सरकार की अस्पष्ट एवं अव्यवस्थित रणनीति से उपजी अव्यवस्था…
आज समूचा भारत कोरोना संकट से लड़ रहा है, तीसरे चरण का लॉक डाउन समाप्त हो चुका है, तीसरे चरण के लॉकडाउन के अंतिम समय में प्रतिदिन कोरोना संक्रमितों की संख्या में हमें भारी इजाफा देखने को मिला। ऐसे समय में हमें एम्स के डायरेक्टर डॉक्टर रणदीप गुलेरिआ के बयान पर ध्यान देना चाहिए जिसमे उन्होंने कहा है कि आने वाले दिनों में कोरोना संक्रमितों की संख्या में तेजी से वृद्धि होगी और यह जून-जुलाई माह में अपने चरम स्तर पर होगी। ऐसे में जनमानस के बीच यह प्रश्न प्रासंगिक हो जाता है कि क्या कोरोना की लड़ाई हम सही तरीके से लड़ रहें हैं? ऐसे में सरकार की नीतियाँ भी संदेह के घेरे में आ जाती हैं। इन सब प्रश्नो के बीच हमारा ध्यान सरकार द्वारा उठाये गए निर्णयों की तरफ जाता है। भारत में कोरोना संकट से समस्त जनमानस परेशान है परन्तु सबसे ज्यादा जिसे कठिनाइयों का सामना करना पड़ा है या पड़ रहा है वह है हमारा कामगार समुदाय और जिनका भारत के राष्ट्र निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान है, ये राष्ट्र निर्माण की प्रथम कड़ी हैं। लॉकडाउन 3.0 के दौरान सरकार द्वारा लिए गए अस्पष्ट एवं अपारदर्शी निर्णयों ने सरकार के पूर्व के निर्णयों पर प्रश्नचिन्ह खड़ा कर दिया चाहे वह लॉकडाउन 1.0 की घोषणा का समय हो या फिर हमारे प्रवासी कामगार श्रमिकों की अपने घर वापसी हो या फिर दूसरे देशों में फंसे भारतीयों की वापसी का मामला हो या फिर शराब बिक्री की अनुमति ही क्यों न हो, इन सब के बीच प्रधानमंत्री जी द्वारा 1 मई को वैश्विक मजदूर दिवस पर अपने ट्वीट के माध्यम से श्रमिकों को सम्बोधित करते हुए कहा कि श्रमिक देश की तरक्की में बड़ी भूमिका निभाते हैं, हम उन अनगिनत श्रमिकों के दृढ़संकल्प और परिश्रम को सलाम करते हैं जो भारत की तरक्की में बड़ी भूमिका निभाते हैं।
इसका परिणाम यह हुआ कि मजदूर दिवस पर कामगार समुदाय के लिए श्रमिक स्पेशल ट्रेन चलाने का निर्णय लिया गया। यह निर्णय विसंगतियों एवं अस्पष्ट रणनीति के चलते अव्यवस्था का कारण बन गया। सरकार द्वारा कामगार राष्ट्र निर्माता सेवकों को घर तक पहुँचाने के लिए जो नीति अपनाई गयी उससे राष्ट्र निर्माता सेवक सहज नही हो सके, भूख-प्यास की भयंकरता से जिजीविषा की रक्षा और घर पहुँचने की जल्दीबाजी ने चारों ओर अव्यवस्था का माहौल खड़ा कर दिया, चाहे जम्मू का कठुआ हो या फिर सूरत, कलकत्ता, मंगलौर, दिल्ली जैसे महानगर हों, लगभग हर स्थानों पर लोगों का हुजूम भूख-प्यास से परेशान होकर सरकार के विरोध में उतरा और सोशल-डिस्टेंसिंग तथा लॉकडाउन तोड़ने के अपराध में प्रशासन द्वारा लोगों पर कहीं पर लाठी बरसायी गयी तो कहीं पर आँसू गैस छोड़ने पड़े। इन सब घटनाओं में कामगार समुदाय बुरी तरह प्रभावित हुआ, इनके खून से लतफत सड़कें, रेल की पटरी एवं सड़कों बिखरे शव, जोखिम भरे दुरूह रास्तों का चुनाव, सड़कों पर पैदल चलता जनमानस, जिजीविषा के संघर्ष और विस्थापन की दर्द भरी कहानी को रेखांकित करता है। सरकार द्वारा जब पूरे भारत में कोरोना संक्रमितों की संख्या केवल 695 थी तो पहले लॉकडाउन की घोषणा अचानक से की गयी और प्रधानमंत्री जी द्वारा सबको निर्देशित किया गया कि जो जहाँ है वही रहे जिसका लगभग हर भारतीय नागरिक द्वारा पालन किया गया लेकिन इस दौरान सरकार द्वारा प्रवासी कामगार श्रमिकों की बुनियादी जरूरतों को नजरअंदाज किया गया जिससे भूख-प्यास और आर्थिक तंगी से बेहाल जनमानस अपने घरों की ओर जाने हेतु संघर्ष करना प्रारम्भ कर दिया जिसे देखते हुए सरकार ने इन्हे इनके घर पहुंचाने का निर्णय लिया।
सरकार द्वारा कामगार जन समुदाय को घर पहुँचाने का निर्णय ऐसे समय में लिया गया जब देश में कोरोना संक्रमितों की संख्या दिन प्रति दिन बढ़ती जा रही है जिसका परिणाम यह हुआ कि घर पहुँचने की लालसा में बैठे हमारे कामगार राष्ट्र निर्माताओं ने अपनी जान जोखिम में डालकर किसी भी तरह अपने घर पहुँचने में लग गये जो उन्हें अनजाने हादसों की ओर ढ़केलने लगा। इस कार्य में भी सरकार द्वारा पूर्व में किसी भी प्रकार की समुचित व्यवस्था न करना एवं कोई दिशा निर्देश न दिया जाना सरकार की अस्पष्ट एवं अव्यवस्थित रणनीति की ओर इशारा करता है। सरकार के इस निर्णय में स्पष्टता एवं पारदर्शिता का पूर्णतः अभाव था, राज्यों से भी सामंजस्य का आभाव था जिसे पीड़ित कामगार समुदाय समझने में असफल रहा। सरकार की अस्पष्ट रणनीति का ही फल है कि जिजीविषा के संघर्ष में अब तक लगभग अलग-अलग हादसों में 100 राष्ट्र निर्माता कामगारों ने अपनी तथा अपने परिजनों की जान गवां दी। सबसे वीभत्स हादसा औरंगाबाद, औरैया और छिंदवाणा का था। विपक्ष द्वारा प्रारम्भ में ही लॉकडाउन लगाते समय कामगार राष्ट्र निर्माताओं के हितों को लेकर कई प्रश्न उठाए गए थे परन्तु सरकार ने उस समय सजगता से विचार नही किया जिसके फलस्वरूप दूर-दराज महफूज स्थित गाँवों में भी आज संक्रमण फैलने लगा है क्योंकि जो कामगार राष्ट्र निर्माता इतने दिनों तक अव्यवस्थित तरीके से देश के अलग-अलग शहरों में अपने जीवन निर्वाह हेतु संघर्ष किये और कहीं न कहीं भीड़ का हिस्सा बने जिससे वे संक्रमित हुए और जब वे अपने घर वापस आ रहें है तो उनके द्वारा गाँवों में भी संक्रमण देखने को मिलने लगा है।
सरकार की अव्यवस्थित रणनीति का प्रतिफल है कि कामगार राष्ट्र निर्माताओं के लिए निःशुल्क ट्रेन-बस चलाने का दावा भी खोखला साबित हुआ क्योंकि इसके लिए सरकार द्वारा कोई ठोस रणनीति नही बनायी गयी जिसके फलस्वरूप जनमानस से घर वापसी हेतु किराये की भी वसूली की गयी। तकरीबन 40 दिनों तक अंतर्राष्ट्रीय उड़ानों को रद्द करने के बाद सरकार ने विदेशों में फंसे भारतीयों को वापस लाने का अभियान 07 मई से प्रारम्भ किया जिसके तहत बारह देशों से चौदह हज़ार आठ सौ से अधिक भारतीयों को वापस लाया जाएगा, जो कार्य मार्च में ही पूरा कर लेना चाहिए था वह आज मई माह में करने की सोचना सरकार की अकुशल रणनीति को दर्शाता है। सरकार द्वारा कामगार राष्ट्र निर्माता लोगों के साथ की जा रही अनदेखी, यात्री भाड़ा की वसूली, हादसों के शिकार हो रहे जनमानस, तेजी से फैल रहे संक्रमण के बीच घर वापसी, शराब की बिक्री के फलस्वरूप उपजी अव्यवस्था आदि ऐसे तथ्य हैं जो सरकार की अस्पष्ट रणनीति की ओर संकेत करते हैं। इस कोरोना संकट में सरकार को आगे भी समय रहते अनेक निर्णय पुख्ता रणनीति के साथ लेने होंगे जिससे जनमानस को कम से कम मुसीबतों का सामना करना पड़े।
डॉ रामेश्वर मिश्र
हिन्द वतन समाचार की रिपोर्ट…