नवंबर में मामूली बढ़ा वाणिज्यिक निर्यात…
नई दिल्ली, 17 दिसंबर। भारत के वाणिज्यिक वस्तुओं के निर्यात में नवंबर में महज 0.59 प्रतिशत बढ़ोतरी हुई है। जबकि, विकसित अर्थव्यवस्थाओं में मंदी, भूराजनीतिक तनाव और बाहरी मांग कम होने की वजह से विदेश भेजी जाने वाली खेप घटी है। पिछले महीने की तुलना में वृद्धि 7 प्रतिशत है। एक साल की सतत वृद्धि के बाद जुलाई से निर्यात की वृद्धि घटनी शुरू हुई। उसके बाद पिछले महीने दो साल में पहली बार भारत के वाणिज्यिक वस्तुओं के निर्यात में संकुचन आया था क्योंकि त्योहारी सीजन जैसी घरेलू वजहों के साथ बाहरी कारणों से मांग प्रभावित हुई।
वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के आंकड़ों से पता चलता है कि आयात में 5.6 प्रतिशत बढ़ोतरी हुई है, लेकिन नवंबर में यह 10 माह के निचले स्तर 55.88 अरब डॉलर पर है। व्यापार घाटा 7 माह के निचले स्तर पर है, वहीं यह 23.89 अरब डॉलर के उच्च स्तर पर बना हुआ है, जबकि पिछले साल नवंबर में यह 21.23 अरब डॉलर था। बहरहाल सरकारी अधिकारियों का कहना है कि आयात में वृद्धि तेज घरेलू मांग का संकेतक है। इससे यह भी संकेत मिलता है कि अन्य देशों की तुलना में भारतीय अर्थव्यवस्था में मजबूत वृद्धि हुई है। अगर कुल मिलाकर देखें तो अप्रैल से नवंबर के दौरान पिछले साल की समान अवधि की तुलना में निर्यात में 11 प्रतिशत वृद्धि हुई है और यह 295.26 अरब डॉलर रहा है।
वाणिज्य विभाग में अतिरिक्त सचिव एल सत्य श्रीनिवास ने कहा कि वैश्विक थपेड़ों के बावजूद अब तक भारत ने मजबूती से काम किया है। इसके अलावा मामूली वृद्धि कुछ हद तक आधार का असर ज्यादा होने की वजह से है। श्रीनिवास ने संवाददाताओं से कहा, ‘डब्ल्यूएचओ, आईएमएफ, अंकटाड के अनुमान बहुत साफ हैं कि मंदी चल रही है। खासकर वित्त वर्ष की दूसरी छमाही और यहां तक कि अगले साल भी इसका असर रहेगा। कोविड के दौरान दिए प्रोत्साहनों का असर धीरे धीरे कम हो रहा है। हम ब्याज दरों और बढ़ती महंगाई से भी अवगत हैं और अब महंगाई कुछ कम होने के संकेत हैं। आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान के बाद इसे नए सिरे से व्यवस्थित करने और हरित वैश्विक अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ने की कवायद हो रही है। यह वैश्विक संदर्भ हैं और आंकड़ों को इससे जोड़कर देखने की जरूरत है।’
नवंबर महीने में 30 में से रेडीमेड परिधान, इलेक्ट्रॉनिक सामान, फार्मास्यूटिकल्स, चावल, रत्न एवं आभूषण सहित 15 क्षेत्रों में पिछले साल की तुलना में बढ़ोतरी हुई है। वहीं इंजीनियरिंग के सामान, हैंडलूम के उत्पाद, लौह अयस्क, रसायन व अन्य क्षेत्रों में निर्यात में कमी आई है। वाणिज्य विभाग के एक आधिकारिक बयान में कहा गया है कि इंजीनियरिंग के सामान और लौह अयस्क उत्पादों के निर्यात में गिरावट की वजह बड़े कारोबारी साझेदार देशों में मांग की कमी है, क्योंकि वहां आर्थिक गतिविधियां सुस्त हुई हैं।
इसके अलावा स्टील पर 15 प्रतिशत निर्यात शुल्क का असर भी इंजीनियरिंग के निर्यात पर पड़ रहा है, इसके हटने पर अब कुछ सुधार होने की संभावना है। कपड़े रंगने की डाई और कार्बनिक रसायनों का निर्यात कम हुआ है क्योंकि चीन, तुर्की और बांग्लादेश के कपड़ा बाजारों में मांग कम है। वैश्विक मांग में कमी के कारण टेक्टाइल के निर्यात में कमी आई है, क्योंकि विकसित देशों में क्रय शक्ति घटने के कारण लोगों ने कपड़े पर खर्च कम कर दिया है। भारत के प्लास्टिक उद्योग के सामने भी इस साल चुनौतियां हैं क्योंकि अमेरिका और यूरोप में मंदी के संकेत हैं। गैर पेट्रोलियम और गैर रत्न एवं आभूषणों का निर्यात, जिन्हें प्रमुख निर्यात माना जाता है, इसमें पिछले साल की समान अवधि की तुलना में 0.7 प्रतिशत की मामूली बढ़ोतरी हुई है और यह 24.09 अरब डॉलर रहा है।
एमवीआईआरडीसी वर्ल्ड ट्रेड सेंटर मुंबई के चेयरमैन विजय कलांत्री ने कहा, ‘त्योहारों के पहले की खरीदारी के कारण पश्चिमी देशों में स्टॉक जमा किए जाने के कारण नवंबर में निर्यात के प्रदर्शन को समर्थन मिला है। उसके बाद हमने देखा कि रेडीमेड गार्मेंट्स, चमड़े और रत्न एवं आभूषण के साथ इलेक्ट्रॉनिक्स और कृषि जिंसों के निर्यात में तेजी आई।’ फियो के अध्यक्ष ए शक्तिवेल ने कहा कि जिंस की कीमतों में गिरावट और कुछ निर्यातों पर प्रतिबंध का भी वृद्धि के आंकड़ों पर असर पड़ा है। शक्तिवेल ने कहा, ‘अगर आगे की स्थिति देखें तो फेड दरों में आगामी बढ़ोतरी का भी दबाव पड़ सकता है। साथ ही बैंक आफ इंगलैंड भी दर में बढ़ोतरी कर रहा है। आने वाले महीने कुछ चुनौतीपूर्ण हो सकते हैं, अगर वैश्विक आर्थिक वृद्धि और भूराजनैतिक स्थिति में सुधार नहीं होता है।’
हिन्द वतन समाचार की रिपोर्ट…
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