सुशांत सिंह राजपूत के स्कूल फ्रेंड बोले- मुझे लगा…

सुशांत सिंह राजपूत के स्कूल फ्रेंड बोले- मुझे लगा…

बहुत बिजी और खुश हैं, हमेशा रहेगा अफसोस…

 

मुंबई, 12 जून । दिवंगत ऐक्टर सुशांत सिंह राजपूत भले ही हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनके फैन्स, फैमिली और उनके खास दोस्त उन्हें याद करने का एक मौका भी नहीं छोड़ते हैं। 14 जून को सुशांत की पहली बरसी है। सुशांत के क्लासमेट रहे नव्या जिंदल का कहना है, ‘सुशांत सिंह राजपूत को गुजरे हुए पूरा एक साल हो गया है, लेकिन आज भी इस पर विश्वास करना मुश्किल है कि वह हमारे बीच नहीं है। सुशांत जैसे- जैसे मशहूर होने लगा था वह बहुत बिजी रहने लगा था। मुझे लगता था कि वह अपने काम में बिजी है और खुश भी। मुझे एकदम नहीं पता था कि सुशांत किसी परेशानी से गुजर रहा है।’ नव्या, सुशांत के स्कूल फ्रेंड हैं।

 

नव्या ने हाल ही में दिए एक इंटरव्यू में कहा, ‘सुशांत की मौत आज भी एक बुरे सपने की तरह लगता है। सुशांत स्टार बन गया था और वह बिजी भी रहता था जिसकी वजह से हम दोनों की बातचीत काफी कम हो गई थी, लेकिन फिर भी हम अच्छे दोस्त थे।’ स्कूल के दिनों को याद करते हुए नव्या कहते हैं, ‘हम दोनों दिल्ली में नए थे जब हमने ‘कुलाची हंसराज मॉडल स्कूल’ में 11th क्लास में एडमिशन लिया था। मैं उज्जैन से दिल्ली पढ़ने आया था और वह पटना से आया था। स्कूल का फर्स्ट डे जब क्लास में अपना इंट्रो देते हुए मैंने कहा कि बास्केटबॉल कैप्टन हूं, तो सुशांत ने कहा, मुझे भी बॉस्केटबॉल खेलना सिखा दो।’

 

नव्या आगे कहते हैं, ‘स्कूल में मैं और सुशांत ज्यादा से ज्यादा वक्त साथ बिताते थे। दिल्ली के मुखर्जी नगर में वह रूम लेकर रहता था और स्कूल खत्म होने के बाद वह मेरे घर के तरफ चला आता था। जहां हम IIT और AIEEE (अखिल भारतीय इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा) की तैयारी साथ करते थे। हम अपना सारा समय सुबह 7.30 बजे से रात 9 बजे तक एक साथ बिताते थे। 12th क्लास के बाद सुशांत ने एक साल दिल्ली में रहकर ही AIEEE की तैयारी की और मैंने दिल्ली छोड़ दिया था। नव्या जोकि अब एक कंप्यूटर इंजीनियर हैं। वह कहते हैं, ‘सुशांत की खासियत थी की वो जो करने का सोच लेता था, वो कर के ही मानता था। मशीनों के लिए उसका लगाव पहले से ही था। वह हमेशा कुछ नया करना चाहता था।’

 

नव्या आगे कहते हैं, ‘साल 2007 में सुशांत अचानक से उज्जैन आया और कहने लगा कि वह इंजीनियरिंग छोड़कर ऐक्टर बनने के लिए मुंबई जाना चाहता है। सुशांत की यह बात मुझे अटपटी लगी और मैंने उससे कहा कि पहले इंजीनियरिंग का कोर्स खत्म करो और फिर फैसला करो। उन्होंने मुझसे पूछा, ‘इंजीनियरिंग कर के मैं करूंगा क्या? मुझे ऐक्टर बनना है, अगर कुछ नहीं कर पाया तो तेरे साथ उज्जैन आ कर काम करूंगा। नव्या कहते हैं भगवान का शुक्र है कि उसने मेरी बात नहीं मानी! वो ऐसा ही था, करना है तो करना है। वह स्कूल के दिनों से ही हमेशा दृढ़ निश्चयी था, बड़े सपने देखता था और हमेशा खुश रहता था।

 

हिन्द वतन समाचार की रिपोर्ट ….