कम होती संवेदनाएं खत्म होती अंतर प्रज्ञा को संभाल कर रखती मां…

कम होती संवेदनाएं खत्म होती अंतर प्रज्ञा को संभाल कर रखती मां…

जब मनुष्य दुख या आनंद का अनुभव करते हैं, तो हम कुछ तरीकों से व्यवहार करते हैं हम हसते है,रोते हैं, हम कराहते हैं … …और यही बात अन्य संवेदनशील प्राणियों के लिए भी सच है ।इस तरह का व्यवहार संकेत करता है कि जो प्राणी इन तरीकों से व्यवहार कर रहे हैं, उन्हें सकारात्मक या नकारात्मक अनुभव हो रहे हैं ।
मनुष्य के सबसे नजदीकी और पहले पालतू रहे कुत्ते की बात करें तो भावनाओं को सुनकर, सूघकर महसूस कर देने वाला यह जानवर वफादारी और दोस्ती निभाने में अव्वल है । और यदि जीवन चक्र को देखा जाए तो कुतिया अपने गर्भ में 62 दिनों तक बच्चे को रखती है। कुत्ते का बच्चा जब पैदा होता है तो वह अंधा, बहरा और बिना दाँतो वाला होता है और बड़ी ही शिद्दत के साथ उस मां द्वारा अपने असहाय बच्चों का पालन पोषण किया जाता है।
नगर निगम की लापरवाही की वजह से आजकल हम अपने चारों तरफ सड़क में घूमने वाले कुत्तों की बढ़ती आबादी को देख सकते हैं। और कभी ना कभी इस महान रिश्ते को हमने जरूर अनुभव किया होगा जब तक छोटे पिल्ले दौड़ने लायक नहीं हो जाते तब तक वह उन्हें नहीं छोड़ती।
आधुनिकता, व्यावसायिकता और स्वार्थ की अंधी दौड़ में हमारे अंदर से , हमारे परिवार और समाज से मानवीय संवेदनायें समाप्त होती जा रही है। अपने मानवीय मूल्यों को खोते जा रहे है। आज हम स्वयं मशीन हो गए है जिसमे कार्यक्षमता तो भरपूर है पर मानवीय संवेदना शून्य है। अक्सर आपने गाड़ियों के नीचे रौदे हुए कुत्तों को या उनके बच्चों को देखा होगा भागमभाग भरी जिंदगी में रोड को पार करते यह जानवर अनायास ही दुर्घटना के शिकार हो जाते हैं।

पर सोचने और देखने के बाद संवेदना के स्तर को महसूस करने की है

बात लगभग 10 दिन पहले की है हम कहीं जाने के लिए जैसे ही कार में बैठने जा रहे थे तो सड़क के दूसरी तरफ एक कुत्तिया अपने 4-5 बच्चों को दूध पिला रही थी, और एक बच्चे को मुंह में दबाए वह इधर उधर देख रही थी। तभी उसने अपने दोनों पैरों से मिट्टी के एक ढेर में गड्ढे को खोदा और उसमें अपने उस नवजात बच्चे को छोड़ कर मुंह और दोनों हाथों से उस गड्ढे को बन्द कर दिया।हम कुछ समझ पाते उसके पहले ही उसने बच्चे को दफना दिया जो कि ठंड के कारण किसी गाड़ी की चपेट में आकर मर गयाथा और हम तब समझ पाए की एक मां अपने बच्चे को दुर्दशा और सड़न से बचाने के लिए उसको दफना रही थी।जीवन की प्रक्रिया चल रही थी अन्य बच्चे दूध पी रहे थे पर एक बच्चे का बिछड़ना उसका दुख उसके चेहरे पर साफ दिखाई दे रहा है। और यह असहनीय दर्द सहने की क्षमता भी प्रकृति ने मां को दी है।
दूसरी घटना बिजनौर जाते समय आज सड़क पर एक छोटे पिल्ले का कुचला हुआ शरीर पड़ा था वह भी बीच सड़क पर…….और उसकी मां किनारे खड़े होकर बार-बार उस जगह पर जाने का प्रयास कर रही थी पर गाड़ियों की आवाजाही में दो कदम आगे बढ़ाती है तो फिर चार कदम पीछे हो जाती है जब तक कुछ समझ पाते तब तक हम अपने सफ़र में आगे निकल चुके थे। और जब 8 घंटे बाद वापस उसी रोड से लौटे तो देखा कि वहां सड़क किनारे बैठे अपने चिथड़े हुए बच्चे को निहार रही थी और बेबस , कुछ ना कर पाने का दुख ,गम भरे चेहरे से उसकी संवेदनाएं बिना कहे झलक कर सब कुछ बयां कर रही थी…। तभी तो संवेदनाएं मूक होती है……….. प्रकृति ने मां के रूप में ईश्वर हमारे पास रखा है फिर वह रूप मनुष्य का हो या जानवर का……..
लगभग रोज ही हम मनुष्य के साथ होती ऐसी अमानवीय घटनाओं से दो चार होते है ……. टी वी और समाचार पत्रों में संपत्ति और पैसों के लिए लोगों को अपने माँ और बाप के क़त्ल करने की घटनाये पढ़ते है, छोटे बच्चों से लेकर वयस्क महीला को रेप के बाद कत्ल होते देखते और बहुत ही छोटा रिएक्शन देकर उसे भूल जाते है। लेकिन ये घटनाये हमारे बीच बढ़ते संवेदनहीन मानवीय प्रदूषण की ओर संकेत कर रही है। काश हम जानवरों से कुछ सीख पाते……..
यदि मानव समाज से भावनाएं , सहानुभूति और संवेदना और अभिव्यक्ति की कला को निकाल दिया जाए तो हम में और जानवरों में फर्क ही क्या रह जायेगा।परंतु वर्तमान समय में देखने में पाया गया है संवेदना के मामले में जानवर हम से आगे निकल रहे हैं।
जहां एक ओर मानव में सहानुभूति व संवेदनशीलता में कमी आती जा रही है मनुष्य मनुष्य की जान का दुश्मन तो बन ही रहा है अक्सर हमारे हाथों में भी प्राणियों की जाने जाना आम बात हो गई है। जबकि इन जानवरों के प्रति संवेदना रखना ही सबसे बड़ी इंसानियत है। इन्हें भी तो हमारी तरह भूख व प्यास लगती है, तकलीफ होती है, जिसे इनके शारीरिक हाव-भाव से आसानी से समझा जा सकता है। *अत: आप सब से अनुरोध है इन निरीह, बेजुबान जानवरों की सेवा व रक्षा करना हमारा कर्तव्य होना चाहिए। अपने भागमभाग की जिंदगी में कभी जीभ के स्वाद के लिए तो कभी रफ्तार बढ़ाने के लिए इन जानवरों की बली ना ली जाए तो ही बेहतर होगा…….. ..
कैसा होता हमारा जीवन जरा सोचिए यदि गाय, बैल, भैंस, घोड़ा, ऊंट, कुत्ता, बकरी जैसे जानवर न होते तो क्या हमारा जीवन इतना आसान होता। कतई नहीं, किंतु फिर भी कुछ लोग इतने स्वार्थी होते हैं कि जब तक ये जानवर उनके काम आते हैं तब तक वो इन्हें पालते हैं और बाद में इनके अक्षम होने पर इनकी देखभाल तो दूर, इन्हें यूं ही सड़क पर भूखा-प्यासा छोड़ देते हैं। अत: अपने स्वार्थ के लिए पशुओं के साथ ज्यादती न करें। इनके प्रति प्रेम भाव तो हमारी संस्कृति का अभिन्न अंग है। हमारी संस्कृति नहीं हमें गाय और कुत्ते के लिए रोटी निकालना सिखाया है। पुराणों में दया और सेवा भाव का स्पष्ट उल्लेख किया गया है दिनचर्या में जानवरों पर दया करने की सीख दी गई है।
सोचने समझने और अभिव्यक्ति करने के लिए समझने योग्य वाणी ,शब्दों का विशाल जखीरा प्रकृति ने मनुष्य को प्रदान किया है और इसी क्षमता का लाभ उठाते हुए हमें अपने से कम अभिव्यक्ति क्षमता वाले जानवरों की मदद करनी चाहिए यदि हमारी छोटी सी मदद से उनकी आंखों में खुशी दिखाई देती है तो इसमें बुरा क्या है??????
भागदौड़ भरी जिंदगी में 2 मिनट ठहर कर विचार करें
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
@रीना त्रिपाठी

हिन्द वतन समाचार की रिपोर्ट…