*गर्भवती महिलाओं को पता नहीं, बट गए एक करोड़ के पोषाहार*
*कुशीनगर, 18 अक्टूबर।* उत्तर प्रदेश के कुशीनगर में पिछले 9 महीनों में गर्भवती लाभार्थियों में लगभग 1 करोड़ , साढ़े 5 लाख का पोषाहार बिशनपुरा विकासखंड के मंसाछापर स्थित बाल विकास परियोजना केंद्र द्वारा संबंधित सभी आंगनबाड़ी केंद्रों को कागज में बांट दिया गया है ।यह अलग बात है कि गिने-चुने गांवों के लाभार्थियों को छोड़कर किसी भी गांवों के लाभार्थी तक यह पोषाहार मुट्ठी भर भी नहीं पहुंच सका है और सीधे काले बाजारों में पहुंचकर केवल पशु आहार बन चुका है । इस तरह इस सरकारी योजना का पलीता प्रत्येक माह लगाया जा रहा है । सबसे चौकानें व हास्यास्पद बात यह है कि आफिस द्वारा जारी रिपोर्ट के मुताबिक प्रत्येक माह इस विकास खण्ड में केवल 4776 महिलाएं ही गर्भवती हो रहीं हैं । यानि न तो रजिस्टर रिपोर्ट से एक कम या एक अधिक !
मिली जानकारी के मुताबिक शासन द्वारा 6 माह से6 वर्ष व गर्भवती महिलाओं को कुपोषण मुक्त एवं शिक्षित करने लिए प्रति वर्ष करोड़ों रुपये खर्च किया जा रहा है, लेकिन जिम्मेदारों की लापरवाही के चलते बच्चों या गर्भवती महिलाओं को पुष्टाहार नहीं मिल रहा है जिससे वे कुपोषण के शिकार हो रहे हैं। सूत्रों के मुताबिक मंसाछापर बाल विकास परियोजना द्वारा वर्ष 2019 के नवंबर महीने से अब तक लगातार प्रत्येक माह 4776 गर्भवती महिलाओं के लिए 10 लाख , 54 हजार , 3 सौ , 49 रूपये 73 पैसे का मीठा दलिया , नमकीन दलिया व लड्डू प्रिमिक्स बाटने का दावा किया गया है । जो कि कुछ गांवों को छोड़कर महज कागजों में बाट दिया गया है । विकासखंड में कुल 4776 गर्भवती महिलाओं के लिए 12 सौ ग्राम के प्रति पैकेट मीठा दलिया यानी 75 रूपये प्रति पैकेट के हिसाब से 3 लाख 58 हजार 3 सौ 91रूपये 4 पैसे , 1120 ग्राम वजन के प्रति पैकेट नमकीन दलिया 73 रुपए 54 पैसे प्रति पैकेट की दर से 3 लाख 51 हजार 2 सौ 27 रूपये 4 पैसे खर्च किया गया है । जबकि गर्भवती महिलाओं के लिए ही 72 रूपये 18 पैसा में 1350 ग्राम वजन वाले प्रति पैकेट के खर्च पर 3 लाख 44 हजार 7 सौ 31 रुपए 68 पैसे खर्च किए गए हैं । यानी एक महीना के खर्च का हिसाब गर्भवती महिलाओं पर 1054349 रुपए 76 पैसे खर्च किए गए हैं । यानि यदि गर्भवती लाभार्थियों पर 9 महीने में किए गए समूल खर्च को केवल बिशनपुरा विकासखंड का देखा जाए तो 1 करोड़ , 5 लाख , 43 हजार , 4 सौ 97 रुपया 3 पैसा खर्च किया गया है । कागज में पिछले 9 माह से भले ही इन लाभार्थियों पर उक्त पैसे खर्च किया गया हो लेकिन गिने-चुने गांवों को छोड़ दिया जाए तो किसी भी लाभार्थी तक इस पोषाहार में से मुट्ठी भर भी पोषाहार नहीं पहुंच सका है । क्योंकि इसे लाभार्थियों तक न पहुंचाकर सीधे काले बाजार में बेच दिया गया है । दर्जनों बार विभिन्न समाजसेवियों , ग्रामीणों नेताओं द्वारा इस मामले को अधिकारियों के समक्ष उठाया भी गया लेकिन हमेशा ढाक के वही तीन पात वाली कहानी चरितार्थ होती रही है , अब देखना यह है कि इस मामले में भी कोई महत्वपूर्ण कार्यवाही होती है या मामले की लिपापोती में विभाग जुट जाता है ।