श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह पर नहीं पहुंचा चीनी अनुसंधान पोत…
कोलंबो,। चीन का एक उन्नत अनुसंधान पोत अपने निर्धारित कार्यक्रम के तहत दक्षिणी श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह पर नहीं पहुंचा। श्रीलंका के बंदरगाह प्राधिकरण ने शुक्रवार को यह जानकारी दी। भारत ने द्वीपीय देश में इस पोत की मौजूदगी को लेकर चिंता जताई थी।
चीन के बैलिस्टिक मिसाइल एवं उपग्रह निगरानी पोत ‘युआन वांग 5’ को बृहस्पतिवार को हंबनटोटा बंदरगाह पर पहुंचना था और ईंधन भरने के लिए 17 अगस्त तक वहीं रुकना था।
हालांकि, श्रीलंका बंदरगाह प्राधिकरण (एसएलपीए) के बंदरगाह प्रमुख ने बताया कि चीनी पोत अपने निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार हंबनटोटा बंदरगाह पर नहीं पहुंचा। स्थानीय अधिकारियों के मुताबिक, पोत हंबनटोटा से 600 समुद्री मील दूर पूर्व में खड़ा है और बंदरगाह में प्रवेश की अनुमति मिलने का इंतजार कर रहा है।
बारह जुलाई को श्रीलंका के विदेश मंत्रालय ने चीनी पोत को हंबनटोटा बंदरगाह पर खड़ा करने की मंजूरी दे दी थी। हालांकि, आठ अगस्त को मंत्रालय ने कोलंबो स्थित चीनी दूतावास को पत्र लिखकर जहाज की प्रस्तावित डॉकिंग (रस्सियों के सहारे जहाज को बंदरगाह पर रोकना) को स्थगित करने का अनुरोध किया था।
हालांकि, उसने इस आग्रह के पीछे की वजह स्पष्ट नहीं की। उस समय तक ‘युआन वांग 5’ हिंद महासागर में दाखिल हो चुका था।
भारत ने सुरक्षा चिंताओं के मद्देनजर पोत के हंबनटोटा में रुकने पर कड़ी आपत्ति दर्ज कराई थी, जिसके बाद श्रीलंका ने प्रस्तावित डॉकिंग को टालने का आग्रह किया।
एसएलपीए ने कहा कि हंबनटोटा बंदरगाह का प्रभार पहले ही एक चीनी कंपनी के पास है, लेकिन इसके नौवहन और परिचालन से जुड़े मुद्दे उसके अधीन आते हैं।
श्रीलंका के विपक्षी दलों ने चीनी पोत की डॉकिंग से जुड़े मुद्दे को गलत तरीके से संबोधित करने के लिए सरकार को दोषी ठहराया है।
सत्तारूढ़ श्रीलंका पोदुजाना पेरामुना पार्टी से अलग हुए पांच दलीय गुट ने एक संयुक्त बयान जारी कर आग्रह किया कि जहाज को हंबनटोटा जाने की अनुमति दी जाए।
हंबनटोटा बंदरगाह को उसकी लोकेशन के चलते रणनीतिक लिहाज से बेहद अहम माना जाता है। इस बंदरगाह का निर्माण मुख्यत: चीन से मिले ऋण की मदद से किया गया है।
भारत ने कहा है कि वह अपनी सुरक्षा और आर्थिक हितों पर प्रभाव डालने वाले हर घटनाक्रम पर करीबी नजर रख रहा है।
नयी दिल्ली में चीनी पोत की प्रस्तावित यात्रा से जुड़ी खबरों के बारे में पूछे जाने पर विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहा था, “हम अगस्त में चीनी पोत की हंबनटोटा की प्रस्तावित यात्रा से जुड़ी खबरों से वाकिफ हैं। सरकार भारत की सुरक्षा और आर्थिक हितों पर प्रभाव डालने वाले हर घटनाक्रम पर करीबी नजर रखती है तथा उनकी रक्षा के लिए हर जरूरी कदम उठाती है।”
भारत चीनी पोत द्वारा श्रीलंकाई बंदरगाह पर पहुंचने के दौरान रास्ते में पड़ने वाले भारतीय प्रतिष्ठानों की जासूसी किए जाने की आशंकाओं को लेकर चिंतित है।
भारत ने हिंद महासागर में चीन के सैन्य जहाजों के प्रवेश को लेकर हमेशा से ही कड़ा रुख अपनाया है। उसने अतीत में श्रीलंका के समक्ष इस तरह की यात्राओं को लेकर कड़ा विरोध दर्ज कराया है। साल 2014 में श्रीलंका द्वारा चीन की एक परमाणु पनडुब्बी को अपने बंदरगाह पर रुकने की अनुमति दिए जाने के बाद नयी दिल्ली और कोलंबो के रिश्तों में दरार पड़ गई थी।
हिन्द वतन समाचार” की रिपोर्ट…