कार्बन शुल्क के प्रति उद्योग को किया आगाह…

कार्बन शुल्क के प्रति उद्योग को किया आगाह…

नई दिल्ली, 17 दिसंबर। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने विकसित देशों द्वारा शुल्क बढ़ाए जाने से इस्पात जैसे उद्योगों की लागत पर पड़ने वाले संभावित असर के प्रति भारतीय उद्योग को आज आगाह किया। साथ ही उन्होंने उद्योग से सुझाव मांगे कि सरकार ऐसे क्षेत्रों को हरित ऊर्जा या कम कार्बन उत्सर्जन वाला बनाने में किस तरह मदद कर सकती है।

यूरोपीय संघ द्वारा कार्बन सीमा समायोजन तंत्र (सीबीएएम) पर बीते मंगलवार को सहमति जताई गई थी। लेकिन सीतारमण ने इसका नाम लिए बगैर कहा कि कुछ देश इस्पात जैसे उत्पादों के लिए गैर-हरित के बजाय हरित सामग्री अपनाने के लिए रकम उन देशों के उत्पादों पर कर लगाकर जुटाना चाहते हैं, जो सामान्य तरीके से अपने उत्पादों का निर्यात करते हैं।

भारतीय वाणिज्य एवं उद्योग महासंघ (फिक्की) के एक कार्यक्रम में सीतारमण ने कहा, ‘इसलिए जब आप स्टील का निर्यात करने जाएंगे तो जलवायु कार्रवाई कर के नाम पर इस शुल्क की बाधा आपके सामने आएगी। इसका असर हम पर भी पड़ने जा रहा है। इसलिए राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित भारत की प्रतिबद्धताओं को पूरा करने और उद्योग को नए सिरे से ढालने की आवश्यकता को जल्दी से समझना होगा ताकि जलवायु परिवर्तन के नाम पर नए शुल्क की बाधा का सामना करने के लिए हम तैयार हो सकें।’

वित्त मंत्री ने कहा, ‘जब आप खुद को इसके लिए तैयार कर रहे होते हैं तो एक भूमिका होती है जिसे सरकार और उद्योग मिलकर निभा सकते हैं। इसमें कूटनीति से मदद मिलती है और नीति से भी। मैं चाहती हूं कि उद्योग खुद पर पड़ने वाले बोझ के लिए तैयार रहें और यह भी सोचें कि उस लागत के बोझ को कम कैसे किया जाए।’

अर्थव्यवस्थाओं को 2050 तक कार्बन मुक्त करने की योजना के तहत यूरोपीय आयोग ने मंगलवार को सीबीएएम पर राजनीतिक सहमति जताई। इसके तहत सीमेंट, लौह एवं इस्पात, एल्युमीनियम, उर्वरक, बिजली तथा हाइड्रोजन जैसे आयातित उत्पादों पर कार्बन शुल्क लगाया जाएगा ताकि यूरोप में महत्त्वाकांक्षी जलवायु कार्रवाई यूरोप के बाहर कार्बन के ज्यादा उत्सर्जन वाले उत्पादन को बढ़ावा न दे।

हालांकि कई देश विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) में ऐसी किसी भी कार्रवाई को चुनौती दे सकते हैं क्योंकि यह अक्टूबर 2023 से चरणबद्ध तरीके से लागू होने पर उनके उद्योग और निर्यात को सीधे प्रभावित करेगा। एक अनुमान के मुताबिक इससे भारत को निर्यात पर सबसे ज्यादा 3 अरब डॉलर का नुकसान होगा। इसके बाद ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका जैसे देश ज्यादा प्रभावित होंगे।

ईएसजी (पर्यावरण, सामाजिक और प्रशासन) पर एक हालिया रिपोर्ट में फिक्की ने कहा कि सीबीएएम के शुरू होने के बाद अंतरराष्ट्रीय व्यापार प्रतिस्पर्धा संबंधी चिंता पैदा हो जाएगी और भारतीय कंपनियों के प्रोत्साहन पर फिर विचार करना पड़ सकता है।

रिपोर्ट में कहा गया है, ‘भारतीय निर्यातकों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धा और अपनी फर्म तथा आपूर्ति श्रृंखला को कार्बन-मुक्त करने का संबंध सीधे तौर पर दिखेगा। इसके साथ ही जिन राज्यों में वे परिचालन करते हैं, वहां बिजली प्रणाली पर भी इसका असर दिखेगा। यह इस बात पर निर्भर करेगा कि देश में उत्पादन कहां होता है: निजी कंपनियां उन राज्यों से बच सकती हैं जिनके पास नवीकरणीय ऊर्जा खरीदने के लिए कम संसाधन हैं और जहां डिस्कॉम की आपूर्ति में नवीकरणीय ऊर्जा की हिस्सेदारी काफी कम है।’

सीतारमण ने संकेत दिए कि आगामी बजट में भी पहले की तरह वृद्धि पर जोर दिया जाएगा। उन्होंने कहा, ‘यह मेरे लिए बहुत प्रेरणादायक और प्रेरित करने वाला है, खास तौर पर ऐसे समय में जब हम देश के लिए अगला बजट तैयार कर रहे हैं। यह बजट भी पिछले बजटों की भावना के अनुरूप होगा।

हम ऐसा खाका तय करने जा रहे हैं, जिसका पालन कर हम भारत को अगले 25 वर्षों के लिए आगे ले जाएंगे।’ वित्त मंत्री ने भारतीय उद्योग से कहा कि वह विकसित देशों के कारोबार की तरह रणनीति बनाएं ताकि पश्चिमी देशों की आसन्न मंदी के डर से भारत को उत्पादन या आपूर्ति के केंद्र के तौर पर देखा जाए।

हिन्द वतन समाचार की रिपोर्ट…