झालाना लेपर्ड की तर्ज पर गलता और नाहरगढ़ जंगल में भी सफारी शुरू करने की तैयारी

झालाना लेपर्ड की तर्ज पर गलता और नाहरगढ़ जंगल में भी सफारी शुरू करने की तैयारी

जयपुर, 13 अक्टूबर। राजधानी जयपुर के आस-पास के जंगलों में लगातार बढ़ रहे बघेरों के कुनबे के कारण झालाना लेपर्ड रिजर्व पर्यटकों के लिए खासा आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। झालाना जंगल में करीब 43 लेपर्डस हैं। अब झालाना लेपर्ड रिजर्व की तर्ज पर गलता और नाहरगढ़ जंगल में भी सफारी शुरू करने की तैयारी की जा रही है। वन विभाग की ओर से गलता, आमागढ़ और नाहरगढ़ जंगल को विकसित किया जा रहा है। गलता जंगल में भी लेपर्ड्स की संख्या में इजाफा हुआ है। गलता के जंगल में वन विभाग के मुखिया प्रधान मुख्य वन संरक्षक दीप नारायण पांडे, मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक अरिंदम तोमर और झालाना रेंजर जनेश्वर चौधरी ने दौराकर स्थितियों का जायजा लिया है। वन अधिकारियों के मुताबिक गलता जंगल में निरीक्षण के

दौरान कई लेपर्डस की साइटिंग हुई है। गलता जंगल में करीब 15 लेपर्डस रहते हैं। गलता वन क्षेत्र 16 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। अभी गलता के जंगल में विभाग की ओर से कॉरिडोर बनाया जा रहा है। जंगल में वन्यजीवों के लिए कई वाटर पॉइंट बनाए जा रहे हैं। गलता के साथ ही नाहरगढ़ जंगल में भी वन्यजीवों के लिए संरक्षण का काम किया जा रहा है। नाहरगढ़ जंगल में करीब 20 से अधिक पैंथर रह रहे हैं। नाहरगढ़ का जंगल करीब 55 वर्ग किलोमीटर में फैला है। नाहरगढ़ और गलता के जंगल को लेपर्ड सफारी के लिए विकसित किया जा रहा है। गलता और नाहरगढ़ में सफारी शुरू होने के बाद जयपुर शहर में

चार सफारी हो जाएंगी। झालाना लेपर्ड सफारी, नाहरगढ़ लायन सफारी पहले से ही चल रही है। वन विभाग के अधिकारियों की मानें तो गलता और नाहरगढ़ जंगल में सफारी के लिए ट्रैक बनाए जा रहे हैं। इसके साथ ही ग्रासलैंड भी डवलप की जा रही है।

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उम्मीद जताई जा रही है कि अगले साल तक गलता और नाहरगढ़ जंगल में सफारी शुरू हो सकती है। जंगलों को एक दूसरे से जोड़ने के लिए कॉरिडोर भी विकसित किया जा रहा है, ताकि झालाना जंगल, गलता से होते हुए नाहरगढ़, आमेर, अचरोल और जमवारामगढ़ होकर सीधा सरिस्का से जुड़ जाएगा। वन विभाग के प्रधान मुख्य वन संरक्षक डीएन पांडे ने बताया कि राजधानी

में वन्यजीवों की संख्या बढ़ती जा रही है। पहले यह परेशानी थी कि वन्यजीवों की संख्या घट रही थी, लेकिन अब वन्यजीवों की संख्या बढ़ने लगी है। पांडे कहते हैं कि इंसानों ने वन्यजीवों की जगह पर कब्जे कर लिए। आदिमानव जानवरों के साथ जंगलों में रहता था। अब वक्त आ रहा है कि इंसानों को जानवरों के साथ रहना पड़ेगा। वनों और वन प्राणियों की रक्षा प्रत्येक इंसान की रक्षा के लिए अनिवार्य है। धीरे-धीरे वन्यजीवों के क्षेत्रों को बढ़ाया जा रहा है। अभी गलता जंगल, आमागढ़ और नाहरगढ़ बीड जंगल में वन्यजीवों के लिए हैबिटाट इंप्रूवमेंट किया जा रहा है। दीप नारायण पांडे ने बताया कि चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन के

साथ सभी क्षेत्रों का निरीक्षण किया गया है। उम्मीद करते हैं कि आने वाले 10 वर्षों में जयपुर के आस-पास के जंगलों की बेहतरी होगी। इसके साथ ही वन्य प्राणियों का संरक्षण भी बेहतर होगा। वन विभाग की कोशिश है कि आने वाले एक दशक में पूरे प्रदेश की वन, वन्य प्राणियों और जैव विविधता का संरक्षण हो। उन्होंने बताया कि पर्यटन संरक्षण का ही बायोप्रोडक्ट है। पर्यटन को बढ़ाने के लिए संरक्षण नहीं किया जा रहा, बल्कि संरक्षण इसलिए किया जा रहा है कि संरक्षण पर ही मानव का अस्तित्व निर्भर हो। संरक्षण के साथ ही लोगों की आजीविका सुदृढ़ करने के बहुत सारे प्रयत्न हो सकते हैं, जिसमें बहुत सारे बायोप्रोडक्ट निकलेंगे।

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