नदी पर निर्भर रहने वाली पक्षी नाइट हेरोन मानवीय बस्ती के बीच कर रही प्रजनन, बाढ़ के कारण बदला अपना आसियाना

नदी पर निर्भर रहने वाली पक्षी नाइट हेरोन मानवीय बस्ती के बीच कर रही प्रजनन, बाढ़ के कारण बदला अपना आसियाना

भागलपुर, 04 सितंबर। बाढ़ के कारण इंसान ही नही पक्षी भी अपना बसेरा बदल रहे है। पक्षियों का बसेरा गंगा नदी के बढ़ते जलस्तर के कारण पानी में डूब गया है। ऊंचे स्थानों पर इंसानों और मवेशियों ने अपना कब्जा जमा लिया है। कुछ पक्षी जो पानी पर ही निर्भर रहते है आजकल नदी से काफी दूर मानवीय बस्ती के बीच अपना डेरा जमा रखा है। भागलपुर शहर के अतिव्यस्त मुहल्ला मुंदीचक के कई पेड़ों पर इन दिनों सैकड़ों पक्षियों ने अपना घोसला बना लिया है। घोसलों में 4-4 अंडों के साथ ही कई घोसलों में चूजे भी मौजूद हैं। इनके घोसले वर्तमान में पीपल, आम, नीम, बेल आदि पेड़ों पर मौजूद हैं।

पक्षी मित्र दीपक कुमार बताते हैं कि नाइट हेरोन की इस प्रजाति के ब्लैक क्राउंड नाइट हेरोन या ब्लैक कैप्ड नाइट हेरोन के नाम से जाना जाता है। ये पक्षी नदियों, नालों, जोहड़ों, झीलों व खेतों आदि पानी वाली जगहों के आसपास देखे जाते है। ये मीठे व खारे दोनों प्रकार की पानी वाली जगहों पर मिलते हैं। नाइट हेरोन का सिर काले रंग का तथा शरीर का बाकी हिस्सा स्लेटी सफेद होता है।

इसकी आंखें लाल व पांव पीले रंग के होते हैं। इसके शरीर का नीचे का हिस्सा सफेद व ऊपरी हिस्सा स्लेटी रंग का होता है। इससे नर व मादा एक जैसे दिखते हैं, परंतु नर पक्षी आकार में मादा से थोड़ा बड़ा होता है। हेरोन की यह प्रजाति आकार में बाकी से छोटे होते हैं। इन पक्षियों का मुख्य भोजन लीच, केचुआं, मछली, मेंढक, छोटे सरीसर्प व छोटे पक्षी होती है। ये पक्षी शिकार के लिए शाम या रात के अंधेरे में सक्रिय होते है।

दिन के समय में ये किसी पेड़ पर एक बड़े समूह में बसेरा करते है। अपने शिकार लिए ये पानी के किनारे चुपचाप खड़े रहते हैं। जैसे ही किनारे के पास कोई मछली आदि आती है ये उस पर झपट कर निगल जाते हैं। कई बार ये पक्षी मछली को आकर्षित करने के लिए पानी में कुछ फेंक कर प्रलोभन देते है। जैसे ही मछली इसकी पहुंच में आती है ये झपट कर चोंच में पकड़ लेते है।

उन्होंने बताया कि ये पक्षी दिन के समय में पेड़ों पर बैठे रहते है जैसे ही रात का अंधेरा होता है, ये पक्षी अपनी गतिविधियां बढ़ा देते है। यह एक सामाजिक प्राणी है, जो आमतौर पर एक समूह में बसेरा करते है तथा समूह में ही घोंसला बनाते है। इस पक्षी के प्रजनन का समय उत्तर भारत में अप्रैल से सितंबर तथा दक्षिण भारत में दिसंबर से फरवरी तक होता है। घोंसला बनाने की शुरूआत नर पक्षी करता है। जैसे ही मादा पक्षी के साथ जोड़ा बनता है, नर पक्षी घोंसले की सामग्री जैसे तिनके व वनस्पति आदि लाता है तथा मादा पक्षी उसे व्यवस्थित कर घोंसला बनाती है।

इनके घोंसले एक ही पेड़ पर समूह में होते हैं। कई बार एक ही पेड़ पर अन्य प्रजातियों के पक्षियों के साथ भी घोंसले बनाते हैं। सामूहिक घोंसले आमतौर पर सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए बनाते हैं। मादा पक्षी तीन से पांच अंडे देती है। नर व मादा मिलकर चूजों को पालते हैं। एक ही पेड़ पर बार-बार सालों तक बसेरा करते हैं तथा घोंसला बनाते हैं। ये पक्षी प्रजनन के दौरान भोजन की आवश्यकता महसूस करते हैं तो दिन में भी शिकार कर लेते हैं।