राष्ट्रीय विद्युत नीति के मसौदे पर रोक लगाने की मांग…
लखनऊ, 04 मई। बिजली इंजीनियरों ने कोविड-19 महामारी के दौरान जारी की गई नेशनल इलेक्ट्रिसिटी पॉलिसी पर रोक लगाने और बिजली कर्मियों को नीति पर कमेन्ट देने के लिये कम से कम छह माह का समय देने की मांग की है।
ऑल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन के चेयरमैन शैलेन्द्र दुबे ने मंगलवार को बताया कि उन्होने केंद्रीय विद्युत् मंत्री आर के सिंह को प्रेषित पत्र में कहा है कि ऊर्जा मंत्रालय ने राष्ट्रीय विद्युत नीति में किए जाने वाले प्रस्तावित प्रमुख संशोधनों का मसौदा 27 अप्रैल को जारी किया है।
प्रस्तावित परिवर्तनों के लिए विद्युत अभियंताओं, कर्मचारियों और अन्य स्टेकहोल्डरों की सबसे बड़ी आपत्ति यह है कि कोविड -19 महामारी के भीषण दौर में जारी किये गए मसौदे पर कमेंट करने के लिए मात्र 21 दिन का समय दिया गया है | फेडरेशन ने इस बात की निंदा की है कि बिजली नीति में संशोधनों के मसौदे को शुरू करने के लिए केंद्र सरकार को संकट में महामारी का ही समय मिला है जब बड़ी संख्या में बिजली इंजीनियर और कर्मचारी अस्पतालों की बिजली आपूर्ति बनाने के कार्य में संक्रमित होकर अपनी जान गवां चुके हैं | पत्र में उल्लेख है कि एक बार नीति के मसौदे को अंतिम रूप दिए जाने के बाद अधिसूचित नीति को अधीनस्थ विधान का दर्जा प्राप्त होगा और इस कारण से इंजीनियरों और कर्मचारियों के बीच मसौदे पर व्यापक आपसी विचार-विमर्श किए जाने की आवश्यकता है जिसके लिए उचित समय चाहिए।
शैलेन्द्र दुबे ने कहा कि हितधारकों से टिप्पणियां प्राप्त करने के लिए ऊर्जा मंत्रालय द्वारा एक मसौदा जारी किया गया है।
केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय ने राज्यों और उद्योग संघों से कहा है कि वे अगले तीन हफ्तों के भीतर राष्ट्रीय बिजली नीति (एनईपी) तैयार करने के लिए अपने सुझाव पेश करें, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण हितधारकों, बिजली इंजीनियरों और कर्मचारियों को छोड़ दिया गया है।
उन्हें अपने विचार और आपत्तियां प्रस्तुत करने का उचित अवसर दिया जाना चाहिए।
राष्ट्रीय विद्युत नीति का मसौदा विद्युत क्षेत्र में अधिक निजी भागीदारी और राज्य सरकार द्वारा संचालित डिस्कॉम के एकाधिकार को हटाने पर जोर दे रहा है।
सुझाए जा रहे पसंदीदा सुझाए गए मार्ग में फ्रेंचाइजी प्रणाली , निजी पार्टी को विद्युत वितरण का उत्तरदायित्व स्थानांतरित करना, और कैरिज (लाइनों) और सामग्री (आपूर्ति) व्यवसाय को अलग करना जैसे विफल मॉडल हैं।
उन्होंने कहा कि पूर्व में भी कई अवसरों पर यह देखा गया है कि ऊर्जा क्षेत्र में देश का मार्गदर्शन नियंत्रित अर्थशास्त्रियों की एक लॉबी द्वारा किया जा रहा है जिसकी प्राथमिकता सार्वजनिक क्षेत्र को खत्म करना और निजीकरण को बढ़ावा देना है।
संवाददाता सिबतेंन रिज़वी की रिपोर्ट…