सबसे पहला सूर्योदय देखना हो तो जरुर जाएं मणिपुर…
सुबह के साढ़े-चार बज रहे थे। नेशनल हाइवे-39 पर मौजूद माओगेट से नागालैंड की सीमा समाप्त हुई और हमने मणिपुर में प्रवेश कर लिया। देश में सबसे पहले सूर्योदय के लिए मशहूर पूर्वोत्तर में पौ फट रही थी। आसमान पर सूर्योदय से ठीक पहले के इतने खूबसूरत रंग बिखरे हुए थे कि ऐसा लग रहा था जैसे कोई कलाकार केनवास पर चित्रकारी कर हो। माओ से सेनापति तक आते-आते करीब दो घंटे में उजाला पूरी तरह से दस्तक दे चुका था। हरा-भरा मैदानी विस्तार बता रहा था कि हम मणिपुर घाटी में प्रवेश कर चुके हैं। सेनापति से करीब चार घंटे का सफर तय करने के बाद हम मणिपुर की राजधानी इंफाल में थे।
इंफाल नदी के किनारे बसा यह शहर पूर्वोत्तर के सबसे व्यवस्थित शहरों में से एक है। मणिपुर के इस सबसे बड़े शहर की दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान बड़ी अहम भूमिका रही। भारत में राज कर रही तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने इसी शहर में जापानियों को शिकस्त दी थी। हालांकि उस दौरान हुए बम धमाकों ने शहर को काफी नुकसान भी पहुंचाया। पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने मणिपुर को भारत का रत्न कहा तो इसकी मुकम्मल वजहें थी। इसकी गिनती भले ही भारत के गरीब राज्यों में होती हो लेकिन प्राकृतिक खूबसूरती के मामले में यह वाकई बहुत अमीर है। मणिपुर पहुंचते ही हमें इस बात का एहसास बख़ूबी हो गया था।
सेंड्रा आइलैंड और लोकतक झील का अद्भुत नजारा
अगले दिन मणिपुर से करीब 46 किमी. का सफर तय करके सेंड्रा आइलैंड नाम के एक द्वीप पर पहुंचे। हमारे सामने लोकतक झील थी जिसके तट पर कई रंग-बिरंगी मोटरबोट खड़ी थी। इन मोटरबोट को हरे और पीले चटख रंगों से सजाया गया था। आसमानी रंग की रमणीय झील पर ऐसी ही सजी-धजी मोटरबोट दूर से लोगों को झील में घुमाकर वापस ला रही थी। झील के तट पर बनाए गए लकड़ी के प्लेटफॉर्म पर खड़े होकर इस दृश्य को देखना बेहद सुकून दे रहा था। आस-पास शोर का नामोनिशान नहीं था।
मिथकों का खजाना मणिपुर का राजकीय पशु संगाई
लोकतक झील पर ये तैरते द्वीप न केवल मछुवारों की जिंदगी से जुड़े हैं, बल्कि यह उन विरली जगहों में से है जहां मणिपुर का राजकीय पशु संगाई (हिरन का एक प्रकार) मुख्य रूप से पाया जाता है। इस खास तरह के हिरन की सामने की दो सींगें उसकी आंखों के ऊपर बनी भौहों से निकलती है, इसलिए उसे ‘ब्रो-एंटलर’ डीयर भी कहा जाता है। केवल मणिपुर में पाए जाने वाले संगाई का यहां की लोककथाओं में बहुत अहम दर्जा है। माना जाता है कि संगाई प्रकृति और इंसानों के बीच की कड़ी की तरह काम करते हैं।
कैसे पहुंचें
इंफाल आप हवाई जहाज से पहुंच सकते हैं। नजदीकी हवाई अड्डा मुख्य शहर से आठ किमी. दूर है, जहां से इंफाल के लिए टैक्सी ली जा सकती है। इंफाल रेल मार्ग से सीधे नहीं जुड़ा है। नजदीकी रेलवे स्टेशन दीमापुर है। जो यहां से करीब 260 किमी. दूर है। वहां से डीलक्स बस या शेयरिंग टैक्सी लेकर भी आप इम्फ़ाल आ सकते हैं। रास्ते में माओ चेकप्वाइंट पर हर नागरिक के पहचान पत्र की जांच भी की जाती है। इसलिए अपना पहचान पत्र अपने साथ रखें। माओ से सेनापति होते हुए इंफाल पहुंचा जा सकता है।
कहां रहें
इंफाल में रहने के लिए होटलों की कमी नहीं हैं। यहां कुछ धर्मशालाएं भी हैं, जहां सस्ते में रहने का इंतजाम हो सकता है। इन धर्मशालाओं में डीलक्स कमरे से लेकर डोर्मिट्री तक उपलब्ध हैं।
हिन्द वतन समाचार की रिपोर्ट…