क्यों होता है बच्चों में दंतक्षय…
दांत प्रकृति के द्वारा प्रदत्त वह अनुपम उपहार है जो न केवल चेहरे को सुंदरता प्रदान करते हैं अपितु स्वस्थ दांत व्यक्तित्व में चार चांद लगा देते हैं। युवावस्था में मोती से दमकते दांत एक अलग ही मायने रखते हैं। बुढ़ापे तक जो दांतों को बचाकर रख ले, उसका स्वास्थ्य तयशुदा बात है कि अच्छा ही रहता है। युवा व वृद्ध दोनों ही समझदार होते हैं और अपने शरीर व दातों की बेहतर देखभाल, करना जानते हैं मगर असली समस्या तो बचपन व बच्चों की है। टाफी, चाकलैट, मिठाई, इमली, आइस्क्रीम, बर्फी, लड्डू, पेड़े, रसगुल्ले वगैरह सभी को ललचाती हैं।
बच्चे खाते-पीते मस्ती करते हैं मगर यदि खानपान की सही आदतें न हों तो इन सभी का आनंद देने वाले दांत जल्दी ही सड़ने लगते हैं। यह दांतों का सड़ना, काला पड़ना, खोखला हो जाना ही दंतक्षय के रूप में जाना जाता है और बच्चे दंतक्षय का शिकार सरलता से होते हैं। आइए जाने कि क्या है यह दंतक्षय, क्यों इसका शिकार होते हैं बच्चे और कैसे उन्हें बचाया जा सकता है। प्रसिद्ध दंत रोग चिकित्सक डा. प्रदीप रस्तोगी के अनुसार सड़न और जीवाणु या बैक्टीरिया पैदा होने के लिये हमारा मुंह बहुत ही अनुकूल स्थान है क्योंकि वहां पर गर्मी के साथ-साथ लार के रूप में पानी भी सदैव विद्यमान रहता है।
ऐसी अनुकूल परिस्थितियों में यदि मुंह में भोजन के कण रह जायं या फिर मीठा पदार्थ आठ दस घंटे रह जाएं तो जीवाणुओं के लिये एक आदर्श स्थिति बन जाती है और एसिड फारमेशन यानी अम्ल बनना शुरू हो जाता है। यही एसिड दांतों पर लगातार प्रहार कर उनकी ऊपरी सफेद परत एनेमल को नष्ट कर देता है या फिर उसे एकदम जर्जर हालत में ले आता है। इस सफेद परत एनेमल का नष्ट होना डाक्टरी भाषा में कैविटी कहलाता है और दंतक्षय का कारण बनता है जिसे आम बोलचाल की भाषा में दांतों में कीड़ा लगना कहते हैं। बच्चों के दूध के दांत व्यस्कों की तरह बहुत कठोर नहीं होते, अतः उनमें कैविटी का लगना अपेक्षाकृत सरल होता है।
ऊपर से उनको मीठा पसंद होना, हर वक्त कुछ न कुछ खाते रहना, आईस्क्रीम और चाकलेट, बिस्किट जैसे स्टकी, यानी चिपकने वाले पदार्थ खाना तथा कुल्ला या मंजन, पेस्ट न करना दंतक्षय का कारण बन जाता है। कुछ माएं शिशु पर ज्यादा ध्यान नहीं देती तथा दूध की बोतल देकर उन्हें सुला देती हैं। यह बहुत ही खतरनाक है नन्हें मुन्नों के दांतों के लिये क्योंकि यह दूध उनके मुंह में लगातार मीठा प्रवाहित करता रहता है और कैविटी यानी दंतक्षय के अवसर बढ़ जाते हैं। मीठा यदि खाना ही हो तो एक बार खा लें बार-बार नहीं। भोजन संबंधी आदतों में भी सुधार जरूरी है। दिन में नाश्ता, लंच और डिनर लेने वाले बच्चे बार-बार खाने वाले बच्चों से ज्यादा स्वस्थ पाए गये हैं। यही नहीं, इनके दांतों में भी केविटी की संभावना बहुत कम रहती है।
मीठे पदार्थ यदि चिपकने वाले न हों तो ज्यादा अच्छा है यानी बर्फी, कलाकंद, गुलाबजामुन, राबड़ी, हलवा आदि के मुकाबले बंगाली मिठाई, रसगुल्ले, नरियल मिठाई पेठा आदि कम हानिकारक हैं जब कि कच्ची सब्जियां, सलाद, मूली, गाजर, मटर, पत्तागोभी, फलों में सेब, संतरा, प्लम, आम, नाशपत्ती, दूध दही पनीर व अंडा तथा दालें दांतों को ताकत प्रदान करती है। अच्छा हो अगर कम से कम साल में दो बार दांतों का चैकअप अवश्यक करा लें। यदि डाक्टर के पास जाने से बच्चों को बचाना है व उन्हें दांतदर्द आदि से बचाना है तो प्रत्येक भोजन के बाद अच्छी तरह कुल्ला मंजन आदि की भी आदत जरूर डालें।
दो वर्ष से कम आयु के बच्चों का मंजन माएं स्वयं कराएं तथा सुपरसाफ्ट या साफ्ट ब्रश का इस्तेमाल करें। 5-6 वर्ष के बच्चों को अपनी देखरेख में मंजन कराएं। ब्रश भी वैज्ञानिक ढंग से ऊपर से नीचे, नीचे से ऊपर इस प्रकार करें कि दांतों की सारी गंदगी निकल आए तथा इनके बीच में अन्न कण आदि फंसे न रहें। यदि पानी में फ्लोराइड की कमी हो तो उन्हें उपयुक्त फ्लोराईडयुक्त भोजन दें। यदि आप चाहती हैं कि आपके लाडले के दांत भी मोती से चमकते रहें तो एक अच्छी मां की तरह उनके खाने-पीने, पहनने का साथ-साथ उनके दांतों का भी पूरा ख्याल रखें।
हिन्द वतन समाचार की रिपोर्ट…