सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा है कि कहने को सबका साथ, सबका विकास…
का नारा खूब लगाया जाता है लेकिन हकीकत में भाजपा केवल कुछ पूंजीपतियों का साथ करती है…
लखनऊ 02 जुलाई। सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा है कि कहने को सबका साथ, सबका विकास का नारा खूब लगाया जाता है लेकिन हकीकत में भाजपा केवल कुछ पूंजीपतियों का साथ करती है और उनके विश्वास पर ही काम करती है। जनसामान्य की तकलीफों को कम करने के बजाय वह उनमें और बढ़ोत्तरी करने की साजिषें करती रहती है। कृषि अर्थव्यस्था को बर्बाद करने के बाद अब वह घरेलू अर्थव्यवस्था को भी चैपट करने में लग गई है।
भाजपा जबसे सत्ता में आई है, मंहगाई विकराल बनती गई है। चारों तरफ इसके प्रसार से आम आदमी की तो कमर ही टूट गई है। मंहगाई के जरिए भाजपा हर क्षेत्र में अभाव की स्थिति फैदा करने में लगी है ताकि लोग भूख, कुपोषण और बीमारी की वजह से काल कवलित होते रहे उसका फार्मूला गरीबी हटाने के लिए गरीब को ही तबाह करने का है। पेट्रोल-डीजल की दैनिक आवश्यकता है इसके मंहगे होने से दैनिक उपभोग की वस्तुएं भी स्वतः मंहगी हो जाती हैं। पेट्रोल दो महीने में 10 प्रतिशत से ज्यादा मंहगा हुआ है तो डीजल के दाम भी दिन-दूनी रात-चैगुनी की कहावत के अनुसार बढ़ रहे हैं। कृषि और परिवहन के दामों में भारी वृद्धि से ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर गहरा प्रभाव पड़ रहा है। किसान सिंचाई, खाद-बीज, कीट नाशक, कृषियंत्र व जुताई के बढ़े दामों से हुई परेशानी बता भी नहीं पाया कि उस पर बिजली की बढ़ी दरें थोप दी गईं है।
डीजल की दर पिछले छह महीने में 40 फीसद तक बढ़ गई हैं। इसकी तुलना में माल ढुलाई की दरों में 25 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है। माल भाड़ा बढ़ने से सब्जी-फल व अन्य सभी जरूरी वस्तुओं के दाम भी बढ़ गए हैं। पेट्रोल-डीजल के बढ़े दामों से परिवहन सेवाएं टेम्पों, बस, रेल, के भाड़े में भारी उछाल आया है। अब ताजी सूचना के अनुसार रसोई गैस के दामों में भी भारी वृद्धि कर दी गई है। सब्सिडी वाला गैस सिलेण्डर 25 से 50 रुपये महंगा हो गया है जबकि कामार्शिलय सिलेण्डर 84 रुपये महंगा हो गया है। आर.टी.आई से मिली सूचना के अनुसार पेट्रोलियम उत्पादों से भारत सरकार को 4.51 लाख करोड़ रूपये का फायदा हुआ है। तेल उत्पादक कम्पनियों से जमकर कमाई की। इन सबके बीच जनता पिसती रही है। खाद्य वस्तुओं की मंहगाई से लोगों की पौष्टिक भोजन में कटौती करनी पड़ती है। नतीजा कुपोषण और भूख से गरीब आदमी की मौत होना स्वाभाविक है।
कुपोषण और भूख से बिलबिलाते बच्चों की पीड़ा से विचलित कई माता-पिताओं द्वारा कभी-कभी अमानवीय कदम भी उठा लिए जाते हैं। अभी एक मां ने अपनी बच्ची को दफना दिया था जिसे लोगों ने बचाया। कहीं पिता बच्चों को स्टेशन या अस्पताल में छोड़कर भाग गया। कहीं मां-बाप ने बच्चों के साथ तंगी में आत्महत्या कर ली। विशेषज्ञों की राय है कि देश में मंहगाई का दौर अभी थमने वाला नहीं है। वैसे भी कोरोना महामारी से कई सामाजिक-आर्थिक संकट पैदा हुए हैं। उद्योगधंधो के बंद होने से बेरोजगारी बढ़ी है। लोगों की आय घटी है। भाजपा सरकार ने बड़े लोगों को कई राहतें दी हैं पर जनसामान्य की तकलीफों पर उसने निगाह भी नहीं डाली है। वह गरीब को ही खत्म कर देना चाहती है।
हिन्द वतन समाचार की रिपोर्ट…