जब मन किया चल दिए, जहां मन किया रुक गए…

जब मन किया चल दिए, जहां मन किया रुक गए…

 

जब मन किया चल दिए, जहां मन किया रुक गए। कोई खूबसूरत लोकेशन दिखी तो रुककर सेल्फी ले ली। छोटा-सा ढाबा दिखा तो चाय की चुस्कियों के साथ लोकल लोगों के संग बतिया लिए। न बस पकड़ने की आपाधापी, न ट्रेन छूटने का डर। अलमस्त आवारा बादलों की तरह ऐसी घुमक्कड़ी किसी बंधन में मुमकिन नहीं। इसके लिए चाहिए अपनी बाइक या कार और आजाद ख्याल। बस चाबी घुमाइए और चल पड़िए। अगर आप भी अपनी कार या बाइक से देश-दुनिया के चक्कर लगाना चाहते हैं तो ये जानकारियां आपके काम आएंगी…

 

हिमालय के सुदूर इलाकों में जहां बस नहीं पहुंच पाती, मेरी बाइक ने पहुंचा दिया। पूर्वोत्तर भारत के जिन इलाकों में ट्रेन अब भी सपना है, वहां अपनी कार ने हमें चलते-फिरते घर जैसा आराम दिया। नेपाल और भूटान जाने से पहले ट्रांसपोर्ट संबंधी कई बुनियादी जानकारी नहीं मिल पाई थी तो अपनी गाड़ी से चले गए। एडवेंचर के साथ-साथ एक सुरक्षा की भावना भी अपनी गाड़ी से घूमते हुए रहती है। मिसाल के तौर पर अरुणाचल प्रदेश के सुदूर उत्तर में मेंचुका जाते हुए रास्ता बेहद खराब था। अंधेरा हो गया था, लेकिन मन में डर नहीं था। तय कर रखा था होटल मिला तो ठीक, वरना कार में ही सो जाऊंगा। इसी उम्मीद ने हौसला पस्त नहीं होने दिया और एक गांव में पनाह मिल ही गई।

 

जम्मू-कश्मीर के भद्रवाह इलाके से उस रास्ते लौटने का मन नहीं था, जिससे गए थे। एक और रास्ते का पता चला, जो जंगलों से होता हुआ सीधे हिमाचल प्रदेश के चंबा निकल जाता है, लेकिन उधर से दिन में इक्का-दुक्का कोई जीप ही गुजरती है। उस वक्त बाइक थी तो सोचा क्यों न नया रास्ता देखा जाए! जब सफर शुरू किया तो कुदरत के ऐसे नजारे देखने को मिल रहे थे, जो कल्पना से ज्यादा सुंदर थे। सारथल होते हुए सीधे चंबा निकले। वहां से डलहौजी और पठानकोट होते हुए दिल्ली। वाकई अपनी गाड़ी से घूमने में होने वाली सुविधा का कोई जवाब नहीं। हालांकि इससे पहले कि आप सफर पर निकलें, अपनी और गाड़ी की जरूरत को ध्यान में रखते हुए कुछ बुनियादी तैयारी कर लें। ऐसे किसी ट्रिप पर निकलने से पहले कुछ बातों का ध्यान रखना बेहद जरूरी होता है।

 

रास्ते की जानकारीः मैप की मदद लें…

 

मोबाइल में गूगल मैप्स का सहारा लें। ऑफलाइन मैप्स भी डाउनलोड कर लें। इंटरनेट न होने पर गूगल मैप्स काम नहीं कर पाता। गूगल मैप्स ऑफलाइन इस्तेमाल के लिए डाउनलोड हो सकते हैं। ऐप स्टोर से आप ऐसे दूसरे मैप्स भी डाउनलोड कर उसे यूज करने का तरीका इंटरनेट से सीख सकते हैं। जेब इजाजत दे तो गार्मिन के जीपीएस बेस्ड नैविगेटर डिवाइस भी खरीदे जा सकते हैं, जोकि 6000 रुपये से शुरू होते हैं।

 

मौसम की जानकारी: जहां जा रहे हैं इंटरनेट के जरिए उस इलाके के मौसम की जानकारी लें और कपड़े उसी हिसाब से रखें। जींस के अलावा सिंथेटिक कपड़े रखना ज्यादा बेहतर है क्योंकि इनकी देखभाल की कम जरूरत पड़ती है।

 

रुकने की जगह: एडवांस में होटल बुक करवाना जरूरी नहीं। इससे यात्रा के दौरान फिजूल दबाव रहता है, जो आपको ड्राइव का मजा पूरी तरह नहीं लेने देता। फिर भी यह जानकारी जरूर रखें कि रास्ते में पड़ने वाले शहर कितनी दूरी पर हैं ताकि जरूरत पड़ने पर आप वहां पहुंचने के समय का सही अंदाजा लगा सकें। वैसे, गांव-देहात में आज भी लोग टूरिस्टों को आसानी से अपने घर में पनाह दे देते हैं। इससे आपको लोकल चीजों को पास से जानने का मौका मिलता है। गुरुद्वारे में भी मुफ्त में रात गुजार सकते हैं। वैसे, ऑनलाइन होटल बुकिंग साइट्स से आप लगातार अच्छी डील की जानकारी ले सकते हैं।

 

इमर्जेंसी नंबरों की जानकारी: किसी भी इमर्जेंसी में मदद हासिल कर सकें, इसके लिए इमर्जेंसी नंबरों की जानकारी पहले से लेकर चलें। सबसे काम का नंबर है 100। आप जहां से भी गुजरेंगे, वहीं के लोकल पुलिस कंट्रोल रूम से यह नंबर कनेक्ट हो जाएगा। अगर मामला पुलिस से जुड़ा नहीं है तो भी मामले की गंभीरता को देखते हुए वे आपको स्थानीय नंबरों की जानकारी दे देंगे। इसके अलावा आमतौर पर हर हाइवे पर इमर्जेंसी नंबर लिखे रहते हैं, जिनसे दुर्घटना जैसे हालात में तुरंत मदद ली जा सकती है। अपने डॉक्टर और गाड़ी मैकेनिक या वर्कशॉप का नंबर भी साथ रखें। गाड़ी की सर्विस बुक में देशभर के सर्विस सेंटरों के एड्रेस और फोन नंबर की लिस्ट होती है, उसे भी संभालकर रखें।

 

अपनों के टच में रहें: स्मार्ट फोन की मदद से अपनी लोकेशन रियल टाइम में घर बैठे शुभचिंतकों के साथ शेयर की जा सकती है। उनके स्मार्ट फोन में फॅमिली लोकेटर ऐप डाल दें। आप सफर में जहां कहीं भी होंगे, उन्हें इसकी जानकारी रियल टाइम में मिलती रहेगी। अपने ऐप स्टोर में फैमिली लोकेटर सर्च करें। ऐसे दर्जनों ऐप मिल जाएंगे। अहम जानकारी नोट करेंः अपना नाम, ब्लड ग्रुप और एक इमरजेंसी नंबर एक कार्ड पर लिखकर हमेशा अपनी जेब या पर्स में रखें। गाड़ी के विंडशील्ड या दरवाजे पर भी यह जानकारी लिख सकते हैं। इमर्जेंसी में कोई अनजान व्यक्ति भी ये नंबर देखकर आपके घर पर सूचना भेज सकेगा।

 

परेशानी का सबब न बन जाए अपनी गाड़ी…

 

टायर पंक्चर, ब्रेकडाउन, लॉन्ग ड्राइव की थकान और ट्रैफिक जाम -ये ऐसी वजहें हैं, जो सफर का मजा किरकिरा कर सकती हैं। हालांकि पहले से तैयारी कर लें तो परेशानियों से बचा जा सकता है।

 

पंक्चरः घिसे हुए और पुराने टायर न सिर्फ पंक्चर का, बल्कि टायर फटने जैसे हादसों का सबसे बड़ा कारण होते हैं इसलिए टायर अच्छी हालत में हों। टायरों में हवा का प्रेशर सही हो। गाड़ी की सर्विस बुक में सही प्रेशर की जानकारी होती है।

 

ब्रेकडाउनः इलाज से बेहतर है बचाव इसलिए गाड़ी को हमेशा दुरुस्त रखें। लंबे सफर से पहले सर्विस करा लें, जिसमें सभी स्टैंडर्ड चेकअप हों। ब्रेक, हेडलाइट, टेललाइट, इंडिकेटर बल्ब, रियर व्यू मिरर, एयर बैग सेंसर आदि सही हों। सुरक्षा सेंसर, इंजन और ब्रेक ऑयल लेवल, एसी कूलेंट आदि सभी अच्छी तरह से चेक करवा लें। सफर के बीच में ब्रेकडाउन हो भी जाए तो कार कंपनी की हेल्पलाइन का सहारा लें, जिसका नंबर सर्विस बुक में होगा।

 

थकानः ड्राइवर को नींद आ जाना अपने देश में सड़क हादसों के प्रमुख कारणों में से एक है। दिमाग थका हो तो फैसला लेने में वक्त लगता है जबकि हाइवे पर तेज रफ्तार के साथ जरूरी है फौरन फैसला लेने की क्षमता। यह तभी मुमकिन है, जब आपका तन और मन फ्रेश होगा। इसलिए सफर से पहले और बीच-बीच में ब्रेक लेते रहें। यह आदत आपकी और गाड़ी की सेहत को बनाए रखेगी।

 

ट्रैफिक जामः सफर का सारा मजा किरकिरा कर देते हैं जाम। लेकिन आपका स्मार्ट फोन आपको इससे बचा सकता है। मोबाइल में इंटरनेट ऑन कीजिए और जहां जाना है, वहां का एड्रेस डाल दीजिए। फिर वॉइस नैविगेशन के भरोसे सफर तय करें। अगर रास्ते में कहीं जाम होगा, तो गूगल बाबा आपको दूसरे रास्ते से जाने की सलाह दे देंगे। आपके जीपीएस बेस्ड स्मार्टफोन की बदौलत यह सब मुमकिन है। वैसे अनुभव यह भी बताता है कि सड़क की क्वॉलिटी और जाम की जानकारी के लिए रोजाना हाइवे पर चलने वाले ट्रक ड्राइवरों की सलाह पर भी विचार किया जा सकता है।

 

पहले से करें ये तैयारियां….

 

पंक्चर रिपेयर किट: अचानक होने वाले पंक्चरों से निबटने के लिए पंक्चर रिपेयर किट साथ रखें। 100-150 रुपये में यह बाजार में आसानी से उपलब्ध है। पंक्चर सील करने का तरीका सीखने के लिए किसी पंक्चर रिपेयर करने वाले या यूट्यूब विडियोज की मदद ले सकते हैं।

 

ट्यूबलेस टायरः वैसे तो आजकल बाइक और कार में ट्यूबलेस टायर ही लगकर आने लगे हैं। फिर भी अगर आपकी गाड़ी में ट्यूब वाले टायर हैं तो लंबे सफर पर जाने से पहले इन्हें बदलकर ट्यूबलेस टायर लगवा लें। ये बाइक के लिए 1200 और कार के लिए 2500 रुपये से शुरू होते हैं। इनमें होने वाले पंक्चर आसानी से और कम समय में रिपेयर हो जाते हैं। तरीका इतना आसान है कि कोई भी इन्हें रिपेयर कर सकता है। इस बात का ख्याल जरूर रखें कि रॉयल इनफील्ड जैसी कई बाइक कंपनी अभी भी स्पोक वाले पहिए देती हैं, जिनमें ट्यूबलेस टायर लगवाना खतरनाक हो सकता है। ऐसे मामलों में स्पेयर ट्यूब रखने के अलावा कोई विकल्प नहीं है।

 

एयर पंप: इमरजेंसी में टायरों में हवा भरने या प्रेशर सही बनाए रखने के लिए इलेक्ट्रिक एयर पंप काफी काम आते हैं। सिगरेट लाइटर या मोबाइल चार्जर वाले सॉकेट से इन्हें चलाया जाता है। वैसे कई लोग अपने साथ पांव से चलने वाले पंप भी रखते हैं। यहां तक कि साइकल की ट्यूब में हवा भरने वाले पारंपरिक पंप से भी लोग काम चला लेते हैं। 100 रुपये से 500 रुपये तक ऐसे पंप बाजार में मिल जाते हैं।

 

पंक्चर सीलेंटः आज ऐसे लिक्विड सीलेंट (300 रुपये से शुरू) भी आसानी से उपलब्ध हैं, जो पंक्चर होते ही टायर के उस हिस्से को सील कर देते हैं, जहां से हवा लीक हो रही होती है। बाजार और ऑनलाइन शॉपिंग पोर्टल्स पर कई ब्रैंड के सीलेंट उपलब्ध हैं। इनको इस्तेमाल करने का तरीका ऑनलाइन विडियो से सीख सकते हैं। वैसे इन पर पूरी तरह निर्भरता भी ठीक नहीं है इसलिए समय-समय पर टायर चेक करते रहें। जहां भी पंक्चर की दुकान नजर आए पंक्चर रिपेयर कराते चलें।

 

पेट्रोल कैन: लद्दाख, लाहौल-स्पीती, उत्तराखंड, नेपाल, भूटान और अरुणाचल प्रदेश के कई सुदूर हिस्सों में यात्रा करते वक्त अलग-से पेट्रोल-डीजल रखना चाहिए। इन इलाकों में पेट्रोल पंप नहीं हैं। हालांकि पेट्रोल को कैरी करने में सावधानी बरतने की जरूरत होती है वरना यह जानलेवा भी साबित हो सकता है। इन्हें अच्छी क्वॉलिटी की बोतल में अच्छी तरह टाइट बंद करके रखें। इसके लिए बाजार में कई तरह की प्लास्टिक या मेटल की बोतल और कैन उपलब्ध हैं। सैनिक छावनियों के आसपास के बाजारों में ये आसानी से मिल जाती हैं। वैसे कोल्ड ड्रिंक की डेढ़-दो लीटर की खाली बोतलों में भी पेट्रोल-डीजल रख सकते हैं।

 

बाकी स्पयेर पार्ट्स:- कार के लिए जंप स्टार्ट केबल (कार स्टार्ट न होने पर), टो रोप (किसी और गाड़ी से अपनी कार खिंचवाने के लिए), क्लच वायर, हेडलाइट बल्ब, ब्रेक वायर, इंजन ऑयल, डिस्क ब्रेक ऑयल, प्लायर, स्क्रू ड्राइवर, रेंच।

 

बाइक के लिए:- सैडल बैग, बंजी रोप (सामान बांधने के लिए), हेड लाइट बल्ब, क्लच वायर, ब्रेक वायर, इंजन ऑयल, डिस्क ब्रेक ऑयल, प्लायर, स्क्रू ड्राइवर, रेंच।

 

गैजेट्स…

-स्मार्ट फोन, चार्जर और बैटरी बैंक। जीपीएस बेस्ड नेविगेटर जोकि बिना इंटरनेट के मैप यूज करने और डायरेक्शन आदि बताने में मददगार होता है। कार के मोबाइल चार्जिंग सॉकेट से चलने वाले एडॉप्टर जिनसे कैमरा बैटरी, टैबलेट या लैपटॉप भी चार्ज किए जा सकते हैं। इलेक्ट्रिक कैटल जो कॉफी, चाय, नूडल्स वगैरह बनाने के लिए पानी उबाल सकती है। मल्टिप्लग सॉकेट ताकि होटल के इकलौते पावर सॉकेट से एकसाथ कई डिवाइस चार्ज कर सकें।

 

कहां जा सकती है आपकी गाड़ी:- भारतीय संविधान अपने हर नागरिक को देश के किसी भी हिस्से में आने-जाने का अधिकार देता है। हां, इंटरनैशनल बॉर्डर के आसपास, जम्मू-कश्मीर और पूर्वोत्तर भारत के कुछ हिस्सों में जाने के लिए स्थानीय प्रशासन या सुरक्षा एजेंसियों से इजाजत लेनी पड़ती है। इसे आईएलपी (इनल लाइन परमिट) कहते हैं। लद्दाख के लिए एसडीएम लेह यह परमिशन देते हैं तो लक्षद्वीप के लिए दिल्ली स्थित लक्षद्वीप भवन, अरुणाचल प्रदेश जाने के लिए अरुणाचल भवन से परमिशन लेनी होती है।

 

क्या कहते हैं नियम-कानून:- अपनी गाड़ी से घूमते वक्त बस आपको उस देश के मोटर वीकल ऐक्ट के नियमों का ख्याल रखना होगा। अमूमन आपको अपने साथ ये ओरिजिनल डॉक्युमेंट्स रखने होंगे। आरसी यानी गाड़ी का रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट, इंश्योरेंस सर्टिफिकेट, पल्यूशन अंडर कंट्रोल सर्टिफिकेट, ड्राइविंग लाइसेंस।

 

घुमक्कड़ी का लाइसेंस: दूसरे देशों में अपनी गाड़ी से घूमने जाना अब भी हम भारतीयों के लिए उतना आसान नहीं, जितना कई यूरोपीय देशों के नागरिकों के लिए है। दरअसल यह सब हमारे देश के दूसरे देशों के साथ संबंधों और समझौतों पर निर्भर करता है। मिसाल के तौर पर यूरोप के नागरिक बेरोकटोक यूरोपीय संघ के सदस्य देशों में आ-जा सकते हैं। विदेशी टूरिस्ट भी सिर्फ एक शेनगेन वीजा लेकर यूरोपीय संघ के देशों में घूम सकते हैं। भारतीय नागरिकों के लिए यह सुविधा सिर्फ नेपाल और भूटान में हैं। ऐसे में विदेश जाने के लिए कुछ ज्यादा औपचारिकताएं करनी पड़ती हैं। आइए डालते हैं उन पर एक नजर…

 

वीजा: किसी भी दूसरे देश में एंट्री के लिए इजाजत वीजा के रूप में मिलती है। आपके पासपोर्ट पर वीजा लगने का मतलब है कि अब आप उस देश में जा सकते हैं। हर देश की वीजा फीस अलग-अलग होती है। इसकी जानकारी उनकी ऐंबेसी या उनकी आधिकारिक वेबसाइट से ली जा सकती है।

 

कारने द पैसाज (सीडीपि): यह एक फ्रेंच शब्द है। वीजा से सिर्फ आपको उस देश में जाने के इजाजत मिलती है, आपकी गाड़ी को नहीं। अपनी गाड़ी को उस देश में ले जाने के लिए कारने द पैसाज की जरूरत पड़ती है। यह इंटरनैशन लेवल पर स्वीकृत ऐसा दस्तावेज है जिसके जरिए टूरिस्ट बिना कस्टम ड्यूटी चुकाए पर्सनल गाड़ी को विदेश में कुछ समय के लिए इस्तेमाल कर सकता है। इस दस्तावेज में गाड़ी के उस देश में अंदर और बाहर जाने की तारीख रिकॉर्ड की जाती है।

 

भारत में कुछ अधिकृत ऑटोमोबाइल असोसिएशन से यह दस्तावेज लिया जा सकता है। ये असोसिएशन हैं द ऑटोमोबाइल एसोसिएशन ऑफ ईस्टर्न इंडिया, द ऑटोमोबाइल एसोसिएशन ऑफ साउथर्न इंडिया,ऑटोमोबाइल एसोसिएशन ऑफ अपर इंडिया, द वेस्टर्न इंडिया ऑटोमोबाइल एसोसिएशन कारने द पैसाज हासिल करने के लिए 75,000 रुपये फीस चुकानी होती है, फिर चाहे बाइक हो या कार। इसके साथ आपकी गाड़ी की मौजूदा कीमत का दोगुना असोसिएशन के पास बतौर सिक्योरिटी जमा करना होगा, जो लौटने के बाद वापस लिया जा सकता है।

 

इंटरनैशनल ड्राइविंग लाइसेंस: विदेश जाना चाहते हैं तो इंटरनैशनल लाइसेंस बनवाना बेहतर है। इससे किसी भी देश में परेशानी नहीं होगी। देश के हर राज्य के सरकारी ट्रांसपोर्ट ऑफिस से यह लाइसेंस जारी किया जाता है। दिल्ली में अपना वैध ड्राइविंग लाइसेंस, पासपोर्ट, वीजा, अड्रेस प्रूफ दिखाकर इसे 500 रुपये में बनवाया जा सकता है।

 

नेपाल

बिना गाड़ी के नेपाल ठीक वैसे ही जा सकते हैं जैसे दिल्ली से गाजियाबाद। लेकिन गाड़ी से जाने के लिए गाड़ी के तमाम वे कागजात चाहिए, जो भारत में जरूरी हैं। नेपाल में एंट्री के लिए भारत की तरफ से कई बॉर्डर पोस्ट हैं। वहां पहुंचते ही अपनी गाड़ी को नेपाल में ले जाने के लिए नेपाली प्रशासन से इजाजत लेनी पड़ती है। ये ऑफिस बॉर्डर पर ही होते हैं। लोगों से पूछताछ कर इनकी जानकारी मिल जाती है। दिनों के हिसाब से एक तय फीस देकर आसानी से इसकी इजाजत मिल जाती है। नेपाल में फीस दिनों के हिसाब से देनी होती है। डेढ़-दो साल पहले मैंने बाइक के लिए 50 रुपये दिए थे, जबकि कार के लिए करीब 300 रुपये रोजाना लिए जा रहे थे।

 

भूटान

भारत से सड़क से भूटान जाने का एक ही रास्ता है -फुंतशोलिंग होकर। फुंतशोलिंग में आपको अपनी पहचान साबित करनी पड़ती है। वोटर आईकार्ड, पासपोर्ट या आधार कार्ड इसके लिए मान्य हैं। फुंतशोलिंग बस अड्डे पर ट्रांसपोर्ट विभाग से आपको अपनी गाड़ी की अनुमति भी लेनी होगी। इसके लिए दिनों के हिसाब से निर्धारित फीस चुकानी होगी। करीब 3 साल पहले बाइक से भूटान गया था, तो 7 दिनों के लिए 62 रुपये लगे थे। ध्यान रहे कि फीस की रसीद हमेशा संभाल कर रखें। विदेशी नंबर होने की वजह से जगह-जगह पर आपको रोककर रसीद दिखाने को कहा जा सकता है।

 

बाइक और कार के ट्रैवल में फर्क:- बाइक और कार की सामान ढोने की क्षमता अलग-अलग है, इसलिए उसी हिसाब से सामान रखें। मौसम खराब हो या सड़क, बाइक सवार को कार चालक से ज्यादा खतरा रहता है इसलिए एंकल लेंथ शूज, नी गार्ड, सेफ्टी जैकेट, हेल्मेट, ग्लव्स बेहद जरूरी हैं। आजकल सिक्योरिटी की ये तमाम चीजें आसानी से ऑनलाइन मिल जाती हैं, लेकिन याद रखें कि कीमत के चक्कर में क्वॉलिटी से कभी समझौता न करें। वैसे तो कार में एक स्टेपनी कार के साथ ही आती है, लेकिन एहतियात के तौर पर एक और रख लें। कच्ची सड़कों या उबड़-खाबड़ रास्तों से गुजरने की नौबत हो तो कम ग्राउंड क्लीयरेंस वाली कार न ले जाएं। बेशक ऐसे मामलों में बाइक बाजी मार ले जाती है।

 

बाइकर्स ग्रुप से जुड़ने के लिए बीसीएम् टूरिंग डॉट कॉम यंग इंडियनस डॉट इन, एक्सबीएचपी डॉट कॉम और फेसबुक पर कई बाइकर्स ग्रुप हैं। हालांकि ये सभी अनौपचारिक ग्रुप हैं, यानी कानूनी रूप से इनकी कोई मान्यता नहीं है। वैसे भी बाइकर्स ग्रुप के लिए कोई कानूनी गाइडलाइंस नहीं हैं इसलिए अपने विवेक का इस्तेमाल कर ही इनसे जुड़ें।

 

ट्रिप कितनी लंबी दिल्ली से लद्दाख: 15 दिन दिल्ली से सांग्ला घाटी (हिमाचल): 6 दिन दिल्ली से सरिस्का नैशनल पार्क: 2 दिन दिल्ली से दमदमा झील: 1 दिन दिल्ली से डोटी-सिलगढ़ी (नेपाल): 4 से 6 दिन तक दिल्ली से पोखरा और काठमांडू (नेपाल): 6 से 14 दिन तक सिलीगुड़ी से थिंपू (भूटान): 6 दिन जयगांव (पश्चिम बंगाल) से पारो (भूटान): 4 दिन इम्फाल (मांडले) से म्यांमार -बैंकॉक, थाइलैंड: 12 दिन

हिन्द वतन समाचार की रिपोर्ट …