं, जैसे डार्क मैटर या डार्क एनर्जी। लेकिन जितना हम जानते हैं, उसके परे भी जो है, वह शून्य ही है। सबसे स्थूल भौतिक इकाई से ईश्वरीय सत्ता तक का बस यही आधार है। इंसान के शरीर में सबसे अहम स्पंदन रीढ़ की हड्डी में पैदा होता है। यह स्पंदन जितना सूक्ष्म और हल्का होता है, उतना ही आगे तक जाता है। अगर यह स्थूल होगा तो केवल शरीर तक ही सीमित रहेगा। अगर यह सूक्ष्म हो जाता है तो आप इसे अपने चारों ओर हर जगह फैला सकते हैं। जब आपके स्पंदन हर जगह फैल जाएंगे तो आप हर जगह को महसूस भी कर पाएंगे। अपने सीमित अस्तित्व के दायरे में जो कुछ भी आपकी इंद्रियों के अनुभव की सीमाओं के भीतर है, उसे ही आप मैं कहते हैं। जो आपके अनुभवों में है, बस वही आप हैं और जो कुछ भी आपके अनुभव की सीमा के बाहर है, वह कोई और या कुछ और है। अपने स्पंदनों को सूक्ष्म करके आप अपने अनुभवों की सीमा को अनंत तक बढ़ा सकते हैं।
जब हम कहते हैं कि शिव ने तीसरी आंख खोल दी तो इसका मतलब है कि उन्होंने अपने अनुभव की सीमाओं को असीमित तरीके से बढ़ा लिया। फिर पूरा का पूरा जगत उनका एक हिस्सा बन गया और वे खुद सबका केंद्र। लेकिन आपको कैसे पता कि वे केंद्र हैं? मैं कोई रहस्यवाद की बात नहीं कर रहा। आधुनिक विज्ञान के मुताबिक समय और स्थान (स्पेस) एक बहुत बड़ा भ्रम है। समय और स्पेस दोनों को ही खींच कर बढ़ाया जा सकता है। आप जिस तरीके से चाहें, इनमें बदलाव कर सकते हैं। जो चीज दस हजार साल बाद होगी, उसे भी आप इस क्षण में ला सकते हैं, क्योंकि यहां और इस क्षण में सब कुछ मौजूद है। इस समझ के आधार पर हम कह सकते हैं कि आपका मेरुदंड ब्रह्मांड की धुरी है या कहें कि धुरी बन सकता है, अगर आपके स्पंदन एक खास तरह के होने लगें।
अगर आप एक ही जीवनकाल में इसे पूरी तरह से समझना चाहते हैं तो इसके लिए आपको काफी कुछ करना होगा। अगर आप इसे यंत्र की तरह इस्तेमाल करना चाहते हैं तो सबसे पहला और अहम काम आपको यह करना होगा कि आप अपने शरीर के साथ अपनी पहचान को खत्म करें। जैसे ही आप इस शरीर को मैं समझने लगते हैं तो इसके साथ बहुत सारी भावनाएं जुड़ जाती हैं। ऐसी स्थिति में हम इसे एक यंत्र की तरह इस्तेमाल नहीं कर सकते। इसी के लिए योग में भूत-शुद्धि बनाया गया है। इसका मकसद हमें पांच तत्वों से मुक्त करना है। अगर आप अपने और पांच तत्वों के बीच प्रभावशाली तरीके से एक दूरी बना लें तो आपके व आपके शरीर के बीच में दूरी भी स्पष्ट हो जाएगी। अगर आप यह दूरी बना लेते हैं तो आपको यह जानने में बहुत आनंद मिलेगा कि आपको किस तरह की मशीन सौंपी गई है। यह कोई साधारण मशीन नहीं है।
इसमें बंधन और मुक्ति दोनों के लिए सामग्री मौजूद है। इसे आप चाहें तो दिव्य बना सकते हैं। आप अपने ऊर्जा-तंत्र को इस तरह से संचालित कर सकते हैं कि यह शरीर देव-तुल्य बन जाए या फिर आप यहां एक बेजान इंसान की तरह भी रह सकते हैं। कहने का मतलब है, चाहें तो आप इस शरीर को शव बना लें या शिव बना लें। अगर आप जानते हैं कि शरीर को इसकी पूरी क्षमताओं के साथ कैसे इस्तेमाल करना है तो यह ईश्वर तक पहुंचने की सीढ़ी बन सकता है। एक सीढ़ी ही नहीं, बल्कि यह खुद ही ईश्वर बन जाएगा।ं
हिन्द वतन समाचार की रिपोर्ट…