वाराणसी: बाप की जिंदगी की खातिर सड़क पर दौड़ा बेटा…

लखनऊ।हिन्द वतन समाचार…

वाराणसी: बाप की जिंदगी की खातिर सड़क पर दौड़ा बेटा…

बदहाल बनारस पर नहीं आती किसी को शर्म…

शास्त्री के आंगन से मालवीय की बगिया तक मयस्सर नहीं एम्बुलेंस…

मरीज को रिक्शा ट्राली पर लादकर लाल बहादुर शास्त्री चिकित्सालय से बीएचयू ले गए परिजन…

वाराणसी/उत्तर प्रदेश: रिक्शा ट्राली पर कंबल से लिपटा बेसुध पड़ा मरीज, उसे लगे इंजेक्शन की बोतल हाथ में लिए भागते परिजन, पिता की जान बचाने के लिए ट्राली को पैदल ही लेकर दौड़ता बेटा और आस-पास तमाशबीन लोग। चौंकिए मत, यह दृश्य किसी पिछड़े गांव-गिरांव की नहीं बल्कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के संसदीय क्षेत्र और स्मार्ट सिटी वाराणसी के रामनगर की है।केन्द्र सरकार और प्रदेश सरकार के मुखिया अपनी सभाओं में चिल्ला-चिल्लाकर गरीबों की स्वास्थ्य सेवाएं बेहतर होने की बात करते हैं। सरकार के रजिस्टर में स्वास्थ्य सुविधाओं और योजनाओं की झड़ी लगी पड़ी है। ढिंढोरा पीट-पीटकर यह बताया जा रहा है कि देश का गरीब अब सुविधासम्पन्न हो चुका है। पर इसके उलट जमीनी हकीकत यह है कि एक गरीब इलाज के लिए दर-दर भटक रहा है और मंत्री-अधिकारी चादर तान कर कुंभकर्णी निद्रा में सो रहे हैं। प्रदेश में 24 घंटे एम्बुलेंस की सुविधा का दावा है पर यह दावा भी छलावा साबित हो रहा है नार्मल तो छोड़िए इमरजेंसी में भी लोगों को एम्बुलेंस मयस्सर नहीं है। जिसके चलते मजबूरी में जान बचाने के लिए गरीबों को रिक्शा-ट्राली से अपने मरीजों को हॉस्पिटल ले जाना पड़ रहा है।

दो घंटे बाद आएगी एम्बुलेंस:

रामनगर चौराहे से कुछ पहले बुधवार को एक ऐसा ही दृश्य देखकर रूह कांप गई। दरअसल नई बस्ती, बघेली टोला के निवासी महेन्द्र प्रताप(58) तबीयत बुधवार की सुबह अचानक खराब हो गई। पेट में असहनीय दर्द होने लगा और वे रह-रह कर बेसुध भी हो जा रहे थे। उनका बेटा भानु और उसके एक साथी ने एम्बुलेंस को फोन किया तो उधर से आवाज आई कि एम्बुलेंस दो घंटे बाद आएगी। भानु ने अपनी सगड़ी (रिक्शा ट्राली) पर ही अपने पिता को लादकर किसी तरह भागते हुए लाल बहादुर शास्त्री चिकित्सालय के इमरजेंसी में पहुंचा। जहां डॉक्टर ने देखते ही मरीज की हालत बेहद गंभीर बताते हुए उसे बीएचयू के लिए रेफर कर दिया।

सगड़ी पर लगी थी बोतल और दौड़ रहा था बेटा:

डॉक्टर ने महेन्द्र के हाथ में इंजेक्शन लगाकर उसका बोतल उसके परिजन को पकड़ा दिया और कहा कि इसे जल्दी बीएचयू ले जाओ। परिजनों ने हॉस्पिटल में भी एम्बुलेंस के लिए फोन किया तो वहां भी जवाब आया कि दो घंटे बाद आएगा। जबकि हॉस्पिटल में 24 घंटे एम्बुलेंस की सुविधा होती है। इसके बाद मजबूरीवश बेटे ने बाप को फिर सगड़ी पर लिटाकर एक साथी को इंजेक्शन की बोतल पकड़ाकर बीएचयू के लिए चल दिया। बीएचयू में जल्दी पहुंचने के लिए वह भागे जा रहा था।

भैया, हम गरीबों के लिए कोई नहीं:

बीच रास्ते में मुलाकात हुई, पूछने पर भानु ने कहा भैया, गरीबों के लिए कोई नहीं है और न ही गरीबों का दर्द कोई सुनने-समझने वाला है। हर जगह हमारे साथ लापरवाही हो रही है, क्या करें कुछ करने भर भी सक्षम नहीं हैं। वह बीएचयू पहुंचा या नहीं। रास्ते में उसके पिता के प्राण पखेरू उड़ गए कि वे बच गए यह तो भगवान जाने। लेकिन इस दृश्य ने उत्तर प्रदेश सरकार की स्वास्थ्य सुविधाओं की पोल खोल कर रख दी। गरीबों की स्थिति आज भी वही है जो पहले थी बस उन्हें विकास का ऊपरी आवरण ओढ़ा कर उनके वोटबैंक पर नजर रखा जा रहा है।कोई कम्यूनिकेशन गैप होगी इसलिए उन्हे असुविधा हुई होगी। वैसे हॉस्पिटल में हमेशा एम्बुलेंस की सुविधा है। कभी इमरजेंसी में भी 20-30 मीनट के अंदर एम्बुलेंस आ जाती है। उन्हें एम्बुलेंस क्यों नहीं मिली मैं इस सन्दर्भ में चिकित्सालय में बात करता हूं।

डॉक्टर वीबी सिंह, मुख्य चिकित्साधिकारी

108 एम्बुलेंस की जो सेवा है, उसका हॉस्पिटल से कोई संबंध नहीं है। आप जब 108 पर कॉल करते हैं तो वह कॉल लखनऊ जाती है, वहां से वे लोग एम्बुलेंस भेजते हैं। अगर आपको कोई ऐसी असुविधा हुई है तो आपको 108 पर या सीएमओ साहब से शिकायत करनी चाहिए। वैसे 108 एम्बुलेंस की सेवा का हाल बेहाल है। जब वाराणसी के डीएम सुरेन्द्र सिंह थे तो उन्होंने आम आदमी बनकर एक बार 108 पर फोन किया था पर वहां से लोकेशन आदि का पूछा जाने लगा, काफी देर हुआ पर एम्बुलेंस नहीं पहुंच डॉक्टर कमल कुमार, सीएमएस लाल बहादुर शास्त्री चिकित्सालय, रामनगर

हिन्द वतन समाचार की रिपोर्ट…