मेहनत का फल…

मेहनत का फल…

 

स्कूल की तरफ से कुछ बच्चे आगरा घूमने जा रहे थे। सभी बच्चों की तरह आनंद भी ताजमहल देखना चाहता था, पर उसके पास इतने पैसे नहीं थे कि जाने वालों की सूची में अपना नाम दर्ज करा सके। तभी उसे एक आइडिया सूझा..। कुछ दिन बाद उसके घर से थोड़ी दूर पर एक मेला लगने वाला था, जिसमें हाथ से बनाई अपनी-अपनी चीजों की प्रदर्शनी लगने वाली थी। चीजें पसंद आने पर खरीदार मुंहमांगी कीमत भी देते थे। आनंद पुतला बनाने में माहिर था। वह बेकार पड़ी चीजों को जोड़कर उन्हें इतना सुंदर रूप दे देता कि देखने वाले उसकी कला पर मुग्ध हो जाते! उसने सोचा कि वह जरूर इस मेले में हिस्सा लेगा। उसके मन में भगवान राम का एक छोटा और सुंदर चित्र बनाने का विचार आया। उसके पास पैसे तो थे नहीं, इसलिए उसने बिना काम की चीजें, जैसे-गत्ते, लकड़ी, रंगीन पेपर के टुकड़े आदि इक्कठा करने शुरू कर दिए। अब उसने सोचा कि इन चीजों को कैसे जोड़ा जाए। फिर उसने घर में रखा हुआ थोड़ा-सा आटा लिया और उसमें थोड़ा पानी मिला दिया और गोंद तैयार कर ली। उसके पास ज्यादा समय भी नहीं था, क्योंकि मेला लगने में केवल दो दिन शेष थे और स्कूल की सूची में अपना नाम दर्ज कराने के लिए केवल तीन दिन बाकी थे। आखिरकार, आनंद ने रात-दिन मेहनत कर भगवान राम का एक पुतला बना लिया। वह बहुत सुंदर दिख रहा था। अब उसने मेले के मालिक से अनुमति लेकर अपना पुतला वहां लगा लिया। मेले में लोग आने शुरू हो गए। आनंद बहुत उत्साहित था। सब लोग उस पुतले को देखते, लेकिन कोई उसे खरीदने आगे नहीं आता। शाम होते-होते आनंद का हौसला टूटने लगा। मेले को बंद होने में केवल पांच मिनट शेष थे। तभी अचानक एक आदमी वहां आया और पुतले को ऊपर-नीचे देखने लगा। उसे देखकर उसकी आंखों में चमक आ गई। उसने आनंद से इसकी कीमत पूछी। आनंद ने कहा, पांच सौ रुपये। उस आदमी ने पैसे देकर उसे खरीद लिया। आनंद बहुत खुश था। उसने घर जाते ही तीन सौ रुपये अपने माता-पिता को दे दिए और शेष दो सौ रुपये देकर स्कूल सूची में अपना नाम दर्ज करा दिया। उसने अपने-आप से कहा-यदि लगन और विश्वास हो, तो मेहनत का फल अवश्य मिलता है।

हिन्द वतन समाचार की रिपोर्ट ….