उच्चतम न्यायालय का देश भर में बच्चों के लिए समान पाठ्यक्रम के अनुरोध वाली याचिका पर सुनवाई से इनकार…
नई दिल्ली, 11 फरवरी। उच्चतम न्यायालय ने शिक्षा का अधिकार अधिनियम (आरटीई)-2009 की कुछ धाराओं के खिलाफ दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई से शुक्रवार को इनकार कर दिया। याचिका में आरटीई की इन धाराओं को ‘‘मनमाना और तर्कहीन’’ बताते हुए देश भर में बच्चों के लिए एक समान पाठ्यक्रम शुरू करने का अनुरोध किया गया था।
न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति बी आर गवई की पीठ ने याचिकाकर्ता अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय से कहा कि उन्हें इस संबंध में उच्च न्यायालय जाना होगा। इस पर उपाध्याय ने अपनी याचिका वापस लेने का अनुमति चाही। पीठ ने इसकी अनुमति देते हुए याचिका खारिज कर दी।
पीठ ने स्पष्ट किया कि वह मामले के गुण-दोष पर कोई राय व्यक्त नहीं कर रही है। पीठ ने कहा, ‘‘आप उच्च न्यायालय क्यों नहीं जाते? आप संशोधन के 12 साल बाद आए हैं।’’ याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता रंजीत कुमार पेश हुए।
याचिका में कहा गया है कि आरटीई अधिनियम की धारा 1 (4) और 1 (5) संविधान की व्याख्या करने में सबसे बड़ी बाधा है और मातृभाषा में एक साझा पाठ्यक्रम नहीं होने से अज्ञानता को बढ़ावा मिलता है।
याचिका में कहा गया है कि एक साझा शिक्षा प्रणाली को लागू करना केंद्र का कर्तव्य है लेकिन यह इस आवश्यक दायित्व को पूरा करने में विफल रहा है क्योंकि इसने 2005 के पहले से मौजूद राष्ट्रीय पाठ्यक्रम ढांचे (एनसीएफ) को अपनाया है।
अश्विनी उपाध्याय ने याचिका में कहा था, ‘‘केंद्र ने मदरसों, वैदिक पाठशालाओं और धार्मिक शिक्षा प्रदान करने वाले शैक्षणिक संस्थानों को शैक्षिक उत्कृष्टता से वंचित करने के लिए एस 1(4) और 1 (5) डाला। याचिकाकर्ता ने दलील दी कि एस 1 (4) और 1 (5) न केवल अनुच्छेद 14, 15, 16, 21, 21ए का उल्लंघन करता है, बल्कि अनुच्छेद 38, 39 और 46 और प्रस्तावना के विपरीत भी है।’’
याचिका में कहा गया था कि मौजूदा प्रणाली सभी बच्चों को समान अवसर प्रदान नहीं करती है क्योंकि समाज के प्रत्येक वर्ग के लिए पाठ्यक्रम भिन्न हैं। दुबे ने कहा, ‘‘यह बताना आवश्यक है कि अनुच्छेद 14, 15, 16, 21, 21ए का अनुच्छेद 38, 39, 46 के साथ उद्देश्यपूर्ण और सामंजस्यपूर्ण निर्माण इस बात की पुष्टि करता है कि शिक्षा हर बच्चे का मूल अधिकार है और राज्य इस सबसे महत्वपूर्ण अधिकार के खिलाफ भेदभाव नहीं कर सकता है।’’
याचिका में कहा गया था , ‘‘एक बच्चे का अधिकार केवल मुफ्त शिक्षा तक ही सीमित नहीं होना चाहिए, बल्कि बच्चे की सामाजिक आर्थिक और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि के आधार पर भेदभाव रहित समान गुणवत्ता वाली शिक्षा प्राप्त करने के लिए इसे विस्तारित किया जाना चाहिए। इसलिए, न्यायालय से अनुरोध है कि वह धारा 1 (4) और 1 (5) को मनमाना, तर्कहीन और अनुच्छेद 14, 15, 16 और 21 का उल्लंघन करने वाला घोषित करे तथा केंद्र को पूरे देश में पहली से आठवीं कक्षा के छात्रों के लिए साझा पाठ्यक्रम लागू करने का निर्देश दे।’’
याचिका के अनुसार 14 साल तक के बच्चों के लिए एक साझा न्यूनतम शिक्षा कार्यक्रम से साझा संस्कृति संहिता को प्राप्त किया जा सकेगा और यह असमानता, मानवीय संबंधों में भेदभावपूर्ण मूल्यों को दूर करेगा।
हिन्द वतन समाचार की रिपोर्ट…