भारत में ‘अशुलियन’ मानव पूर्वजों की सबसे युवा आबादी मौजूद थी : अध्ययन
नई दिल्ली, 06 अक्टूबर। अशुलियन (पत्थर के उपकरण निर्माण का एक पुरातात्विक उद्योग) टूलकिट का इस्तेमाल करने वाले प्राचीन मनुष्यों की आबादी भारत में करीब 1,77,000 वर्ष पहले मौजूद थी। बुधवार को प्रकाशित एक अध्ययन के
मुताबिक यह एशिया भर में हमारी अपनी प्रजाति, होमो सेपियन्स के शुरुआती विस्तार से कुछ समय पहले की ही बात है।प्रागितिहास में सबसे लंबे समय तक चलने वाली उपकरण बनाने की परंपरा, जिसे अशुलियन के रूप में जाना जाता है, को विशिष्ट अंडाकार और नाशपाती के आकार की पत्थर से बनी हाथ की कु्ल्हाड़ी और बड़ा छुरा, होमो इरेक्टस और उससे उत्पन्न
होमो हीडलबर्गेंसिस जैसी प्रजातियों की विशेषता थी। जर्मनी के ‘मैक्स प्लैंक इंस्टीट्यूट फॉर द साइंस ऑफ ह्यूमन हिस्ट्री’ के नेतृत्व में नवीनतम अनुसंधान में राजस्थान के थार रेगिस्तान में मॉनसून क्षेत्र की सीमा पर एक प्रमुख अशुलियन स्थल की फिर से
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जांच की गई। यह अध्ययन 1,77,000 वर्ष पहले अशुलियन आबादी की मौजूदगी को दर्शाता है जो पूरे एशिया में होमो सेपियन्स के शुरुआती विस्तार से कुछ समय पहले की बात है। एशिया भर में हमारी अपनी प्रजाती के शुरुआती विस्तार का समय और
मार्ग काफी बहस का केंद्र रहा है। अनुसंधानकर्ताओं ने कहा कि साक्ष्यों से संकेत मिलता है कि होमो सेपियंस हमारे निकटतम विकासवादी करीबियों की कई आबादी के साथ संपर्क में रहे हैं। उन्होंने कहा कि यह पहचान करना कि ये अलग-अलग आबादी कहां मिलीं, यह जानने के लिए बहुत महत्त्वूपर्ण है कि अफ्रीका से आगे जाने पर हमारी प्रजातियों के शुरुआती सदस्यों को किस तरह की मानवीय एवं सांस्कृतिक परिदृश्यों का सामना करना पड़ा।
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