लखनऊ विश्वविद्यालय के तीन पूर्व कुलपति समेत पांच पर FIR…

लखनऊ विश्वविद्यालय के तीन पूर्व कुलपति समेत पांच पर FIR…

बुधवार, मार्च 11-3-2020 लखनऊ विश्वविद्यालय में एक और नया विवाद खड़ा हो गया है। इस बार प्रवक्ता पर फर्जीवाड़े से नियुक्ति का मामला उजागर हुआ है। इंदिरानगर सेक्टर नौ निवासी डॉ. प्रशांत पांडेय की तहरीर पर लविवि के तत्कालीन कुलपति प्रोफेसर आरपी सिंह, पूर्व कुलपति एसपी सिंह, एसके शुक्ला, पूर्व कुलसचिव अनिल कुमार देमले और प्रवक्ता पर आवेदन करने वाली कविता चतुर्वेदी के खिलाफ जालसाजी समेत अन्य धाराओं में हसनगंज कोतवाली में एफआइआर दर्ज की गई है।डॉ. प्रशांत के मुताबिक लविवि में 28 मार्च 2006 को प्रवक्ता पद पर नियुक्ति के लिए विज्ञापन जारी हुआ था। इसमें उन्होंने भी आवेदन किया था। आरोप है कि विवि के तत्कालीन कुलपति, कुलसचिव व अन्य अधिकारियों ने योग्यता न होने के बावजूद साजिश के तहत विपुल खंड गोमतीनगर निवासी कविता चतुर्वेदी को नियुक्ति प्रदान कर दी गई। वहीं अन्य अभ्यर्थियों के आवेदन पूर्ण नहीं होने की बात कहकर निरस्त कर दिया गया।फर्जीवाड़े की जानकारी होने पर डॉ. प्रशांत ने सूचना के अधिकार के तहत जानकारी मांगी तो कई षडय़ंत्र उजागर हुए। पड़ताल में पता चला कि कविता की ओर से पीएचडी ग्रहण करने की तिथि वर्ष 2005 लिखी गई थी, जबकि लविवि की ओर से इसकी प्रोविजिनल डिग्री 17 अगस्त 2006 को जारी की गई थी। डॉ. प्रशांत के मुताबिक उनकी शिकायत पर कविता की नियुक्ति रदद कर दी गई थी, लेकिन साजिश के तहत आरोपितों के भ्रष्टाचार को छिपाया गया। आरोप है कि कविता ने कूटरचित पीएचडी की डिग्री आवेदन में संलग्न किया था।प्रशांत का कहना है कि उन्होंने इस प्रकरण से संबंधित साक्ष्य तत्कालीन कुलपति एसपी सिंह व कुलसचिव एसके शुक्ला को भी उपलब्ध कराए थे। आरोप है कि साक्ष्यों के आधार पर कार्रवाई के बजाय कविता को दोबारा नियुक्ति दिलाने के प्रयास होने लगे। प्रशांत ने प्रधानमंत्री व मुख्यमंत्री कार्यालय में मामले की शिकायत की, जिसके बाद कार्रवाई के निर्देश दिए गए। आरोप है कि इन सबके बावजूद विवि के अधिकारी व कर्मचारी साक्ष्यों में छेड़छाड़ व कविता को बचाने में लगे हैं।प्रशांत का कहना है कि उनकी ओर से दिए गए प्रत्यावेदन के बावजूद तत्कालीन कुलपति एसपी सिंह व तत्कालीन कुलसचिव एसके शुक्ला जांच क्यों नहीं कराई गई? आखिर विवि प्रशासन ने दोषियों के खिलाफ एफआइआर क्यों नहीं कराई? प्रशांत का आरोप है कि भ्रष्टाचार के इस मामले में कविता चतुर्वेदी, तत्कालीन कुलपति प्रोफेसर आरपी सिंह, तत्कालीन कुलसचिव अनिल कुमार दमले, तत्कालीन कुलपति एसपी सिंह, तत्कालीन कुलसचिव व पूर्व कुलपति एसके शुक्ल संलिप्त हैं। प्रशांत की ओर से 30 अक्टूबर 2019 को हसनगंज कोतवाली में यह तहरीर दी गई थी। इस पर पुलिस की ओर से आठ मार्च को एफआइआर दर्ज की गई है।

हिन्द वतन समाचार की रिपोर्ट…