सरकार ने हाई कोर्ट से कहा-कानून का उल्लंघन करने वालों के लगाए गए पोस्टर, फैसला सुरक्षित…
मार्च सोमवार 9-3-2020 नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के खिलाफ लखनऊ में प्रदर्शन करने वालों का फोटो सहित पोस्टर व होर्डिंग लगाने के मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट में सुनवाई पूरी हो गई है। कोर्ट में यूपी सरकार की ओर से कहा गया कि प्रदर्शन के दौरान लोक व निजी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने वालों को हतोत्साहित करने के लिए यह कार्रवाई की गई है। कोर्ट में सरकार की ओर से कहा गया कि प्रदर्शन के दौरान लोक व निजी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने वालों को हतोत्साहित करने के लिए यह कार्रवाई की गई है। कोर्ट ने इस मामले में फैसला सुरक्षित कर लिया है। सोमवार को फैसला सुनाया जाएगा।रविवार का अवकाश होने के बावजूद इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश गोविंद माथुर व न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा की खंडपीठ ने इस प्रकरण पर सुनवाई की। लखनऊ प्रशासन की ओर से सार्वजनिक स्थलों पर होर्डिंग व पोस्टर में प्रदर्शनकारियों के चित्र लगाने को निजता के अधिकार का हनन मानते हुए हाई कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लेते हुए जनहित याचिका कायम की है। जनहित याचिका में सरकार से पूछा गया था कि किस कानून के तहत आंदोलन के दौरान हिंसा, तोड़फोड़ करने वालों की फोटो लगाई गई है? क्या सरकार बिना कानूनी उपबंध के निजता के अधिकार का हनन कर सकती है?उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से महाधिवक्ता राघवेंद्र सिंह ने बताया कि सड़क के किनारे उन लोगों के पोस्टर व होर्डिंग लगाए गए हैं, जिन्होंने कानून का उल्लंघन किया है। इन लोगों ने सार्वजनिक ही नहीं, लोगों की निजी संपत्ति को भी नुकसान पहुंचाया है। बाकायदा पड़ताल के बाद इन लोगों के नाम सामने आए तो कानून के मुताबिक पूरी प्रक्रिया अपनाई गई। उन्हें अदालत से नोटिस जारी किया गया। अदालत में उपस्थित न होने पर पोस्टर लगाने पड़े।कोर्ट ने जानना चाहा कि ऐसा कौन सा कानून है जिसके तहत ऐसे लोगों के पोस्टर सार्वजनिक तौर पर लगाए जा सकते हैं? महाधिवक्ता ने कहा कि ये कानून तोड़ने वाले लोग हैं। वह कानूनी प्रक्रिया से बच रहे हैं, इसलिए सार्वजनिक रूप से इनके बारे में इस तरह खुलासा किया गया। महाधिवक्ता ने ये सभी लोग कानून के मुजरिम हैं। वे कानून के जानकार हैं, इसलिए ऐसे लोगों के मामले में जनहित याचिका पोषणीय नहीं है।इसके पहले विशेष खंडपीठ ने सुबह 10 बजे सुनवाई शुरू की, लेकिन तब तक महाधिवक्ता कोर्ट नहीं पहुंच पाए। इससे सुनवाई तीन बजे तक के लिए टाल दी गई। फिर तीन बजे पुन: सुनवाई शुरू हुई। सरकार की तरफ से महाधिवक्ता के अलावा अपर महाधिवक्ता नीरज त्रिपाठी, अपर मुख्य स्थायी अधिवक्ता शशांक शेखर सिंह व अपर शासकीय अधिवक्ता मुर्तजा अली ने पक्ष रखा।बता दें कि सीएए व एनआरसी के विरोध में प्रदर्शन के दौरान हुई हिंसा में सरकारी व निजी संपत्तियों की भरपाई के लिए प्रशासन ने पांच मार्च को चिह्नित 53 उपद्रवियों से वसूली का अभियान शुरू किया है। इसके लिए प्रशासन ने क्षेत्रवार डुग्गी पिटवाना शुरू कर दिया है। राजधानी के प्रमुख चौराहों पर उपद्रवियों की तस्वीर वाली होर्डिंग भी लगवाई गई है। इसकी शुरूआत पांच मार्च से हो गई है। हजरतगंज सहित कई प्रमुख चौराहों पर इन चिह्नित उपद्रवियों की तस्वीर वाली होर्डिंग लगा दी गई है।जिलाधिकारी अभिषेक प्रकाश के मुताबिक, राजस्व कोर्ट स्तर से नुकसान की भरपाई के लिए उपद्रवियों के खिलाफ रिकवरी नोटिस जारी किया गया है। इस हिंसक प्रदर्शन में 1.61 करोड़ की संपत्ति का नुकसान हुआ है। आरोपियों से नुकसान की भरपाई के लिए प्रशासन ने सख्ती करनी शुरू कर दी है। वहीं, ठाकुरगंज पुलिस ने सीएए व एनआरसी के विरोध में प्रदर्शन में फरार मो. साहिल उर्फ मो. सादिक खान को गिरफ्तार किया है। नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में लखनऊ 19 दिसम्बर को ठाकुरगंज और कैसरबाग क्षेत्र में हुई हिंसा के आरोपियों के खिलाफ एडीएम सिटी (पश्चिम) की कोर्ट से वसूली आदेश जारी हुआ । मामले में जिलाधिकारी (लखनऊ) अभिषेक प्रकाश ने कहा कि हिंसा फैलाने वाले सभी जिम्मेदार लोगों के लखनऊ में पोस्टर व बैनर लगाए गए हैं। उन्होंने कहा सभी की संपत्ति की कुर्क की जाएगी। लखनऊ के सभी चौराहों पर पोस्टर्स तथा होर्डिंग लगाए गए हैं, जिससे उनके चेहरे बेनकाब हो सकें।डीएम ने कहा कि मजिस्ट्रेट की जांच में 57 लोग दोषी पाए गए। इन सभी दोषियों के खिलाफ संपत्ति कुर्क करने की कार्रवाई की जाएगी। उन्होंने कहा कि हिंसा के दौरान एक करोड़ 55 लाख रुपए के नुकसान की वसूली होनी है। सभी लोगों की पहचान कर ली गई है, किसी को छोड़ा नहीं जाएगा। ठाकुरगंज से 10 और कैसरबाग से छह आरोपियों को दोषी मानते हुए कुल 69 लाख 48 हजार 900 रुपए हर्जाना तय किया गया है।
हिन्द वतन समाचार की रिपोर्ट…