कुंभलगढ़ अभयारण्य में तीन दशक बाद नजर आया लुप्तप्राय काराकल

कुंभलगढ़ अभयारण्य में तीन दशक बाद नजर आया लुप्तप्राय काराकल

पाली, 13 अक्टूबर। पाली व राजसमंद की सीमा पर आबाद कुंभलगढ वन्यजीव अभयारण्य में लुप्त वन्यजीव काराकल तीन दशक के बाद नजर आया है। यह दूसरी जंगली बिल्ली है, जो चीतों के बाद विलुप्त होने के कगार पर है। मध्यम आकार की जंगली बिल्ली की उपस्थिति अभयारण्य से लगभग डेढ़ किमी दूर स्थित एक बीजापुर रिसाेर्ट में पाई गई है। रिसाेर्ट से काराकल

के फोटोग्राफ के साक्ष्य मिलने के बाद वन विभाग हरकत में आ गया। अब रिसाेर्ट के आस-पास कैमरे लगाकर दो किलोमीटर क्षेत्र में जांच की जा रही है। राजसमंद डीएफओ फतेहसिंह राठौड़ ने बताया कि पिछले वर्ष वन कर्मचारियों ने दावा किया था कि उन्होंने काराकल को देखा था। लेकिन इसके ठोस सबूत नहीं मिले। अभयारण्य में उपयुक्त घास का मैदान है। पिछले वर्ष अंतरराष्ट्रीय जनरल आऊफ थ्रेटड टैक्सा में प्रकाशित एक रिपाेर्ट में कहा गया था कि 2001 के बाद से कुल 24 काराकल देखे

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जाने की सूचना मिली है, जो देश में सबसे अधिक होने का दावा है। भारतीय वन्यजीव अधिनियम की अनूसूची 1 के तहत यह जीव संरक्षित है। विभागीय अधिकारियों की मानें तो काराकल के लंबे व गुच्छेदार काले कान हाेते हैं। काले कान की वजह से इसका यह नाम पड़ा है। यह बहुत ही फुर्तीले हाेते हैं। दस फीट तक छलांग लगाकर शिकार कर सकते हैं। युवा काराकल में

लाल रंग के धब्बे, आंखाें के उपर काले धब्बे और आंखाें व नाक के आस-पास छाेटे सफेद धब्बाें के अलावा अन्य निशान नहीं हाेते हैं। ठाेडी और नीचे का भाग सफेद हाेता है। राठौड़ ने बताया कि कुंभलगढ वन्यजीव अभयारण्य के पास स्थित बीजापुर रिसाेर्ट में विलुप्त काराकल देखा गया है। जो करीब तीन दशक के बाद नजर आया है। टीम को रिसाेर्ट भेजा गया है।

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