अधिकारी और अधिकार निश्चित रूप से शब्द तो अलग अलग है …

अधिकारी और अधिकार निश्चित रूप से शब्द तो अलग अलग है …

अधिकारी वही अच्छा होता है जो अधिकार भी रखें और उनका सही जगह प्रयोग भी करें… 

निश्चित रूप से आपको भी कभी ना कभी कोई ऐसा अधिकारी जरूर मिला होगा जिसने परिस्थिति वस उत्पन्न आपकी स्थितियों को समझा और अपने अधिकारों का प्रयोग करते हुए आपकी मदद की हो………..
आइए आपको मिलवाते हैं एक ऐसे ही बेमिसाल अधिकारी से……….. श्री मान रिग्जियान सैंफिल जी।

बहराइच की डीएम के रूप में तैनात बुधं शरणम् गच्छामि के मन्त्र को अपना आधार मानकर गरीब मजबूर व बेसहारा के लिए वे कुछ भी करने को उठ खड़े हो जाते हैं।डीएम साहब की सबसे बड़ी खासियत उनके समस्याओं को सुलझाने के बहुत ही बेसिक मगर कारगर उपाय होते थे।
बहराइच ,कुशीनगर गोंडा, में आम जनता अधिकारी और कर्मचारी आपको इमानदार दिलेर और गरीबों के मसीहा के रूप में जानते हैं। विभिन्न सरकारों में उच्च पद धारण करने वाले सैम्फिल साहब भगवा तो नहीं पहनते पर उनकी पूरी कार्यशैली किसी संत व फ़कीर से कम नही है। बेहद सादगी और दयालु ह्रदय के ईमानदार छवि के सैम्फिल साहब जब बहराइच में जिलाधिकारी थे तब इन्होंने जनहित के एक से बढ़कर एक काम किये। वर्तमान में शायद पर्यटन सचिव के रूप में जम्मू-कश्मीर में तैनात हैं।
यह मेरा सौभाग्य है कि इस विलक्षण प्रतिभा के धनी गरीबों के मसीहा जरूरतमंदों के हमदर्द जिले के सर्वोच्च पद पर आसीन महान व्यक्ति और एक अधिकार रखने वाले अधिकारी से मेरी मुलाकात कुछ इस तरह हुई………. बात जुलाई 2010 की है मेरी शिक्षक के तौर पर तैनाती बहराइच में हुई थी 6 महीने की मेटरनिटी लीव के बाद बच्चे की परवरिश हेतु मैंने चाइल्ड केयर लीव 3 महीने की ले रखी थी इसी दौरान वहां पर चुनाव होने की घोषणा हुई और उस चुनाव में मेरी भी ड्यूटी लगा दी गई नानपारा के किसी गांव में।
क्योंकि मैं अवकाश में थी अतः खंड शिक्षा अधिकारी द्वारा फोन से मुझे सूचित किया गया कि आकर अपनी ड्यूटी रिसीव कर ले 3 दिन बाद चुनाव है ……उसकी ट्रेनिंग वगैरह होनी है। मैंने उनसे कहा कि इस समय तुम्हें छुट्टी पर हूं पर उन्होंने कहा कुछ नहीं हो सकता ड्यूटी तो करनी ही होगी क्योंकि बात 2010 की है उस समय चाइल्ड केयर लीव नई आई थी और जो भी छुट्टी पर तैनात होता था उसे सैलरी नहीं मिलती थी अतः कई महीने से मुझे भी सैलरी नहीं मिल रही थी।
आर्थिक दबाव छोटे बच्चे की परवरिश का दबाव और परिवार की कई अन्य जिम्मेदारियां … इन सब को लिए हुए मैं 9 जुलाई को बहराइच गई।
ड्यूटी का कागज लिया पर मेरी परिस्थितियां ड्यूटी करने लायक नहीं थी बच्चा छोटा था ,मैं अवकाश पर थी, तनख्वाह नहीं मिल रही थी, इसके बाद नानपारा बहराइच का सबसे दूरस्थ ब्लॉक था। निर्वाचन ड्यूटी कटवाने के लिए मैं सबसे पहले निवर्तमान बीएसए धर्मेंद्र सक्सेना जी के पास गई, उन्होंने कहा कि वह सक्षम नहीं है ड्यूटी तो करनी ही पड़ेगी।
इसके बाद जब अपने नियोक्ता अधिकारी का दरवाजा बंद देखा तो मैं सीडीओ बहराइच के पास गई ।इस समय उनका नाम याद नहीं है पर लगभग 50 वर्ष की उम्र रही होगी अन्य बहुत से लोग भी छुट्टी कटवाने के लिए आ रहे थे उन्होंने मुझे देखते ही कटाक्ष किया” मैडम बच्चा छोटा है तो हम लोग क्या करें ड्यूटी तो आपको करनी ही पड़ेगी, नौकरी लेते समय लोग मजबूरियां नहीं देखते जब नौकरी मिल जाती है तो मजबूरी बताते हैं”और एक कुटिल सी मुस्कान……. माना कि शिक्षकों की कोई इज्जत ना तो अधिकारी करते हैं और ना ही कुछ ना करने वाले लोगऔर इस तरह के कई कटाक्ष अक्सर सुनने को मिलते हैं। अक्सर अधिकारियों का ये कहना आपको भी सुनने को मिलता होगा ये मेरे अधिकार में नहीं…… यदि सोर्स और बोल्ट है तो काम उन्ही के द्वारा हो जायेगा।
पर मुझे अफसोस इस बात का था कि मेरी परिस्थितियां सही थी और मेरे द्वारा रखे जा रहे तर्क तभी पूरी तरह सही। मैं और साथ गए हस्बैंड पूरी तरह निराश होकर वापस उस स्थान की तरफ़ जा रहे थे जिसका नाम किसान डिग्री कॉलेज था यहीं पर कैंप लगा हुआ था जहां मुझे अपनी ड्यूटी ज्वाइन करनी थी।
सीडीओ बहराइच और किसान डिग्री कॉलेज के बीच एक बड़ा सा बंगला था जो कि बहराइच के डीएम का आवास था…. ऊंचे ऊंचे पेड़ों के बीच बहुत बड़ा केंपस…… तभी जैसे ही हम गेट के सामने पहुंचे मैंने मन में सोचा क्यों ना एक बार जिले के सर्वोच्च अधिकारी से अपनी पूरी बात कहूं इसके बाद जो होगा देखा जाएगा।
मेरे इस प्रकार के प्रस्ताव से मेरे पति खुश नहीं थे और मुझे डांटते हुए चुपचाप ड्यूटी ज्वाइन करने को कहने लगे और डीएम कुछ नहीं करेगा यह भी कहा मैंने उनको वहीं रुकने को कहकर एक हाथ में बैग एक हाथ में कागज और बच्चे को लेकर गुस्से असंतोष और आंखों में आंसू का मिश्रण लिए हुए रिक्शे से उतर गेट के पास पहुंची। वहां पर खड़े हुए पुलिस के जवान को मैंने पूरी बात बताई तो उसने अन्दर जाने दिया। काफी दूर चलने के बाद पता चला डीएम साहब सफेद रंग की पुताई की गई एक बिल्डिंग या विशाल महल से भवन मिलेंगे। वहां फिर एक बार अंदर ना जाने देने का प्रोसेस शुरू हुआ फिर मेरे द्वारा पूरी बात बताए जाने पर उन्होंने दो-तीन मिनट रुकने को कहा यदि डीएम साहब बाहर आ जाते हैं तो ठीक है वरना आप अपने घर वापस जाइए कहकर अन्दर जानें दिया।
क्योंकि मेरा बेटा बहुत छोटा था और उस समय तक बैठ भी नहीं पता था दो-तीन मिनट का दिया गया समय कब 10 से 15 मिनट हो गए पता ही नहीं चला दरबान ने बताया कि साहब की मीटिंग चल रही है अभी वह मीटिंग के बाद चुनावी स्थल के लिए निकल जाएंगे मिलना मुश्किल है वहीं जाइए। मै निराश हो जा ही रही थी तभी बच्चों की प्राकृतिक आवश्यकता की वजह से बेटे ने रोना शुरू किया….. आप यकीन नहीं करेंगे रोने की आवाज निकले 2 मिनट भी नहीं हुए होंगे कि डीएम साहब उस कमरे में आ गए और उन्होंने पूछा कि मैडम आप यहां क्या कर रही हैं मैंने उन्हें अपनी पूरी बात बताई तो उन्होंने कहा क्या आपको आपके काम की तनख्वाह नहीं मिल रही है ?
मैंने कहा इस समय मैं छुट्टी पर हूं और तनख्वाह भी पूरी तरह रुकी हुई है …. क्योंकि बच्चा रो रहा था उन्होंने उसे चुप कराने का इशारा किया तथा मेरे एक हाथ में बैग ,बच्चा और दूसरे में पेपर जो कि दूरबीन बन चुका था …डीएम साहब ने खुद अपने हाथों से दूरबीन बने पेपर को सीधा किया और उसमें लिखा कि तत्कालीन की ड्यूटी निरस्त की जाती है और वापस उस पेपर को फोल्ड करके मेरे हाथ में उसी प्रकार लगाते हुए कहा कि मैडम आप जाइए और फला अधिकारी को यह कागज दे दीजिएगा आपकी ड्यूटी कट जाएगी।
वाकई मुझे यकीन नहीं हो रहा था कि जो प्रयास में लगभग पिछले 12 घंटे से कर रही वह पूर्ण हुआ । असीमित अधिकार रखने वाले डीएम साहब को न्याय हेतु बहुत-बहुत धन्यवाद कहा और उन्होंने बच्चे के गाल में एक प्यारी सी थपकी देते हुए कहा बच्चे का ध्यान रखना।
वहां से फिर बाहर गेट की ओर चल पड़ी जो कि वहां से काफी दूर था ।आंखों में खुशी और अपने अकेले के इस प्रयास के सफल होने के उत्साह में आंसू थे…काम नहीं होगा ऐसा मेरे पतिदेव पहले ही कह चुके थे और अंदर भी मेरे साथ नहीं गए थे सुनकर उन्हें भी आश्चर्य हुआ।
बहराइच में ऐसा कोई दफ्तर जो चुनाव प्रक्रिया से जुड़े सक्षम अधिकारी को लिए हुए था ना बचा था जहां मै ना गई हर जगह निराशा और वही काम मिनटों में हो गया।

वाकई मैं अपने जीवन में शायद अथाह अधिकार रखने वाले इस अधिकारी से पहली और अंतिम बार मिल रही थी।मैंने सुना था कि जिले के कलेक्टर साहब इतने दयालु है कि अपनी आधी तनख्वाह बाढ़ पीड़ितों को दिया करते हैं ।किसी की भी समस्या जो वाजिब होती थी उसका समाधान जरूर किया करते हैं वाकई डीएम साहब की जितनी तारीफ सुनी थी उससे उन्हें ज्यादा पाया और संवेदनशीलता का स्तर इतना कि मैं अदना सी सहायक अध्यापिका और वह जिले के सर्वोच्च अधिकारी फिर भी बिना किसी प्रोटोकॉल के डीएम साहब ने मेरे हाथ से दूरबीन बने पेपर को निकाला सीधा किया और वापस उसी रूप में मेरे हाथ में लगाया ताकि बैग ,बच्चेऔर पेपर तीनों को मैं अच्छे से संभाल सकूं।
उस पेपर को लेकर जब मैं उस पंडाल में पहुंची जहां पर ड्यूटी कट रही थी तब तक हमारे खंड शिक्षा अधिकारी भी अपने स्तर से ड्यूटी कटवा कर आ चुके थे और मुझे खोज रहे थे जब उन्हें पता चला कि खुद डीएम साहब ने ड्यूटी काटी है तो खुश हुए ।

ड्यूटी कटवाने के बाद लगभग 2 किलोमीटर तक पैदल चलना पड़ता था क्योंकि वह स्कूल का कैंपस था मैं पैदल वापस आ ही रही थी तभी डीएम साहब की बत्ती लगी हुई अंबेसडर वहां से गुजरी उन्होंने अपनी गाड़ी का शीशा खोला और उस बच्चे को हाथ हिलाते हुए बाय किया वाकई वह अधिकारिक मुस्कान इतनी बड़ी थी कि मैं ताउम्र नहीं भूल सकती।
शायद यही जीवन का सार है अगर हमारे पास किसी की मदद करने का अधिकार है तो उसे जरूर करना चाहिए माना कि आज झूठ और फरेब का बाजार चारों तरफ लगा हुआ है इसके बावजूद भी सही और गलत का अंतर करने का अधिकार रखने वाला ही शायद सफल अधिकारी होता है। गोंडा और कुशीनगर का डीएम रहते हुए आपको आपकी जनता से जुड़ाव के कारण ही सफल एडमिनिस्ट्रेटिव के पुरस्कार से नवाजा गया।
आज मेरी तैनाती लखनऊ में है नौकरी के लगभग 12 साल हो गए पर दोबारा ऐसा कोई अधिकारी नहीं मिला जो वाकई अधिकारी होते हुए अपने अधिकारों के प्रति दूसरों के हितों के प्रति तथा अपने पद से दूसरों को खुशी देने और सम्मान देने के प्रति जागरूक रहा हो।

अनुभव की इस यात्रा में एक नाम और जोड़ना चाहूंगी ,अभी कुछ महीने पहले ही लखनऊ जनपद में मंडलीय सहायक शिक्षा निदेशक के रुप में प्रताप नारायण सिंह जी की नियक्ती हुईं। जनपद में शिक्षक प्रतिनिधि होने के कारण कुछ महीने पहले वेतन विसंगति तथा वेतन में जानबूझकर की गई अनियमितता के कारण लेखा अधिकारी लखनऊ से कुछ वाद विवाद हुआ और लेखा अधिकारी अपने आपे से बाहर हो गए तथा महिला संबंधी टिप्पणी करने लगे, समानता के इस युग में जो असहनीय थीं। इस बात की शिकायत को लेकर हम पहली बार एडी साहब के कमरे में शिकायक के लहजे से गए।
यूनियन के सभी पदाधिकारियों को आपने बड़े इत्मीनान से सुना और तकनीकी पक्षों को समझाया, हमारा गुस्सा कुछ मिनट बाद गायब हो गया। हमारी वैचारिक लड़ाइयां लेखा अधिकारी महोदय से चलती रही जो कि कागज़ी शेर के सिवा कुछ भी साबित नहीं हुई।
पूरे देश ने 2020 को कोरोना महामारी के रूप में देखा इसी विभीषिका के क्रम में हमारी अगली मुलाकात लगभग 8 महीने के बाद एडी सर से हुई । अब मास्क ,सैनिटाइजर के बीच ऑफिस का माहौल बदल चुका था और मैंने भी दूसरे संगठन ज्वाइन कर लिया था मंडल पदाधिकारी के रूप में जब साहब से मिलने गए तो उन्होंने उपस्थित सभी लोगों को अपने ऑफिस में निर्मित एक स्पेशल दालचीनी काढ़ा पिलवाया।
यह सरल सहज व्यवहार हमारे साथ ही नहीं होता , उन सभी आने वालों को उस काढ़े का स्वाद चखने को मिलता है।काढ़ा अद्भुत जड़ी बूटियों से बना हुआ होता है बड़े ही प्यार सम्मान और समानता के साथ सभी के सामने उपस्थित होता। उस काढ़े की एक घूंट इतनी प्रभावशाली थी कि करोना क्या उसके जैसे कई अन्य वायरस तुरंत ही खत्म हो जाए ।
एक उच्च अधिकारी द्वारा किया गया यह व्यवहार बहुत ही अलग है अपने कर्मचारियों के प्रति सम्मान और देखभाल की भावना को प्रकट करने वाला यह व्यवहार क्यों किया जाता है जब हमने एडी साहब से पूछा तो उन्होंने कहा कि इस लड़ाई में मास्क और सैनिटाइजर तो सभी प्रयोग करते हैं , दिन भर की थकान और भागमभाग भरी जिंदगी में मेरे ऑफिस में आए हुए सभी आगंतुक कर्मचारियों, सहयोगियों, और शिक्षकों को काढ़े के माध्यम से गले को सैनिटाइज करने और फ्रेश होने का माध्यम देता हूं ताकि सब निरोगी और स्वस्थ रह सकें।निश्चित रूप से उत्तर बहुत कुछ सिखाने और मन को सुकून देने वाला था।
आज के इस आपाधापी और आर्थिक युग में जहां कोई भी अधिकारी अपने अधीनस्थ कर्मचारियों को एक कप चाय पिलाना पसंद नहीं करते वहां स्वास्थ्यवर्धक काढ़ा सभी को समान रूप से वितरित कराया जाना वाकई एडी बेसिक लखनऊ के द्वारा किया गया एक अनोखा कार्य है।
एक सक्षम अधिकारी के रूप में एडी सर से कोई भी अपनी समस्या को लेकर जब मिलता है तो बहुत ही सहजता से सुनते हैं और फाइलों दर फाइलों को रखने की वजाय कार्यवाही हेतु तुरंत सक्षम अधिकारी को फोन करके उसका निस्तारण करने की हर संभव कोशिश करते हैं ।
इन सभी गतिविधियों में एक संवेदनशील और दूसरों के सम्मान करने की भावना लिए हुए , अपनी निश्चल मुस्कुराहट और समझदारी पूर्ण निर्णयों के साथ…….. शायद इसी को कहते हैं अधिकारी जो अधिकार रखें।….. .
बाकी आप सब खुद मिलकर अनुभव करें…….
@रीना त्रिपाठी

हिन्द वतन समाचार की रिपोर्ट…