टेक्नोलॉजी के युग में शिक्षक, शिक्षार्थी और शिक्षा से होता खिलवाड़ …मोहल्ला क्लास…

टेक्नोलॉजी के युग में शिक्षक, शिक्षार्थी और शिक्षा से होता खिलवाड़ …मोहल्ला क्लास…

निश्चित रूप से हम सब फेसबुक, व्हाट्सएप ,टि्वटर इंस्टाग्राम के साथ फ्रेंडली हो चुके हैं और यही कारण है कि अपनी हर छोटी-बड़ी गतिविधियों को सबके साथ शेयर करना आज प्राथमिकता हो गई है।
अभी कुछ दिनों से पेपर में मोहल्ला क्लास का कॉन्सेप्ट शुरू किया है। पेपर में कहें या नवाचार दिखाने को आतुर शिक्षकों के द्वारा अपने फोटो खींचने और भेजने की गतिविधि में बच्चों और शिक्षकों को कोविड-19 की महामारी में कटघरे में खड़ा कर दिया है। जो शिक्षक इस तरह के नवाचार करके अपनी फोटो अपलोड नहीं करता उसे निकम्मा और कामचोर समझ लिया जाता है।
अब तो देखा देखी और फोटो भेजने के क्रम में अव्वल रहने की दौड़ में बेसिक शिक्षा विभाग के विभिन्न ब्लॉकों के खंड शिक्षा अधिकारी भी शामिल हो गए हैं बकायदे सूची बनती है उसमें नंबर दिए जाते हैं कि कौन सा खंड शिक्षा अधिकारी नवाचार करवाने में कितना आगे हैं हकीकत में कहें तो नवा चारों की फोटो पोस्ट कराने में।
जैसा कि सभी जानते हैं कोविड-19 की महामारी में बेसिक शिक्षा परिषद के सभी स्कूल तथा प्राइवेट शिक्षण संस्थान में शिक्षक विद्यालय जा रहे हैं पर बच्चों का जाना कोविड-19 महामारी की वजह से बंद किया गया है कारण सीधा सा है कहीं ना कहीं सरकार और सत्ता को यह बात समझ में आई है कि यदि बच्चों में इंफेक्शन फैला तो शायद उसे कंट्रोल करना इतना आसान नहीं होगा।

इसी क्रम में शिक्षा विभाग में विद्यालय में शिक्षक ससमय उपस्थित हैं और बच्चों को ऑनलाइन तथा दीक्षा एप व अन्य पोर्टल के माध्यम से पढ़ा रहे हैं और इस गतिविधि में बच्चों के परिवार के सदस्य भी शामिल हैं। हफ्ते में कुछ बच्चों को अलग-अलग समय में बुलाकर वर्कशीट भी दी जा रही है। इतना कुछ होने के बावजूद कुछ शिक्षक गांव और मोहल्ले में जाकर एक साथ 25 से 30 बच्चों का झुंड एकत्र करके वहां पर स्कूल का ब्लैक बोर्ड ले जाकर पढ़ाते हैं क्या यह हास्यास्पद है या सरकारी आदेश के तहत किया गया एक मजाक ????
आप मनन करें यदि 10 से 20 बच्चों को एक साथ समूह में बैठाकर पढ़ाना ही है तो उन्हें विद्यालय परिसर में बुलाकर क्यों नहीं पढ़ा जा सकता? क्या अब समय आ गया है कि बेसिक शिक्षा परिषद के विद्यालय पूरी तरह तैयार हो गए हैं कि बच्चों को एकत्र करके उन्हें पढ़ा जा सके ?यदि नहीं ……तो फिर इस तरह के मोहल्ला क्लास लगाकर बच्चों के जीवन के साथ खिलवाड़ करने की आवश्यकता क्या है?
वैसे हकीकत आप सभी जानते हैं कि उन मोहल्ला क्लासों में क्या होता होगा। कहीं ना कहीं फोटो अपलोड करने के चक्कर में भीड़ तो जुटाई ही जाती है वह भी मासूम बच्चों की। मोहल्ला क्लास रूपी इस गतिविधि में बीकेटी और गोसाईगंज के ब्लॉक नंबर एक पर चल रहे हैं।वाकई सरकार के आदेशों की धज्जियां कितनी सफलता पूर्वक उड़ाई जा सकती हैं यह मोहल्ला पाठशाला के रूप में हमें देखने को मिल जाता है आप किसी भी फोटो को जो कि सोशल मीडिया में शिक्षक द्वारा या खंड शिक्षा अधिकारी द्वारा शेयर की गई है उसमें आप देख सकते हैं बच्चे बिना किसी मास्क के बिना किसी सोशल डिस्टेंसिंग के एक के साथ सठ कर बैठे हुए हैं कहीं गए तो एक साथ झुंड में खड़े हुए दिखाई दे रहे हैं।
इस मोहल्ला पाठशाला का एक दूसरा पहलू यह भी है कि जब कई विद्यालय के शिक्षक मोहल्ले में जाकर उनके बच्चों को एकत्र करने के लिए कहते हैं तो गार्जियन उल्टा ही नाराज होने लगता है और कहता है मैडम जी जब एक साल का इंतजार लगभग कर ही लिया तो कुछ महीने और सही है तो टीका भी आ गया है बच्चों के जीवन से खिलवाड़ नहीं करेंगे।
यदि अभिभावक जागरूक हैं तो वह बच्चों को मोहल्ला पाठशाला भेज नहीं रहे और जो अभिभावक अनपढ़ हैं जागरूक नहीं हैं उन्हें क्या फर्क पड़ता है कि उनके बच्चे दिन भर कहां घूम रहे हैं पर इसका खामियाजा तब देखने को मिलेगा यदि गाहे-बगाहे कोई भी बच्चा बीमार पड़ता है या इस संक्रमण से ग्रसित हो जाता है ।इस गतिविधि में शिक्षक इस महामारी की चपेट में आ जाता है।
जब तक सतर्कता और गाइडलाइन का पालन करते हुए विद्यालयों को खोलने का निर्देश जारी नहीं हो जाता तब तक यही बेहतर रहेगा कि ऑनलाइन शिक्षा तथा लिखित मटेरियल बच्चों को भिजवा कर उन्हें शिक्षित किया जाए ,ना कि एक साथ एकत्र करके और एक जगह भीड़ के रूप में पढ़ा कर उनके जीवन से खिलवाड़ किया जाए।
बेसिक के शिक्षक इन बच्चों को विद्यालय में प्रतिदिन विभिन्न अलग-अलग कक्षाओं के आधार पर बुलाकर बच्चों को विद्यालय परिसर में ही पढ़ा सकते हैं तो फिर इस प्रकार के दिखावे को करने की क्या जरूरत है।
निश्चित रूप से जिस भी शिक्षक ने परंपरा शुरू की उसकी विचारधारा अपने आप को लोगों से अलग दिखाना और इसके सिवा कुछ नहीं रही होगी।कोरोना महामारी में इस प्रकार का दिखावा किसी की जान के पीछे भी पड़ सकता है गांव में इस प्रकार शिक्षकों का समूह मैं बच्चों को एकत्र करना गांव वालों के लिए आपत्ति का कारण भी बन सकता है और शिक्षक तक असामाजिक तत्वों कि पहुंच आसानी से होने का कारण भी। विद्यालय प्रांगण के बाहर की गई इस गतिविधी से असमाजिक तत्वों द्वारा आसानी से शिक्षक की छवि को धूमिल किया सकता है।

कोरोना महामारी के इस दौर पर जहां सोशल डिस्टेंसिंग सैनिटाइजेशन और मास्क की बात की जा रही है वह इस तरह के समूहों को क्या संक्रमण से बचाया जा सकता है ???और यदि संक्रमण वाकई खत्म हो गया है तो फिर विद्यालय पुनः क्यों नहीं खोल दिए जाते।

हिन्द वतन समाचार की रिपोर्ट…