एक तीर अनेक शिकार…

एक तीर अनेक शिकार…

 

-संदीप सक्सेना-

 

एक बार की बात है, एक राजा अपनी शासन कुशलता, योग्यता व सद्गुिणों के कारण दूर-दूर तक प्रसिद्ध था। कुशल प्रशासन व प्रजा पालन के लिये उसने अपने योग्य मंत्रियों को अलग-अलग विभागों का कार्यभार सौंपा था। सबके प्रशासनिक कार्यों व कामकाज के तरीकों पर राजा की पैनी दृिष्ट रहती थी। सब कुछ सही ढंग से चल रहा  था कि कुछ समय बाद राजा के राज्य के कुछ हिस्सों से ये बात चर्चा में आई कि वहां के प्रशासक और राजा के प्रतिनिधि अपना कार्य ठीक प्रकार से नहीं कर रहे हैं। वे मनमानी कर रहे थे, प्रजा से अन्याय हो रहा था। जैसे-जैसे समय बीतता गया, स्थितियां और भी खराब होती गईं। राजा के कानों तक यह सारे समाचार कई तरीकों से पहुंचने लगे तो उन्हें बड़ा दुख हुआ तथा अपने प्रतिनिधियों की कारगुजारियों पर बड़ा क्रोध आया। वह गंभीर सोच में पड़ गया तथा अपने प्रधानमंत्री से इस विषय में विस्तार से चर्चा की। अपने शासन की चारों ओर फैली सुख्याति की रक्षा के लिये वह गंभीरता से सोचने में लग गया था। अंततः बिगड़ती हुई स्थितियों को सुधारने के लिये उसने एक योजना बनाई। उसने अपने दरबार में यह घोषणा कर दी कि वह अपने कुछ प्रशासकों व प्रतिनिधियों के कार्य व उनकी सेवाओं से प्रसन्न होकर उनको पुरस्कृत करेगा, पदोन्नति होगी और राजा के दरबार में उन्हें स्थान प्राप्त होगा। राजा की इस घोषणा के परिणामस्वरूप व्यापक प्रतिक्रिया हुई। सब अपने-अपने ढंग से इस दिशा में सोचने व अनुमान लगाने लगे। पर, राजा ने इस चयन में जिन-जिन नामों की घोषणा की, उससे सब बुरी तरह चैंक पड़े थे। इसकी तो किसी ने कल्पना ही नहीं की थी। वे सभी राजा के प्रतिनिधि प्रशासक थे जिन्हें लेकर हर तरफ निंदा हो रही थी। राजा के कुछ योग्य व गुणी मंत्रियों को, जो कि राजा के दरबार की शोभा थे, उन चयन किये गये कुप्रशासकों के स्थान पर शासन करने को तैनात कर दिया गया तथा उन कुप्रशासकों को राजा के नियंत्रण में उनके दरबार में स्थान दे दिया गया। जो कोई भी राजा के इस अनोखे निर्णय के बारे में सुनता-जानता, बेहद हैरानी में पड़ जाता था। अंततः राजा के प्रधानमंत्री से नहीं रहा गया और उन्होंने राजा से प्रश्न कर ही लिया। अपने प्रधानमंत्री की बात सुनकर राजा मुस्कुराए और बोले, आप भी प्रधानमंत्री जी नहीं समझ पाए ऐसा करने का कारण। सम्मान क्या… सीधी सरल-सी बात है, मुझे उनके ऊपर अपना नियंत्रण करना था, उनकी कारगुजारियों को रोकना था और उन स्थानों के निवासियों को उनकी तकलीफों से उबारना था, इसलिए मैंने ऐसा करने का निर्णय लिया। रही बात अपने दरबार के अच्छे योग्य व गुणी मंत्रियों को यहां से हटाकर वहां भेजने की, तो इसमें कोई असाधारण बात नहीं। वे अच्छे हैं, योग्य व गुणी हैं तथा राज्य के हितों के प्रति समर्पित हैं, सो वे जहां भी रहेंगे अच्छा करेंगे। इस तरह से मैंने एक तीर से कई निशाने साध लिये। एक तो उन दोषियों को अपनी मनमानी करने व कुशासन से रोका और अपने नियंत्रण में ले लिया तथा दूसरी यह कि उन स्थानों की प्रजा को कुशासन की तकलीफों से मुक्ति दिलाने का काम कर दिया। साथ ही साथ उन दोषियों को यह भी नहीं महसूस होने दिया कि उन्हें दंड मिला है, उन्हें तो यह लग रहा है कि राजा ने उनसे प्रसन्न होकर पुरस्कार स्वरूप अपने निकट व अपने दरबार में शामिल करने का सम्मान दिया है। अब बताइये कि यह कैसी रही मेरी योजना। राजा की बात सुन उनके प्रधानमंत्री प्रभावित हुए बिना नहीं रह सके।

हिन्द वतन समाचार की रिपोर्ट…