*न्यायालय ने अर्नब गोस्वामी और दो अन्य को आत्महत्या के लिये उकसाने के मामले में दी अंतरिम जमानत*
*साथ ही यह निर्देश भी दिया कि वे साक्ष्यों के साथ छेड़छाड़ नहीं करेंगे और जांच में सहयोग करेंगे*
*ना ही इस मामले में किसी भी गवाह से मिलने का प्रयास करेंगे*
*नई दिल्ली, 11 नवंबर।* उच्चतम न्यायालय ने 2018 के आत्महत्या के लिये उकसाने के मामले में पत्रकार अर्नब गोस्वामी को बुधवार को अंतरिम जमानत देते हुये कहा कि अगर व्यक्तिगत स्वतंत्रता को बाधित किया जाता है तो यह न्याय का उपहास होगा। शीर्ष अदालत ने विचारधारा के आधार पर लोगों को निशाना बनाने के राज्य सरकारों के रवैये पर गहरी चिंता व्यक्त की। न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति इन्दिरा बनर्जी की अवकाशकालीन पीठ ने अर्नब गोस्वामी के साथ ही इस मामले में दो अन्य व्यक्तियों-नीतीश सारदा और प्रवीण राजेश सिंह- को भी 50-50 हजार रुपए के निजी मुचलके पर रिहा करने का आदेश दिया। पीठ ने इन्हें यह निर्देश भी दिया कि वे साक्ष्यों के साथ छेड़छाड़ नहीं करेंगे और जांच में सहयोग करेंगे। पीठ ने अपने आदेश में कहा कि ये आरोपी इस मामले में किसी भी गवाह से मिलने का प्रयास नहीं करेंगे। पीठ ने कहा कि इन सभी की रिहाई में विलंब नहीं होना चाहिए और जेल प्रशासन को इसे सुगम बनाना चाहिए। पीठ ने कहा कि निजी मुचलका मजिस्ट्रेट की अदालत में देने की बजाय तलोजा जेल के अधीक्षक को देना होगा। रिपब्लिक टीवी के प्रधान संपादक अर्नब गोस्वामी ने बंबई उच्च न्यायालय के नौ नवंबर के आदेश को चुनौती दी है जिसमें उन्हें और दो अन्य आरोपियों को अंतरिम जमानत देने से इंकार करते हुये कहा गया था, ‘‘इसमें हमारे असाधारण अधिकार का इस्तेमाल करने के लिये कोई मामला नहीं बनता है।’’ अर्नब और अन्य आरोपियों ने अंतरिम जमानत के साथ ही इस मामले की जांच पर रोक लगाने और उनके खिलाफ दर्ज प्राथमिकी निरस्त करने का अनुरोध उच्च न्यायालय से किया था। आरोपियों को महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले की अलीबाग पुलिस ने चार नवंबर को 2018 को इंटीरियर डिजाइनर अन्वय नाइक और उनकी मां की आत्महत्या के सिलसिले मे गिरफ्तार किया था। आरोप है कि आरोपियों की कंपनियों ने बकाया राशि का भुगतान नहीं किया था। गोस्वामी को चार नवंबर को मुंबई में उनके निवास से गिरफ्तार करके पड़ोसी जिले रायगड के अलीबाग ले जाया गया था। उन्हें और दो अन्य आरोपियों को बाद में मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया गया, जिन्होंने आरोपियों को पुलिस हिरासत में भेजने से इंकार कर दिया था। अदालत ने तीनों को 18 नवंबर तक के लिये न्यायिक हिरासत में भेज दिया था। इस मामले में दिन भर चली सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने कहा कि अगर राज्य सरकारें लोगों को निशाना बनाती हैं तो उन्हें इस बात का अहसास होना चाहिए कि नागरिकों की स्वतंत्रता की रक्षा के लिये उच्चतम न्यायालय है। पीठ ने कहा कि अगर इस तरह से किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता को बाधित किया जाता है तो यह न्याय का उपहास होगा। पीठ ने वैचारिक या मत भिन्नता होने के आधार पर कुछ लोगों को राज्य सरकारों द्वारा निशाना बनाये जाने पर चिंता व्यक्त की। पीठ ने कहा, ‘‘हम देख रहे हैं कि एक के बाद एक ऐसा मामला है, जिसमें उच्च न्यायालय जमानत नहीं दे रहे हैं और वे लोगों की स्वतंत्रता, निजी स्वतंत्रता की रक्षा करने में विफल हो रहे हैं।’’ न्यायालय ने राज्य सरकार से जानना चाहा कि क्या गोस्वामी को हिरासत में लेकर उनसे पूछताछ की कोई जरूरत थी और कहा कि यह ‘‘व्यक्तिगत आजादी’’ से जुड़ा मामला है। पीठ ने टिप्पणी की कि भारतीय लोकतंत्र असाधारण तरीके से लचीला है और महाराष्ट्र सरकार को इन सबको (टीवी पर अर्नब के ताने) नजरअंदाज करना चाहिए। न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा, ‘‘उनकी जो भी विचारधारा हो, कम से कम मैं तो उनका चैनल नहीं देखता लेकिन अगर संवैधानिक न्यायालय आज इस मामले में हस्तक्षेप नहीं करेगा, तो हम निर्विवाद रूप से बर्बादी की ओर बढ़ रहे होंगे।’’ पीठ ने कहा, ‘‘सवाल यह है कि क्या आप इन आरोपों के कारण व्यक्ति को उसकी व्यक्तिगत आजादी से वंचित कर देंगे ? ’’ न्यायालय ने कहा, ‘‘अगर सरकार इस आधार पर लोगों को निशाना बनायेगी…आप टेलीविजन चैनल को नापसंद कर सकते हैं…. लेकिन ऐसा नहीं होना चाहिए।’’ पीठ ने टिप्पणी की कि मान लीजिये की प्राथमिकी ‘पूरी तरह सच’ है लेकिन यह जांच का विषय है। राज्य सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल से पीठ ने सवाल किया, ‘‘क्या धन का भुगतान नहीं करना, आत्महत्या के लिये उकसाना है? यह न्याय का उपहास होगा अगर प्राथमिकी लंबित होने के दौरान जमानत नहीं दी जाती है।’’ न्यायालय ने कहा, ‘ए’ ‘बी’ को पैसे का भुगतान नहीं करता है और क्या यह आत्महत्या के लिये उकसाने का मामला है? अगर उच्च न्यायालय इस तरह के मामलों में कार्यवाही नहीं करेंगे तो व्यक्तिगत स्वतंत्रता पूरी तरह नष्ट हो जायेगी। हम इसे लेकर बहुत ज्यादा चिंतित हैं। अगर हम इस तरह के मामलों में कार्रवाई नहीं करेंगे तो यह बहुत ही परेशानी वाली बात होगी।’’ न्यायमूर्ति चंद्रचूड ने कहा कि न्यायालयों की उनके फैसलों के लिये तीखी आलोचना हो रही है और ‘‘मैं अक्सर अपने लॉ क्लर्क से पूछता हूं और वे कहते हैं कि सर कृपा करके ट्वीट्स मत देखें।’’ गोस्वामी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने उनके और चैनल के खिलाफ दर्ज तमाम मामलों का जिक्र किया और आरोप लगाया कि महाराष्ट्र सरकार उन्हें निशाना बना रही है। साल्वे ने कहा, ‘‘यह सामान्य मामला नहीं था और संवैधानिक न्यायालय होने के नाते बंबई उच्च न्यायालय को इन घटनाओं का संज्ञान लेना चाहिए था। क्या यह ऐसा मामला है जिसमें अर्णब गोस्वामी को खतरनाक अपराधियों के साथ तलोजा जेल में रखा जाये ? “उन्होंने कहा, ‘‘मैं अनुरोध करूंगा कि यह मामला सीबीआई को सौंप दिया जाये और अगर वह दोषी हैं तो उन्हें सजा दीजिये। अगर व्यक्ति को अंतरिम जमानत दे दी जाये तो क्या होगा।’’ सिब्बल ने इस मामले के तथ्यों का हवाला दिया और कहा कि इस मामले में की गयी विस्तृत जांच शीर्ष अदालत के सामने नहीं है और अगर वह इस समय हस्तक्षेप करेगी तो इससे एक खतरनाक परंपरा स्थापित होगी। राज्य की ओर से ही एक अन्य वरिष्ठ अधिवक्ता अमित देसाई ने कहा कि यह ऐसा मामला नहीं है, जिसमें न्यायालय को अंतरिम स्तर पर जमानत देने के लिये अपने असाधारण अधिकार क्षेत्र का इस्तेमाल करना चाहिए। उन्होंने कहा कि आपराधिक मामले की जांच करने की राज्य की क्षमता का सम्मान होना चाहिए। गोस्वामी को चार नवंबर को मुंबई में उनके निवास से गिरफ्तार करके पड़ोसी जिले रायगढ़ के अलीबाग ले जाया गया था। गोस्वामी को शुरू में अलीबाग जेल के लिये कोविड-19 पृथकवास केन्द्र के रूप में काम कर रहे एक स्थानीय स्कूल परिसर में रखा गया था लेकिन रविवार को उन्हें रायगढ़ जिले में स्थित तलोजा जेल भेज दिया गया क्योंकि उन पर न्यायिक हिरासत के दौरान मोबाइल फोन के इस्तेमाल का आरोप था।