मन की बात/लाक डाउन ने बदला नजरिया, पुलिस पर बढ़ा जनता का भरोसा…
बोले पीएम पहले से ज्यादा रमजान में करें इबादत ताकि अगली ईद खुशियों से मने…
जाने विन्दुवार पीएम ने क्या कहा…
अप्रैल रविवार 26-4-2020 नई दिल्ली:-। महीने के आखिरी रविवार को अपने 64 वें एडिशन में ‘मन की बात’ करते हुए प्रधानमंत्री ने कोरोना वैरियर्स का मनोबल बढ़ाया, साथ ही देश की जनता का भी आभार व्यक्त करते हुए कहा कि अन्य देश के राष्ट्राध्यक्ष जब कहते है ‘थैक्यू इंडिया’ और ‘थैक्यू पीपुल ऑफ इंडिया’ को देश के लिए गर्व की बात होती है। पीएम ने नरेंद्र मोदी ने कोरोना वायरस के खिलाफ जंग पर चर्चा करते हुए कहा कि ताली, थाली, दीया, मोमबत्ती, इन सारी चीज़ों ने जिन भावनाओं को जन्म दिया। इस जज्बे से देशवासियों ने कुछ-न-कुछ करने की ठान ली, हर किसी को इन बातों ने प्रेरित किया है।
पीएम ने कहा आज जब आपसे मैं ‘मन की बात’ कर रहा हूं तो ‘अक्षय तृतीया’ का पवित्र पर्व भी है। साथियों ‘क्षय’ का अर्थ होता है विनाश लेकिन जो कभी नष्ट नहीं हो, जो कभी समाप्त नहीं हो, वह अक्षय है। अपने घरों में हम सब इस पर्व को हर साल मनाते हैं, लेकिन इस साल हमारे लिए इसका विशेष महत्व है। आज के कठिन समय में यह एक ऐसा दिन है जो हमें याद दिलाता है कि हमारी आत्मा, हमारी भावना, अक्षय है। यह दिन हमें याद दिलाता है चाहे कितने भी कठिनाइयां रास्ता रोके, चाहे कितना भी आपदाएं आए, चाहे कितनी भी बीमारियों का सामना करना पड़े, इनसे लड़ने और जीतने की मानवीय भावनाएं ‘अक्षय’ हैं। क्या आप जानते हैं कि अक्षय तृतीया का पर्व दान की शक्ति यानी पावर आफ गिविंग का भी एक अवसर होता है हम हृदय की भावना से जो कुछ भी देते हैं वास्तव में महत्व उसी का होता है यह बात महत्वपूर्ण नहीं है कि हम क्या देते हैं और कितना देते हैं संकट के इस दौर में हमारा छोटा सा प्रयास हमारे आसपास के बहुत से लोगों के लिए बहुत बड़ा संबल बन सकता है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि रमजान का भी पवित्र महीना शुरू हो चुका है जब पिछली बार रमजान मनाया गया था तो किसी ने सोचा भी नहीं था कि इस बार रमजान में इतनी बड़ी मुसीबतों का भी सामना करना पड़ेगा। लेकिन अब जब पूरे विश्व में यह मुसीबत आ ही रही है तो हमारे सामने अवसर है इस रमजान को संयम, सद्भावना, संवेदनशीलता और सेवा-भाव का प्रतीक बनाएं। इस बार हम पहले से ज्यादा इबादत करें ताकि ईद आने से पहले दुनिया कोरोना वायरस हम पहले की तरह उमंग और उत्साह के साथ ईद मनाए। मुझे विश्वास है कि रमजान के इन दिनों में स्थानीय प्रशासन के दिशा-निर्देशों का पालन करते हुए उनके खिलाफ चल रही इस लडाई को और मजबूत करेंगे, सड़कों पर, बाजारों में, मोहल्लों में, फिजिकल डिस्टेंसिंग के नियमों का पालन अभी बहुत आवश्यक है। मैं आज उन सभी कैम्युनिटी लीडर्स के प्रति भी आभार प्रकट करता हूं जो दो गज दूरी और घर से बाहर नहीं निकलने को लेकर लोगों को जागरूक कर रहे हैं।
👉जाने विन्दुवार पीएम ने क्या कहा…
प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत की कोरोना के खिलाफ लड़ाई सही मायने में पिपल ट्राइविन है। भारत में कोरोना के खिलाफ लड़ाई जनता लड़ रही है, आप लड़ रहे हैं, जनता के साथ मिलकर शासन-प्रशासन लड़ रहा है, भारत जैसे विशाल देश जो विकास के लिए प्रयत्नशील है,गरीबी से निर्णायक लड़ाई लड़ रहा है। उसके पास तो कोरोना से लड़ने और जीतने का यही एक तरीका है और हम भाग्यशाली हैं कि आज पूरा देश, देश का हर नागरिक, जन-जन इस लड़ाई का सिपाही है लड़ाई का नेतृत्व कर रहा है। आप कही पर भी नजर डालिए, आपको एहसास हो जाएगा कि भारत की लड़ाई पीपुल ड्राइवेन है। जब पूरा विश्व इस महामारी के संकट से जूझ रहा है। भविष्य में जब इसकी चर्चा होगी, उससे तौर-तरीकों की चर्चा, होगी मुझे विश्वास है कि भारत की यह अपील ड्राइविंग लड़ाई इसकी जरूर चर्चा होगी।
पूरे देश में गली-मोहल्लों में, जगह जगह पर, आज लोग एक दूसरे की सहायता के लिए आगे आए हैं। गरीबों के लिए खाने से लेकर, राशन की व्यवस्था हो, लॉकडाउन का पालन हो, अस्पतालों की व्यवस्था हो, मेडिकल इक्विपमेंट का देश में ही निर्माण हो- आज पूरा देश एक लक्ष्य एक दिशा साथ साथ चल रहा है। ताली, थाली, दीया, मोमबत्ती, इन सारी चीजों ने जो भावनाओं का जन्म दिया। जिस जज्बे से देशवासियों ने कुछ ना कुछ करने की ठान ली। हर किसी को इन बातों ने प्रेरित किया है। शहर हो या गांव ऐसा लग रहा है जैसे देश में एक बहुत बड़ा महायज्ञ चल रहा है। जिसमें हर कोई अपना योगदान देने के लिए आतुर है।
हमारे किसान भाई-बहनों को ही देखिए एक तरफ वह इस महामारी के बीच अपने खेतों में दिन रात मेहनत कर रहे हैं और इस बात की भी चिंता कर रहे हैं कि देश में कोई भी भूखा ना सोए। हर कोई अपने सामर्थ्य के हिसाब से इस लड़ाई को लड़ रहा है। कोई किराया माफ कर रहा है, तो कोई अपनी पूरी पेंशन या पुरस्कार से मिली राशि को पीएम केयर में जमा कर रहा है। कोई खेत की सारी सब्जियां दान दे रहा है, तो कोई हर रोज सैकड़ों गरीबों का मुफ्त भोजन करा रहा है। कोई मास्क बना रहा है। कहीं हमारे मजदूर भाई बहन जो क्यूरेन्टीन में रहते हुए जिस स्कूल में रह रहे हैं उसकी रंगाई पुताई कर रहे हैं।
दूसरों की मदद के लिए आपके भीतर हृदय के किसी कोने में, जो ये उमड़ता-घुमड़ता भाव है ना! वही-वही कोरोना के खिलाफ भारत की इस लड़ाई को ताकत दे रहा है, वही, इस लड़ाई को सच्चे मायने में पीपल ड्राइविंग बना रहा है। और हमने देखा है पिछले कुछ साल में हमारे देश में यह मिजाज बना है, निरंतर मजबूत होता रहा है। चाहे करोड़ों लोगों का गैस सब्सिडी छोड़ना हो , लाखों सीनियर सिटीजन रेलवे सब्सिडी छोड़ ना हो, स्वच्छ भारत अभियान का नेतृत्व लेना हो, टॉयलेट बनाने हो अनगिनत बातें ऐसी है। इन सारी बातों से पता चलता है हम सब को एक मन, एक मजबूत धागे से पिरो दिया है। एक होकर देश के लिए कुछ करने की प्रेरणा दी है।
हर मुश्किल हालात, हर लड़ाई, कुछ न कुछ सबक देती है, कुछ न कुछ सिखा जाती है, सीख देती है। कुछ संभावनाओं के मार्ग बनाती है और कुछ नई मंजिलों की दिशा भी देती है। इस परिस्थिति में आप सब देशवासियों ने जो संकल्प शक्ति दिखाई है, उससे भारत में एक नए बदलाव की शुरुआत भी हुई है। हमारे बिजनेस, हमारे दफ्तर, हमारे शिक्षण संस्थान, हमारा मेडिकल सेक्टर, हर कोई तेजी से नए तकनीकी बदलाव की तरफ बढ़ रहे हैं। टेक्नोलॉजी के फ्रंट पर तो वाकई ऐसा लग रहा है कि देश का हर इन्नोवेटर नई परिस्थितियों के मुताबिक कुछ ना कुछ नया निर्माण कर रहा है।
देश जब एक टीम बनकर काम करता है, तब क्या कुछ होता है ये हम अनुभव कर रहे हैं। आज केंद्र सरकार हो, राज्य सरकार हो, इनका हर एक विभाग और संस्थान राहत के लिए मिलजुलकर पूरी स्पीड से काम कर रहे हैं। हमारे एविएशन सेक्टर में काम कर रहे लोग हो, रेलवे कर्मचारी हो दिन रात मेहनत कर रहे हैं ताकि देशवासियों को कम-से-कम समस्या हो। देश के हर हिस्से में दवाइयों को पहुंचाने के लिए लाइफलाइन उड़ान नाम से विशेष अभियान चल रहा है। हमारे इन साथियों ने इतने कम समय में, देश के भीतर ही 3 लाख किलोमीटर की हवाई उड़ान भरी है और 500 टन से अधिक मेडिकल सामग्री देश के कोने-कोने में आप तक पहुंचाया है। इसी तरह रेलवे के साथी लॉकडाउन में भी लगातार मेहनत कर रहे हैं ताकि देश के आम लोगों को जरूरी वस्तुओं की कमी ना हो।
प्रधानमंत्री गरीब कल्याण पैकेज के तहत, गरीबों के एकाउंट में पैसे, सीधे ट्रांसफर किए जा रहे है। ‘वृद्धावस्था पेंशन’ जारी की गई है। गरीबों को तीन महीनें के मुफ्त गैस सिलेंडर, राशन जैसी सुविधाएं भी दी जा रही है। इन सब कामों में, सरकार के अलग-अलग विभागों के लोग, बैंकिंग सेक्टर के लोग, एक टीम की तरह दिन-रात काम कर रहे है। हमारे देश की राज्य सरकारों की भी इस बात के लिए प्रशंसा करूँगा कि वो इस महामारी से निपटने में बहुत सक्रिय भूमिका निभा रही है। स्थानीय प्रशासन, राज्य सरकारें जो जिम्मेदारी निभा रहीं है, उसकी, कोरोना के खिलाफ लड़ाई में बहुत बड़ी भूमिका है। उनका ये परिश्रम बहुत प्रशंसनीय है।
देश से स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़े लोगों ने अभी हाल ही में जो अध्यादेश लाया गया है, उस पर अपना संतोष व्यक्त किया है। इस अध्यादेश में, कोरोना वैरियर्स के साथ हिंसा, उत्पीड़न और उन्हें किसी रुप में चोट पहुंचाने वालों के खिलाफ बेहद सख्त सजा का प्रावधान किया गया है। हमारे डॉक्टर, नर्सेज, पैरामेडिकल स्टाफ, कैम्युनिटी हेल्थ वर्कर्स, और ऐसे सभी लोग, जो देश को ‘कोरोना-मुक्त’ बनाने में दिन-रात जुटे हुए है। उनकी रक्षा करने के लिए ये कदम बहुत जरूरी था।
आजकल सोशल मीडिया में हम सब लोग लगातार देख रहे हैं कि लॉकडाउन के दौरान लोग अपने साथियों को ना सिर्फ याद कर रहे हैं, उनकी जरूरतों का ध्यान रख रहे हैं, बल्कि उनके बारे में बहुत सम्मान से लिख भी रहे हैं।आज देश के हर कोने से ऐसी तस्वीरें आ रही हैं कि लोग सफाईकर्मियों पर पुष्प वर्षा कर रहे हैं। पहले उनके काम को संभवतः आप भी कभी नोटिस नहीं करते थे।
डॉक्टर हो, सफाईकर्मी हो, अन्य सेवा करने वाले लोग हो इतना ही नहीं हमारी पुलिस व्यवस्था को लेकर भी आम लोगों की सोच में काफी बदलाव हुआ है। पहले पुलिस के विषय में सोचते ही नकारात्मकता के सिवाय हमें कुछ नजर नहीं आता था। हमारे पुलिसकर्मी आज गरीबों जरूरतमंदों को खाना पहुंचा रहे हैं, दवा पहुंचा रहे हैं, जिस तरह से हर मदद के लिए पुलिस सामने आ रही है इससे पुलिसिंग का मानवीय और संवेदनशील पक्ष हमारे सामने उभरकर आया है। हमारे मन को झकझोर दिया है, हमारे दिल को छू लिया है, ऐसा अवसर है जिसमें आम लोग पुलिस से भावनात्मक तरीके से जुड़ रहे हैं।
हम अक्सर सुनते हैं प्रकृति, विकृति और संस्कृति, इन शब्दों को एक साथ देखें और इसके पीछे के भाव को देखें तो आपको जीवन को समझने का भी एक नया द्वार खुलता हुआ दिखेगा। अगर मानव प्रकृति की चर्चा करें तो ‘यह मेरा है’ ‘मैं इसका उपयोग करता हूं’ इसको और इस भावना को बहुत स्वाभाविक माना जाता है। किसी को इसमें कोई एतराज नहीं होता इसे हम ‘प्रकृति’ कह सकते हैं। लेकिन जो ‘मेरा नहीं है’ ‘इस पर मेरा हक नहीं है’ उसे मैं दूसरों से छीन लेता हूं उसे छीनकर उपयोग में लाता हूं तब हम इसे ‘विकृत’ कहते हैं। इन दोनों से परे प्रकृति और विकृति से ऊपर जब कोई संस्कारित मन सोचता है या व्यवहार करता है तो हमें संस्कृति नजर आती है। जब कोई अपने हक की चीज़, अपनी मेहनत से कमाई चीज, अपने लिए जरूरी चीज, कम हो या अधिक इसकी परवाह किए बिना, किसी व्यक्ति की जरूरत को देखते हैं, खुद की चिंता छोड़ कर, अपने हक के हिस्से को बांटकर के किसी दूसरे की जरूरत पूरी करते हैं उसी को ‘संस्कृति’ कहते हैं।
*भारत* में अपने संस्कारों के अनुरूप, हमारी सोच के अनुरूप, हमारी संस्कृति का निर्वहन करते हुए कुछ फैसले लिए हैं। संकट की इस घड़ी में दुनिया के लिए भी, समृद्ध देशों के लिए भी, दवाइयों का संकट बहुत ज्यादा आ रहा है। एक ऐसा समय है कि अगर दुनिया भारत को दवाइयां ना भी दे तो कोई भारत को दोषी नहीं मानता। हर देश समझ रहा है कि भारत के लिए भी उसकी प्राथमिकता अपने नागरिकों का जीवन बचाना है लेकिन साथियों भारत में प्राकृति, विकृत, की सोच से परे होकर फैसला लिया भारत ने अपनी संस्कृति के अनुरूप फैसला लिया।
हमारे विश्व के हर जरूरतमंद तक दवाइयों को पहुंचाने की बीड़ा उठाया और मानवता के इस काम को करके दिखाया। आज जब मेरी अनेक देशों के राष्ट्रध्यक्षों से फोन पर बात होती है तो भारत की जनता का आभार जरुर व्यक्त करते हैं जब वह लोग कहते हैं ‘थैंक यू इंडिया’ ‘थैंक यू पीपुल ऑफ इंडिया’ तो देश के लिए गर्व और बढ़ जाता है।
कई बार हम अपनी ही शक्तियों और समृद्ध परंपरा को पहचानने से इंकार कर देते हैं। लेकिन जब भी कोई दूसरा देश ‘एविडेंस बेस्ड रिसर्च’ के आधार पर वही बात करता है हमारा ही फार्मूला हमें सिखाता है तो हम उसे हाथों-हाथ ले लेते हैं संभवत इसके पीछे एक बहुत बड़ा कारण सैकड़ों वर्षों की हमारी गुलामी का कालखंड रहा है। इस वजह से कभी कभी हमें अपनी ही शक्ति पर विश्वास नहीं होता है हमारा आत्मविश्वास कम नजर आता है। इसलिए हम अपने देश की अच्छी बातों को,हमारे पारंपरिक सिद्धांतों को, एविडेंस बेस्ड रिसर्च के आधार पर आगे बढ़ाने की बजाय उसे छोड़ देते हैं। उसे हीन समझने लगते हैं। भारत की युवा पीढ़ी को,अब इस चुनौती को स्वीकार करना होगा जैसे विश्व ने योग को सहर्ष स्वीकार किया है, वैसे ही हजारों वर्षो पुराने हमारे आयुर्वेद के सिद्धांतों को भी विश्व अवश्य स्वीकार करेगा। हां! इसके लिए युवा पीढ़ी को संकल्प लेना होगा, और दुनिया जिस भाषा में समझती है उस वैज्ञानिक भाषा में हमें समझाना होगा, कुछ करके दिखाना होगा।
कोरोना की वजह से बदलते हुए हालात में मास्क भी हमारे जीवन का हिस्सा बन रहा है। वैसे हमें इसकी भी आदत कभी नहीं रही, कि हमारे आसपास के बहुत सारे लोग मास्क में दिखे, लेकिन अब हो यही रहा है। हां! इसका यह मतलब नहीं जो मास्क लगाते हैं वे सभी बीमार हैं। जब मैं मास्क की बात करता हूं तो मुझे पुरानी बात याद आती है आप सब को भी याद होगा एक जमाना था कि हमारे देश के कई ऐसे इलाके होते थे कि वहां अगर कोई नागरिक फल खरीदता हुआ दिखता था तो आस-पड़ोस के लोग उसको जरूर पूछते थे क्या घर में कोई बीमार है? यानी फल मतलब बीमारी में ही खाया जाता था। ऐसी एक धारणा बनी हुई थी, हालांकि समय बदला और यह धारणा भी बदली। वैसे ही मास्क को लेकर भी धारणा बदलने वाली है। आप देखिएगा मास्क सभ्य समाज का प्रतीक बन जाएगा। अगर बीमारी से खुद को बचना है, और दूसरों को बचाना है तो आपको मास्क लगाना पड़ेगा और मेरा तो सिंपल सुझाव रहता है गमछा- मुह ढंकना है।
हमारे समाज में एक और बड़ी जागरूकता आई है कि आप सभी लोग समझ रहे हैं कि सार्वजनिक स्थानों पर थूकने के क्या नुकसान हो सकते हैं। यहां- वहां कहीं पर भी थूक देना गलत आदतों का हिस्सा बनना हुआ था।स्वच्छता और स्वास्थ्य को गंभीर चुनौती भी देता था, वैसे एक तरह से देखें तो हम हमेशा से ही इस समस्या को जानते रहे हैं लेकिन इस समस्या समाज से समाप्त होने का नाम ही नहीं ले रही थी।अब वह समय आ गया है कि इन सभी बुरी आदतों को हमेशा- हमेशा के लिए खत्म कर दिया जाए। कहते भी हैं कि ‘बेटर लेट देन नेवर’ तो देर भले ही हो गई हो, लेकिन अब उठने की आदत छोड़ देनी चाहिए। यह बातें जहां बेसिक हाइजीन का स्तर बढ़ाएगी वही कोरोना संक्रमण को फैलने से रोकने में भी मदद करेगी।
मैं आपसे, आग्रह करूँगा कि कत्तई इस आत्मविश्वास में ना फंस जाएं, हम ऐसा विचार ना पालें की, हमारे शहर में, हमारे गांव में, हमारे गली में, हमारे दफ्तर में, अभी तक कोरोनावायरस नहीं है इसलिए अब पहुंचने वाला नहीं है। देखिए ऐसा गलती कभी मत पालना। दुनिया का अनुभव हमें बहुत कुछ कह रहा है और हमारे यहां तो बार-बार कहा जाता है ‘सावधानी हटी तो दुर्घटना घटी’।
हिन्द वतन समाचार की रिपोर्ट…