एक पत्रकार से यह अपेक्षा नहीं की जाती कि वह एक…

एक पत्रकार से यह अपेक्षा नहीं की जाती कि वह एक…

सनसनीखेज और खौफनाक वारदात का जानबूझकर नाटक करने को कहे…

खबर बनाने के लिए किसी की जान को खतरे में ना डालें पत्रकार : अदालत…

लखनऊ, 01 जुलाई। इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने उत्तर प्रदेश विधान भवन के सामने एक व्यक्ति द्वारा आत्मदाह करने के मामले में तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा है कि एक पत्रकार से ये उम्मीद नहीं की जाती कि वह खबर बनाने के लिए किसी की जान को खतरे में डाले।

न्यायमूर्ति विकास कुंवर श्रीवास्तव की पीठ ने लखनऊ के पत्रकार शमीम अहमद की जमानत याचिका ठुकराते हुए यह टिप्पणी की। अहमद समाचार बनाने के लिए एक व्यक्ति को विधान भवन के सामने आत्मदाह के लिए उकसाने के मामले में सह-अभियुक्त हैं।

अदालत ने हाल में दिए गए आदेश में कहा कि एक पत्रकार से यह अपेक्षा नहीं की जाती कि वह एक सनसनीखेज और खौफनाक वारदात का जानबूझकर नाटक करने को कहे और उसे अंजाम देने वाले की स्थिति को दुर्दशापूर्ण बताते हुए उस पर खबर लिखे।

न्यायालय ने पिछली 21 जून को की गई टिप्पणी में कहा कि पत्रकार पूर्व अनुमान पर आधारित या एकाएक हुए घटनाक्रम पर नजर रखें और खबर के जरिए बिना किसी लाग-लपेट के उसे दुनिया के सामने लाएं।

पत्रकार शमीम अहमद और नौशाद अहमद पर आरोप है कि उन्होंने मकान से बेदखल किए जा रहे एक किराएदार से संपर्क करके कहा था कि अगर वह विधान भवन के सामने आत्मदाह का नाटक करे तो वह उसका फिल्मांकन कर उसे एक खबर के तौर पर दिखाएंगे। इससे मकान मालिक पर दबाव पड़ेगा और वह उसे घर से बाहर नहीं निकालेगा।

उस किराएदार ने दोनों आरोपियों की बात मानते हुए विधान भवन के सामने खुद को आग लगा ली थी। गंभीर रूप से झुलसने की वजह से 24 अक्टूबर 2020 को इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई थी।

हिन्द वतन समाचार की रिपोर्ट…