लखनऊ।हिन्द वतन समाचार…
निजीकरण के निर्णय पर अभिकर्ताओं ने भरी हुंकार, LIC की हिस्सेदारी न बेचे सरकार…
सरकार द्वारा एलआईसी में अपनी कुछ हिस्सेदारी बेचने के निर्णय को लेकर अभिकर्ताओं में आक्रोश…
राजनीतिक स्वार्थवश अपने चहेते देशी और विदेशी पूंजीपतियों को हिस्सेदारी बेचना चाहती है सरकार लाइफ इंश्योरेंस एजेंट एसोसिएशन के बैनर तले अभिकर्तायों ने किया प्रदर्शन…
वाराणसी/उत्तर प्रदेश: भारत सरकार द्वारा भारतीय जीवन बीमा निगम के अपने हिस्सेदारी का कुछ हिस्सा बेचने के निर्णय पर आल इंडिया लाइफ इंश्योरेंस एजेंट एसोसिएशन के बैनर तले अभिकर्त्ताओं ने सोमवार का विरोध प्रदर्शन किया। भेलुपूर स्थित एलआइसी आफिस पर सैकड़ों की संख्या में एकत्रित अभिकर्ताओं ने सरकार के इस निर्णय का पुरजोर विरोध किया और कहा कि भारतीय जीवन बीमा निगम में सरकारी हिस्सेदारी को बेचने का भारत सरकार के निर्णय को निगम हित सहित देश हित में नहीं मानता। आल इंडिया लाइफ इंश्योरेंस एजेंट एसोसिएशन के अभिकर्ताओं ने सरकार के इस नीति के विरोध में प्रधानमंत्री जन सम्पर्क कार्यालय पर प्रधानमंत्री के नाम संबोधित ज्ञापन सौपा।
चहेते पूंजीपतियों को देना चाहती है भागीदारी:
प्रदर्शन सभा में उपस्थित अभिकतार्ओं को सम्बोधित करते हुए राष्ट्रीय अध्यक्ष एसएल ठाकुर ने कहा कि भारतीय जीवन बीमा निगम साधारण बीमाधारकों के बदौलत एशिया की सबसे बड़ी बीमा कम्पनी के रूप में स्थापित है। साथ ही देश के राजस्व मे इसकी अहम हिस्सेदारी है। संस्था में कार्यरत कर्तव्यनिष्ठ लोगों ने बीमा क्षेत्र में प्रवल स्थान बनाकर हमेशा सरकार को लाभ पहुंचाने का कार्य किया है। बावजूद इसके सरकार द्वारा चन्द राजनैतिक स्वार्थ सहित अपने चहेते पूंजीपतियों सहित विदेशी पूंजीपतियों को संस्था में भागीदारी देकर साधारण बीमाधारकों का सरकारी संस्था के विश्वास को तोड़कर निजीकरण का लेबल लगाना चाहती है, जिससे की साधारण बीमा धारको का विश्वास संस्था से कम हो जाए। साथ ही संस्था की स्थिति कमजोर हो, जिसका लाभ लेते हुए सरकारी भारतीय जीवन बीमा निगम को निजीकरण का लाभ मिल सके।
अपने फैसले पर पुनर्विचार करे सरकार, नहीं तो…
उन्होंने कहा कि आल इण्डिया लाइफ इन्स्योरेन्स एजेन्ट्स एसोसिएशन इसकी निन्दा करता है साथ ही सरकार को यह चेतावनी देता है कि सरकार अपने लिये गये फैसले पर पुन: विचार कर निगम को छेड़ने का कार्य न करे नहीं तो आगे करोड़ो पालिसी धारक अभिकर्ता एवं कर्मियों के हितों में आन्दोलन की घोषणा करेंगे। प्रदर्शन में आरके त्रिपाठी, राजकुमार गुप्ता, अरविन्द उपाध्याय, त्रिलोकी राय, बरसाती राम स्वर्ण सिंह, प्रेम मौर्य, राजीव मिश्रा, सुनील शर्मा, रामकृष्ण, संजय कुमार, अतुल शुक्ला, जब्बार साहब, लाल पटेल, राजेश सिंह, ओंकार सिंह, संत तिवारी, पप्पू साहनी सहित सैकड़ों अभिकर्ता शामिल रहे।
वर्ष 2014 में जब केंद्र में बड़े बहुमत से बीजेपी की सरकार बनी तो देश के प्रधानमंत्री माननीय मोदी जी ने एक नारा बुलंद किया था, कसम मुझें इस माटी का, मैं देश नही झुकनें दूंगा, मैं देश नही बिकनें दूंगा लेकिन एक पर एक राजनीतिक फैसलों के कारण आज देश इस मुकाम पर आ गया है कि देश की आमजनों के बीच सबसे विश्वसनीय बीमा कंपनी एलआईसी की बोली लगने का मार्ग प्रशस्त किया जा रहा है। लालकिला, भारतीय रेलवे, बीएसएनएल, एयर इंडिया के बाद अब सरकार की कुदृष्टि इस सबसे विशाल बीमा निवेशक कंपनी पर पड़ चुकी है। असफल नोटबंदी, जटिल जीएसटी जैसे असफल फैसलों ने देश की अर्थव्यवस्था का बेड़ागर्क कर दिया।
अजीत सिंह (पार्षद)
सदस्य कार्यकारिणी समिति
भारतीय जनता पार्टी को जनता ने बड़ी उम्मीदों से चुना था और कुछ हद तक वह इस पर खरी भी उतरी है। सरकार के कई निर्णय सरकार हित में हैं पर सरकारी संस्थाओं की निजीकरण खासकर एलआइसी आदि का बेहद शर्मनाक है। वैसे तो बाजार में कई सारी बीमा कंपनियां है पर एलआइसी पर लोगों का भरोसा इसलिए है कि यह सरकार की निजी कंपनी है पर ऐसे निर्णय से जनता का विश्वास टूटेगा , लोग आगे भी इसे संदेह की नजर से देखेंगे।
रत्नेश तिवारी ‘चंचल’, युवा कवि
एलआइसी की हिस्सेदारी बेचने के निर्णय से आम आदमी ठगा महसूस कर रहा है। हमलोगों ने अपने बच्चों के भविष्य के लिए अपनी गाढ़ी कमाई एलआइसी में लगाई थी कि वह समय पर काम देगी पर अब इस भरोसा पर भी कुठाराघात हुआ है। आम आदमी अपना पैसा रखे तो कहां रखे एक तो कैशलेश की बात सरकार कर रही है, बैंक में पैसा रखने पर वे कह रहे हैं कि आपका चाहे जितना पैसा जमा हो आप 5 लाख से ज्यादा नहीं निकाल सकते, कई बैंक पैसा लेकर भाग खड़े हुए, ऐसे में एलआइसी पर विश्वास था अब वो भी टूटता नजर आ रहा है।
वरुण सिंह, पूर्व पार्षद
विकास के वादे पर फेल होती सरकार अब निजीकरण का उपाय ढूंढ रही है इसके तहत हर सरकारी संस्थाओं और योजनाओं को निजी हाथों में बेचने का प्लान है। एलआइसी की हिस्सेदारी बेचने का निर्णय तो सबसे शर्मनाक है। जनता सरकारी होने के चलते अपनी खून पसीने की गाढ़ी कमाई इसमें डालती रही है उसके उम्मीदों और विश्वास पर यह करारी चोट है।
धीरेन्द्र पाण्डेय, शिक्षक
हिन्द वतन की रिपोर्ट…