*नीतीश के दांव से भाजपा चित*

*नीतीश के दांव से भाजपा चित*

*-सिद्धार्थ शंकर-* बिहार चुनाव में जदयू को तीसरे नंबर की पार्टी बनाने में अहम भूमिका निभाने वाले लोजपा अध्यक्ष चिराग पासवान की भविष्य की राह आसान नहीं है। नाराज जदयू अब लोजपा को राजग से बाहर करने पर अड़ा हुआ है। भाजपा फिलहाल नाराज चल रहे सीएम नीतीश को और नाराज करने की स्थिति में नहीं है। ऐसे में लोजपा की केंद्रीय मंत्रिमंडल में भागीदारी के साथ दिवंगत रामविलास पासवान की राज्यसभा सीट पर ग्रहण लगना तय माना जा रहा है। चिराग ने अपना घर जलाकर जदयू को भाजपा की बी टीम तो बना दिया, मगर अब भाजपा उन्हें उपकृत करने की स्थिति में नहीं है। दिवंगत पासवान की जगह लोजपा को केंद्रीय मंत्रिमंडल में भागीदारी या राज्यसभा की सीट देने से चिराग के भाजपा की शह पर जदयू को नुकसान पहुंचाने की चर्चाओं पर मुहर लग जाएगी। लोकसभा चुनाव दूर होने के कारण भाजपा को अभी चिराग की तात्कालिक जरूरत भी नहीं है। नीतीश की नाराजगी की खबरों के बीच भाजपा ने लोजपा से दूरी बनाने का साफ संकेत दिया है। पहले राज्य के प्रभारी महासचिव भूपेंद्र यादव ने लोजपा पर धोखा देने का आरोप लगाया। इसके ठीक बाद डिप्टी सीएम सुशील मोदी ने लोजपा पर भाजपा और जदयू दोनों को नुकसान पहुंचाने का आरोप लगाया। मतगणना के दिन भूपेंद्र यादव, सुशील मोदी और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष जायसवाल सहित कई नेता नीतीश के घर पहुंचे थे। नीतीश सीएम बनने के लिए तैयार नहीं थे। गृहमंत्री अमित शाह और बाद में पीएम मोदी से बातचीत के बाद ही वह इसके लिए लिए तैयार हुए। नीतीश को पहले की तरह काम करने की आजादी मिलने का आश्वासन दिया गया है।

जदयू को अधिकतर उन्हीं सीटों पर हार मिली है, जहां भाजपा के बागी नेता लोजपा के टिकट पर चुनाव मैदान में थे। नतीजे से दो चीजें साबित हो गईं। पहला यह कि जदयू का कोर वोट बैंक उसके साथ अब भी खड़ा है। दूसरा यह कि चुनाव में जदयू का कोर वोट बैंक तो भाजपा के साथ गया मगर खासतौर से उन सीटों पर भाजपा का कोर वोटर लोजपा के साथ चला गया, जहां लोजपा के टिकट पर भाजपा के बागी मैदान में थे। ऐसी दो दर्जन से अधिक सीटें हैं।

सियासी लड़ाई में नीतीश बेशक कमजोर पड़े हैं, मगर उनकी अहमियत में कोई कमी नहीं आई है। इसका कारण जदयू का वोट बैंक है। चुनाव में जदयू को भले महज 43 सीटें मिलीं, मगर पार्टी का वोट प्रतिशत 15.39 है। यह वोट प्रतिशत बीते विधानसभा चुनाव के 16.8 फीसदी से महज 1.41 फीसदी कम, तो 2014 के लोकसभा चुनाव के 15.8 प्रतिशत से आधा प्रतिशत कम है। नतीजे यह भी बताते हैं कि नीतीश अब भी जिस दल के साथ जुड़ेंगे सरकार उसी की बनेगी। राजग में अब बड़े दल के रूप में सिर्फ जदयू ही बचा है। बड़े दलों में शिवसेना और अकाली दल राजग का साथ छोड़ चुके हैं। लोकसभा में प्रतिनिधित्व रखने वालों में अब जदयू, लोजपा और अपना दल ही राजग में हैं। मोदी सरकार के कैबिनेट मंत्रियों में भी पासवान के निधन और हरसिमरत कौर-अरविंद सावंत के इस्तीफे के बाद सहयोगियों का प्रतिनिधित्व खत्म है। सहयोगी दलों से बस आरपीआई के रामदास अठावले की ही बतौर राज्यमंत्री प्रतीकात्मक प्रतिनिधित्व है। ऐसे समय में जब भाजपा को पश्चिम बंगाल के बाद उत्तर प्रदेश की सियासी जंग लडऩी है तब पार्टी राजग का अस्तित्व खत्म होने का संदेश नहीं देना चाहेगी। यही वजह है कि अब भाजपा वह सब कर रही है जो नीतीश चाहते हैैं। चुनाव में कम सीटें मिलने की बात नीतीश आसानी से भूूलेंगे नहीं। इसलिए वे अपमान का बदला लेने आगे भी भाजपा पर शर्तें थोप सकते हैं।