स्कूली छात्राओं पर कोरोना का प्रतिकूल प्रभाव…
ऑनलाइन पढ़ाई के बजाय घरेलू कामों पर समय हो रहा खर्च…
लखनऊ 14 मई। घर पर कंप्यूटर या पर्याप्त संख्या में मोबाइल ना होने के कारण जहां ऑनलाइन पढ़ाई में लड़कों को लड़कियों पर प्राथमिकता दी जा रही है, वहीं कोरोना के कारण हुए आर्थिक तंगी के कारण लड़कियों की पढ़ाई छूटने का भी डर शामिल हो गया है।
कोरोना महामारी का असर सिर्फ स्वास्थ्य और अर्थव्यवस्था पर ही नहीं पढ़ा है, बल्कि इसका प्रभाव जीवन के सभी क्षेत्रों पर है। हाल ही में जारी एक सर्वे रिपोर्ट के अनुसार कोरोना महामारी का शिक्षा के क्षेत्र में बहुत ज्यादा ही असर पड़ा है। खासकर स्कूली लड़कियां इससे प्रभावित हो रही हैं। शिक्षा पर काम करने वाली संस्था राइट टू एजुकेशन फोरम (RTE Forum) ने सेंटर फॉर बजट एंड पॉलिसी स्टडीज (CBPS) और चैंपियंस फॉर गर्ल्स एजुकेशन (Champions for Girls’ Education) के साथ मिलकर देश के 5 राज्यों में एक अध्ययन किया है, जिसके मुताबिक कोरोना के कारण स्कूली लड़कियों की पढ़ाई पर बहुत ही प्रतिकूल असर पड़ा है। घर पर कंप्यूटर या पर्याप्त संख्या में मोबाइल ना होने के कारण जहां ऑनलाइन पढ़ाई में लड़कों को लड़कियों पर प्राथमिकता दी जा रही है, वहीं कोरोना के कारण हुए आर्थिक तंगी के कारण लड़कियों की पढ़ाई छूटने का भी डर शामिल हो गया है। ‘मैपिंग द इंपैक्ट ऑफ कोविड-19’ नाम से हुआ यह अध्ययन उत्तर प्रदेश के 11, बिहार के 8, असम के 5, दिल्ली के एक और तेलंगाना के 4 जिले के 3176 परिवारों में किया गया था। आर्थिक तौर पर कमजोर इन परिवारों से बातचीत के दौरान लगभग 70% लोगों ने माना कि कोरोना लॉकडाउन के बाद उनके घर में आर्थिक तंगी हो गई है और उनके पास खाने को भी पर्याप्त नहीं बचा है। ऐसे हालात में बच्चों खासकर लड़कियों की पढ़ाई की जिम्मेदारी उठाने की स्थिति में ये परिवार नहीं हैं।
कोरोना काल में स्कूल बंद होने पर डिजिटल माध्यम से पढ़ाने की कोशिश हो रही है। लेकिन इससे फायदा होने की बजाय लड़कियों को नुकसान ही हो रहा है। अगर किसी घर में मोबाइल और इंटरनेट की सुविधा है तो उस घर में लड़कों को प्राथमिकता दी जा रही है। ऐसे में लड़कियों का यह सत्र एक तरह से बेकार ही जा रहा है। इस अध्ययन में 37% लड़कों की तुलना में महज 26% लड़कियों ने माना कि उन्हें पढ़ाई के लिए फोन मिल पाता है।
यूनिसेफ इंडिया के एजुकेशन प्रमुख टेरी डर्नियन कहते हैं कि महामारी के दौरान लड़कियों की मुसीबतें बढ़ी हैं, उन्हें पढ़ाई में प्रोत्साहन देने की बजाए देखभाल के काम सौंपे जा रहे हैं। उन्होंने कहा, “कम ही लड़कियों के पास ऑनलाइन एजुकेशन के लिए तकनीकी पहुंच है और स्कूल खुलने के बाद और भी कम लड़कियां स्कूल जा सकेंगी, ऐसा इस रिपोर्ट में कहा गया है। इस वजह से शिक्षकों और स्कूल की क्षमता बढ़ाने के लिए कदम उठाने होंगे, ताकि कोई भी शिक्षा के अपने मौलिक अधिकार से वंचित न रह जाए।” ई-लर्निंग के दौरान लड़कियों के पीछे जाने का एक कारण यह भी है कि वे स्कूल न जाने के कारण घर के कामों में लगा दी जाती हैं। तकरीबन 71 प्रतिशत लड़कियों ने माना कि कोरोना के बाद से वे केवल घर पर हैं और पढ़ाई के समय में भी घरेलू काम करती हैं। वहीं केवल 38 प्रतिशत लड़कों ने बताया कि उन्हें घरेलू काम करने को कहा जाता है। यही कारण है कि 56 प्रतिशत लड़कों की तुलना में सिर्फ 46 प्रतिशत लड़कियों ने माना कि उन्हें पढ़ाई करने के लिए समय मिल पाता है।
कोरोना काल में टीवी पर भी एजुकेशन से जुड़े कई कार्यक्रम आ रहे हैं लेकिन ज्यादातर बच्चों को इसका फायदा नहीं मिल पा रहा है। अध्ययन में शामिल कुल परिवारों में से लगभग 52% के पास घर पर टीवी सेट था, इसके बाद भी केवल 11% बच्चों ने ही कहा कि वे टीवी पर पढ़ाई से जुड़ा कोई प्रोग्राम देखते हैं। यानी घर पर टीवी या स्मार्ट फोन होना भी इस बात की गारंटी नहीं देता है कि स्कूली बच्चों को उसके इस्तेमाल की इजाजत मिल सके। इसके साथ ही बिजली न होना भी बच्चों की पढ़ाई में बाधा डाल रहा है। ग्रामीण विकास मंत्रालय के साल 2017-18 के एक रिपोर्ट के अनुसार केवल 47% घर ऐसे हैं, जहां 12 घंटे या उससे ज्यादा बिजली रहती है। ऐसे में टीवी के होने से भी कोई खास फायदा नहीं होता है।
कोविड के कारण लड़कियों की पढ़ाई एक बार रुकने से उनकी जल्दी शादी कराने के खतरे भी बढ़ सकते हैं, ऐसा इस अध्ययन में कहा गया है। अफ्रीका में इबोला महामारी के दौरान भी ऐसा होता दिखा था। इस दौरान अधिकांश किशोरियों की पढ़ाई छूटी थी और उन्हें समय से पहले ही शादी करना पड़ा था।
फिलहाल स्कूल बंद होने की वजह से ग्रामीण लड़कियों तक आयरन-फॉलिक एसिड की खुराक नियमित तौर पर नहीं पहुंच पा रही है, ऐसे में किशोर लड़कियों में एनीमिया या खून की कमी का खतरा बढ़ जाता है। हाल ही में मेट्रोपॉलिस हेल्थकेयर ने देश के 36 शहरों में एक सर्वे किया था, जिसमें पाया गया था कि 15 से 48 साल की हर 10 में 6 महिलाएं अलग-अलग स्तर के एनीमिया का शिकार हैं। हालांकि इस खतरे को देखते हुए कई राज्यों में आंगनबाड़ी कार्यकर्ताएं आईएफए टेबलेट बांटने का काम कर रही हैं, लेकिन यह काफी नहीं है।
कुल मिलाकर कोरोना के दौरान और इसके खत्म होने के बाद भी यह तय करने की जरूरत है कि लड़कियां स्कूल लौट सकें।
हिन्द वतन समाचार की रिपोर्ट…