गोवर्धन के हनुमान बाग में महंत सियाराम दास महाराज जी के सानिध्य में आयोजित भंडारा…
ब्रजनिष्ठ संत पंडित गया प्रसाद जी ब्रज निष्ठा की जीवंत परिभाषा थे ‘पंडितजी’ ठाकुर लक्ष्मी…
नारायण मंदिर , हनुमान बाग और समाधि स्थल,व मलूक पीठ आश्रम पर मनाई बाबा महाराज की पुण्य तिथि…
ब्रजभूमि में रहकर श्रीकृष्ण की भक्ति कैसे की जाती है, यह जानना हो तो संत गया प्रसाद जी की जीवनी को पढ़िए। उनकी पुण्य तिथि पर जगह-जगह धार्मिक आयोजन हुए।
ब्रज संत शिरोमणि पं. गया प्रसाद महाराज की कृष्ण-कन्हैया से अलौकिक भक्ति की इस युग में शायद ही कोई और मिसाल हो। उन्होंने अपने जीवन के अंतिम 65 साल गिरिराज की तलहटी में झाड़ू लगाते हुए गुजार दिए। इस दौरान उनके मुख से नंदलाल के नटखट अंदाज की कथाएं सुन लोग भावविह्वल हो उठते।
गुरूवार को उनकी पुण्यतिथि पर लक्ष्मी नारायण मंदिर में विभिन्न धार्मिक आयोजन किए गए। हनुमान बाग पर महंत सियाराम दास के निर्देशन में विशाल भंडारे का आयोजन किया गया। सुबह से शुरू हुआ भोजन का सिलसिला देर शाम तक चला। मैदान में लगी दस लाइनें भंडारे की विशालता का गुणगान करने लगीं। जिसमें विधायक कारिंदा सिंह, जिंतेंद्र सिंह तरकर, राधा चरण कौशिक, विनोद मेंबर, गिरधारी सेठी, रसिया शर्मा अमित गोस्वामी आदि मौजूद रहे।
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कुछ यूं रहा ब्रजनिष्ठ संत का जीवन
– संत गया प्रसाद जी की सेवा में रहे महंत सियाराम दास ने बताया कि
वर्ष 1936 में पं. गया प्रसाद जी श्रावण के अधिमास में गोवर्धन की परिक्रमा के लिए गए और फिर यहीं गिरिराज की सेवा में लीन हो गए। वैराग्य तो पहले ही धारण कर चुके थे, यहां उन्होंने महात्मा वेश धारण कर पूर्ण विरक्ति को अंगीकार कर लिया। वहां राधाकुंड के पास मिर्ची बाबा की बगीची में रहने लगे। ब्रज वासियों से भिक्षा कर वे भक्ति योग के अनुष्ठान में जुट गए। नित्य गिरिराज की परिक्रमा का भी उनका नियम लिया और यह शरीर में सामर्थ्य रहने तक निभाया। कुछ समय बाद गोवर्धन में दानघाटी के पास लक्ष्मीनारायण मंदिर के एक कमरे में रहकर पंडित जी ने अपना जीवन गिरिराज की तलहटी मे झाड़ू लगाने और अपने लाड़ले बालकृष्ण की लीलाओं में निमग्न रहते हुए व्यतीत किया। पं.गया प्रसाद की त्याग, तपस्या का सुयश सर्वत्र फैला। बगैर दंड व गेरुआ वस्त्र के संन्यासी, किसी भी संप्रदाय के छापा-तिलक के बगैर ही परम वैष्णव गया प्रसाद ब्रजवासियों के गिरिराज वारे बाबा हो गए। पंडित जी ने गिरिराज को न छोड़ने का संकल्प ले रखा था। वे ब्रज रज की चंदन लगाते थे और बालकृष्ण को ही अपना इष्ट मानते थे। यह कारण था कि देश की अप्रतिम विभूतियां स्वामी करपात्री जी महाराज, गोवर्धन पीठ पुरी के शंकराचार्य स्वामी निरंजनदेव तीर्थ, स्वामी अखंडानंद सरस्वती, प्रभुदत्त ब्रह्मचारी, ज्योतिष पीठाधीश्वर स्वामी स्वरूपानंद, डोंगेर जी महाराज, संत कृष्ण शंकर शास्त्री, विंदु जी महाराज, पं. रामकिंकर महाराज आदि खुद चलकर पंडित जी के पास पहुंचते थे।करीब 101 वर्ष की अवस्था में संवत 2051 में गुरुपूर्णिमा के दिन पं. गया प्रसाद अस्वस्थ हुए। इस दौरान उनके अनुयायियों ने इलाज के लिए बाहर ले जाने की कोशिश भी की, मगर पंडित जी की गिरिराज को न छोड़ने की प्रतिज्ञा आड़े आ गई। कुछ दिन बाद ही भाद्रपद कृष्ण पक्ष चतुर्थी को पंडित जी गिरिराज की पावन तलहटी दानघाटी में अपने ही जीवन धन प्रियतम प्रभु की नित्य लीला में लीन हो गए।
पत्रकार अमित गोस्वामी की रिपोर्ट…