फिर आना दुष्यंत (कहानी)
-दिबेन-
बहुत सुन्दर हो तुम! …बहुत! हां, बहुत सुन्दर। वह उसे एकटक घूर रहा था और बुदबुदा रहा था।
उसके गालों पर सुर्खी दौड़ गई। पलकें नीचे झुकाकर पैर के अंगूठे से वह मिट्टी कुरेदने लगी।
कौन हो तुम! …क्या इन्द्रलोक की अप्सरा हो? उसने थोड़ी शरारत से पूछा।
वह चुप रही।
तुम्हारा नाम क्या है? उसने बेताब होकर पूछा।
वह चुप रही।
तुम्हारे पिता…?
उसकी आंख से आंसू झरने लगे।
पिताजी तो नहीं हैं। आंसुओं से भीगी, भर्रायी आवाज में उसने कहा।
उसे उससे सहानुभूति हो आई-घर पर कौन-कौन हैं?
मां है। उसकी आंखें नहीं हैं। दो-ढाई एकड़ खेत के टुकड़े हैं। उनमें खेती-बाड़ी मैं ही कराती हूं। कुछ गाय हैं, भैंस हैं उनकी देखभाल भी मैं ही करती हूं।
मुझे अपने घर ले चलोगी? उसने कहा-अपनी मां से मिला देना। एक गिलास ठण्डा पानी पिला देना।
उसने बिना कोई उत्तर दिए उसे अपने पीछे आने का संकेत किया और कुछ दूरी पर खेतों में बनी एक झोपड़ी की तरफ चल दी।
वह उसके पीछे चल दिया। एक साफ-सुथरे, पेड़-पौधों से घिरे स्थान पर उसकी झोपड़ी थी। नीम के पेड़ के नीचे बहुत सुन्दर गाय बंधी थी।
नीम के आगे गुलमोहर के कई पेड़ थे। झोपड़ी के साथ कई पेड़ शीशम के थे।
बाहर छाया में ही बैठिए। कहकर उसने शीशम के नीचे खड़ी खटिया को बिछा दिया। उसकी मां गाय के पास बिछी एक छोटी खटिया पर बैठी थी।
कौन आया है? मां ने कांपती आवाज में पूछा।
अतिथि है। दूर गांव से आया है। प्यासा है। सिट्टो यानी उसने उत्तर दिया।
सिट्टो बिटिया! पानी में थोड़ी खांड घोल देना। कोरा पानी अतिथि को नहीं पिलाना। नसीबों वाले के दर पर अतिथि आते हैं। मां की आवाज हवा में थरथरायी-तेरा बाप था तो रोज अतिथि आते थे। अब कोई निकट संबंधी भी नहीं आता।
वह खांड मिलाकर, घड़िया का ठण्डा पानी गिलास और एक लुटिया में भरकर ले आई।
गिलास हाथ में पकड़कर उसने मुंह से लगा लिया। अब चलूंगा। कहकर वह मां के पास गया। मां को धन्यवाद किया और चलने की अनुमति ली। सिट्टो की तरफ देखकर उसने कहा-कल फिर आऊंगा। और तेजी से चला गया। अगले दिन वह फिर आया। खांड का ठण्डा-मीठा पानी पीया और चला गया।
वह लगातार कई दिन इसी तरह आता रहा और जाता रहा। एक दिन उसने सिट्टो से कहा-मैं तुम से शादी करना चाहता हूं। प्लीज इनकार मत करना।…इस बारे में मां से भी बात करूंगा।
उसे अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ। इस बार लज्जा से उसकी नजरें झुकी नहीं अपितु विस्मय से वह उसका मुंह ताकती रही।
चुप क्यों हो? उसने पूछा-इस तरह मुझे क्यों घूर रही हो?
मैं सपना तो नहीं देख रही हूं? उसी अवस्था में खड़ी थी वह आंखें फाड़े।
जो तुमने सुना है वह आज का सबसे बड़ा सत्य है। तुम्हारे बिना तो मेरा जीवन अब असम्भव है। मेरे दिमाग में तुम बुरी तरह बस गई हो। उसकी अंगुलियों को अपनी अंगुलियों से सहलाता हुआ वह बोला।
सिट्टो के शरीर को बिजली-सी छू गई। उसे आज पहली बार किसी पुरुष का इस तरह स्पर्श हुआ था। यह एक विलक्षण अनुभव था।
तुम सत्य कह रहे हो न? अर्धमूर्छित-सी अवस्था में बोल रही थी वह।
दरअसल वह अपने कालेज के छात्रों के एक दल के साथ ग्राम-सेवा करने के लिए इस गांव में आया था। दल के सभी युवकों ने अपने ढंग से ग्राम-सेवा की। किसी ने गांव की सड़कों पर श्रमदान करते हुए फोटो खिंचवाये, किसी ने खूब बीयर पी और चैपाल की छत पर चढ़कर हुड़दंग मचाया और कोई पनघट के सामने बैठकर सिगरेट फंूकते हुए पनिहारिनों को निहारता रहा।
वह एक बड़े बाप का इकलौता बेटा था। एक दिन उसकी भेंट सिट्टो से हुई थी। सिट्टो को देखकर वह पागल-सा हो गया था। उसके दल के सभी लड़के ग्राम-सेवा करके चले गए पर वह अपना सामान लेकर गांव के निकट नहर के किनारे बने कैनाल रैस्ट हाउस में आ गया।
वह उसकी मां से मिला। काफी देर तक उससे बातें करता रहा। उसका कहना था कि कल गांव के मंदिर में सभी बड़े-बूढ़ों के सामने वह सिट्टो से विवाह करेगा। विवाह के बाद कुछ दिन यहां रहेगा फिर अपने शहर लौट जाएगा। वहां जाकर अपने पिता को विवाह के बारे में साफ-साफ बता देगा। …वह अपने पिता को मना लेगा और पिता विवाह को मान्यता देकर सिट्टो को अपनी बहू के रूप में अवश्य स्वीकार कर लेंगे। …इसके तुरन्त बाद वह सिट्टो को विदा कराकर ले जाएगा। उसकी अपनी मां तो उसे बचपन में ही अकेला छोड़ गई थी।
मां कह रही थी-बेटा, हम बहुत गरीब आदमी हैं। रुपया-पैसा कुछ भी तो हमारे पास नहीं है। ले-देकर जवान बेटी है। बस! यही इज्जत हमारी पूंजी है। इस पर भी दाग लग गया तो हमारे पास कुछ भी नहीं बचेगा। हमारी जग-हंसाई हो जाएगी बेटा। वह बार-बार यही कहती थी-गरीब का धन तो उसकी आबरू ही होती है बेटा।
उसने मां के पैर पकड़ लिये-मुझ पर विश्वास करो। …मैंने जीवन में कभी झूठ नहीं बोला। …और मैं दुष्यंत-सा निष्ठुर भी नहीं हूं जो गन्धर्व विवाह के बाद अपनी शकुन्तला को पहचान भी न सकूं। उसने अपना सिर मां के चरणों में रख दिया-मैं सिट्टो के बिना जीवित नहीं रह सकता मां।
अगले दिन अंधी मां और गांव के कुछ बड़े-बढ़ों की उपस्थिति में मंदिर में उसका विवाह हो गया।
नगर के बड़े उद्योगपति के मात्र पुत्र की हैसियत के अनुरूप ही उसने पंडितों को दान-दक्षिणा दी। रैस्ट हाउस के कारिन्दों को बख्शीश दी। वस्त्र और धन का दान दिया।
सिट्टो के लिए शहर से मंगाए गए, मूल्यवान वस्त्रों और आभूषणों के अतिरिक्त अपने गले का बहुमूल्य हीरे का लॉकेट भी उसने सिट्टो के गले में डाल दिया। वह बहुत खुश था। मंदिर के पुरोहित व गांव के भद्रजन भी खुश थे।
अपनी सिट्टो में खोये हुए उसे पता भी न चला कि एक मास कैसे व्यतीत हो गया। एक दिन उसे घर याद आया। शहर के बैंक में उसके खाते की मुद्रा शायद घटने लगी थी इसलिए पिता की स्वाभाविक याद ने उसे उद्वेलित कर दिया।
अब मैं अपने घर जाऊंगा। उसने सिट्टो से कहा-पिताजी को मनाकर शीघ्र तुम्हें विदा कराने आऊंगा।
सिट्टो शंकित-सी हो गई। उसकी दाहिनी आंख फड़क रही थी।
तुम्हें विश्वास नहीं है मुझ पर? उसने सिट्टो के चेहरे को अपनी हथेलियों में भींचते हुए कहा-थोड़े समय की तो बात है। …मेरे पिता देवताओं से भी अधिक उदार हैं। वे तुम्हें सम्मान के साथ अपनी पुत्र-वधू स्वीकार करेंगे और स्वयं विदा कराने मेरे साथ आएंगे। उसने कहा और शकुन्तला को रोती छोड़कर अपने नगर को प्रस्थान कर गया।
मूलकथा के भावानुसार दुष्यन्त को तो लौटना नहीं था। प्रतीक्षा में आंसू बहा-बहाकर उसकी राह तकनी थी। इसलिए वह रोती रही-इंतजार करती रही। गांव वालों के समझाने-बुझाने पर एक बार कुछ बड़े-बूढ़ों को साथ लेकर वह नगर में उसके बताए पते पर उपस्थित हुई। उसके गर्भ में उसका अंश पल रहा था। उसके गले में उसका दिया बहुमूल्य हीरे का लॉकेट लटक रहा था।
बहुत बड़े, महलनुमा प्रासाद के विशाल लोहे के गेट पर गोरखा संतरी मय खुखरी के अपनी काली नेपाली टोपी के साथ उपस्थित था। इस विशाल तामझाम को देखकर वे गेट पर ही पांव मलने लगे। गांव वालों की दरबान से भी बातें करने की हिम्मत नहीं हुई। …पर सिट्टो को हिम्मत करनी पड़ी क्योंकि उसके गर्भ में प्रासाद के स्वामी का उत्तराधिकारी सांस ले रहा था।
उसने दरबान को उसका दिया हुआ विजिटिंग कार्ड दिखाया तो वह उसे सेठजी के पास ले गया। बाकी बूढ़े तो गेट पर ही रुक गए सिर्फ हरखू ताऊ उसके साथ अन्दर गया।
करीब आधा घंटे के इंतजार के बाद सेठजी वहां हाजिर हुए। कहिए क्या बात है? सेठ जी ने उन्हें घूरकर कठोरता से पूछा।
जी! …जी! ताऊ हकला गया।
जी हमें कुंवर साहेब से मिलना है। सिट्टो ने हिम्मत जुटाकर कहा।
वह तो बोस्टन में पढ़ने गया है। तुम्हें उससे क्या काम है? सेठजी ने उसी कठोरता से पूछा।
जी! उन्होंने मुझसे ब्याह रचाया है। मैं आपकी पुत्रवधू हूं। सिट्टो ने विनम्रता से कहा।
ब्याह क्या गुड्डे-गुड़िया का खेल है जो रच गया और हमें खबर तक नहीं? सेठजी ने क्रोधित होते हुए कहा।
जी, उनका अंश मेरे गर्भ में पल रहा है। विश्वास कीजिए, मैं आपकी पुत्रवधू हूं। सिट्टो ने विचलित होते हुए विनीत स्वर में कहा।
नगर की हर बस्ती की दो-चार लड़कियों के गर्भ में उसके अंश पल रहे हैं तो क्या सबको मैं इस घर की बहू बना लूं? सेठजी का क्रोध बढ़ता जा रहा था-सुन्दर लड़कियों से खेलना रईसजादों का शौक होता है। …समझी लड़की।
आप यह कया कह रहे हैं पिताजी? सिट्टो ने रोते हुए कहा-मैं उनकी ब्याहता हूं। मेरे पास उनकी दी हुई निशानी है। इतना कहकर उसने अपने गले से हीरे का लॉकेट निकालकर सेठ के सामने कर दिया-यह देखिए! क्या यह भी झूठ है?
सेठ हीरे का लॉकेट देख चुंधिया गया। लॉकेट को अपने हाथ में लेकर बोला-अच्छा! तो यह लाखों रुपये का लॉकेट तू हड़पे बैठी है? जानती है इस लॉकेट के चोरी होने की मैं पुलिस में रिपोर्ट करा चुका हूं? सेठ ने सिट्टो और बूढ़े हरखू ताऊ को डांटते हुए कहा-खैर चाहते हो तो भाग जाओ वरना पुलिस के हवाले कर दूंगा।
ताऊ के पैर कांपने लगे। वह रोती हुई सिट्टो को खींचकर प्रासाद के बाहर ले आए। इसके बाद अरसा बीत गया।
सिट्टो ने अपनी कोख से जिस बच्चे को जन्म दिया, वह भी कई साल का हो गया। अब वह पढ़ने के लिए शहर जाता था।
मां मर चुकी थी। सिट्टो के गांव तक पक्की सड़क बन गई थी। उसके आस-पास के काफी खेतों में नगरीकरण हो गया था। प्लाट कट गए थे। मकान बन रहे थे।
सिट्टो के खेतों में एक तरफ एक बहुत बड़ी लम्बी इमारत में पशुशाला बन गई थी, जिसमें पचासियों गायें-भैंसे एक साथ दूध देती थीं। …यह उसका डेयरी फार्म था।
झोपड़ी के स्थान पर एक साफ-सुथरा बंगला बन गया था, जिसके बाहर एक खूबसूरत लॉन और फलों की क्यारियां थीं।
सिट्टो अब पहले वाली सिट्टो नहीं रह गई थी, जिसे कोई भी अपना शिकार बना ले। अब तो वह स्वयं शिकार करती थी। अब वह भोली-भाली कबूतरी नहीं चालाक चील बन गई थी। उसके डेयरी फार्म पर दसियों कर्मचारी सुबह-शाम आए दूधियों को दूध निकालकर देते थे।
एक दिन प्रातः दूध निकलवाने और दूधियों के ड्रम भरवा देने के बाद लॉन में बिछी आरामकुर्सी पर सिट्टो अधलेटी मुद्रा में थकान उतार रही थी। तभी उसके भरत डेयरी फार्म के मुख्यद्वार पर एक लम्बी विदेशी कार आकर रुकी। उसमें सुन्दर वस्त्रों से सज्जित एक व्यक्ति पहले उतरा, भारी जरी की साड़ी की लिपटी दुल्हन की तरह सजी कोई नवयौवना उसके बाद उतरी। फिर दोनों साथ-साथ उसके बंगले की तरफ बढ़े।
निकट आने पर उसने व्यक्ति को पहचाना-यह तो उसका अपना दुष्यन्त था। उसके साथ की नवयौवना लकदक वस्त्रों में मेकअप युक्त थी और ऊपर से नीचे तक आभूषणों से लदी हुई थी।
वह उन्हें देखकर उठी नहीं। …पर उसे अपनी गर्भावस्था के समय का वह दृश्य अच्छी तरह याद आ गया जब वह उसकी खोज में नगर गई थी और उसके पिता से मिली थी। …और अन्ततः अपमानित होकर वापस लौटी थी। उसके कानों में, नगर सेठ के शब्द एक बार फिर गूंजने लगे-सुन्दर लड़कियों से खेलना रईसजादों का शौक होता है। …समझी लड़की।
वे दोनों उसके निकट आ गए थे। युवक उसे पहचानते हुए उसके और नजदीक आ गया-तुमने यह क्या हालत बना ली है सिट्टो! मुझे पहचाना? …तुम्हारा दुष्यन्त हूं। अमेरिका से वापस आ गया हूं।
युवक को देखकर उसके मन में आशा की एक किरण उपजी थी। खुशी की एक लहर दौड़ती-सी लगी थी पर नवयौवना को साथ देख उपजी शंका ने सब गड़बड़ कर दिया था। …उसका मन बुझ ही नहीं गया अपितु क्रोध से भर गया।
यह नीला है। बड़ी अच्छी लड़की है। …पिताजी की जिद थी इसलिए….? वह पूरा वाक्य बोल नहीं पा रहा था-अमेरिका चला जाना पड़ा। वापस आया तो पिताजी ने नीला से…।
क्या तुम मुझे विदा कराने आए हो? सिट्टो ने सीधा प्रश्न किया उससे।
चालाक था बाज। बाज हकला गया-मेरी बात समझो सिट्टो। पिताजी के आगे मैं निरुपाय हो गया। मैं बड़ा दुर्भाग्यशाली हूं। …परन्तु नीला से मिलकर तुम्हें खुशी होगी। यह बहुत अच्छी लड़की है। तुम्हारी छोटी बहन की तरह रहेगी।
क्या तुम मुझे विदा कराने आए हो? …सीधा और स्पष्ट उत्तर दो। सिट्टो ने दृढ़ता दिखाते हुए कहा।
प्लीज मेरी बात तो सुनो। मैं यहां एक बहुत सुन्दर फार्म हाउस बनाऊंगा। तुम यहां महारानी बनकर रहोगी। उसने कहा-यह सारा इलाका अब राजधानी परिक्षेत्र में आ गया है। हम इस इलाके को डवलैप कर लेंगे। …शापिंग काम्प्लेक्स, रेजिडेंशियल काम्प्लेक्स, अपार्टमैंट्स…।
तो सुनो! शकुन्तला दुष्यन्त की रखैल नहीं थी। सिट्टो ने चालाक चील की तरह बाज की झपट का उत्तर दिया-अब तुम यहां प्रापर्टी डीलर की हैसियत से आए हो तो मैं तुम्हें स्पष्ट कर दूं कि जिस प्रापर्टी को डवलैप करने की बात तुम कर रहे हो उसके सम्बन्ध में मैं पहले ही किसी अन्य प्रापर्टी डीलर से बात कर चुकी हूं। …इसका मुझे अफसोस है कि तुम दुष्यन्त नहीं हो, प्रापर्टी डीलर हो।
तुम कैसी बात कर रही हो? वह बोला।
हां दीदी। तुम्हारी तबीयत तो ठीक है। नवयौवना ने आवाज में शहद मिलाते हुए पूछा।
आप लोगों के आने के लिए आभारी। दुष्यन्त से उसने कहा-यहां कभी आओ तो सिर्फ दुष्यन्त बनकर ही आना। …पर क्योंकि शादी कर चुके हो इसलिए इस जन्म में तो नहीं। हां! यदि अगले जन्म में मैं शकुन्तला बनी तो तुम्हारी प्रतीक्षा अवश्य करूंगी। तुम अवश्य आना, मैं तुम्हें मिलंूगी।
नीला और दुष्यन्त दोनों हाथ मलते रहे।
अब मैं आराम करना चाहती हूं-नमस्कार! सिट्टो ने दोनों हाथ जोड़ दिए और आंखें बन्द कर लीं।
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