निर्भया से हाथरस तक…

निर्भया से हाथरस तक…

-सिद्धार्थ शंकर- हाथरस की निर्भया के साथ जो हुआ है, उसे लेकर पूरे देश में गुस्सा बढ़ता जा रहा है। वो लड़की 15 दिनों तक जिंदगी-मौत के बीच जंग लड़ती रही और इस दुनिया को अलविदा कह दिया। मरने से पहले हाथरस की निर्भया ने पुलिस को आरोपियों के नाम बताए। पुलिस ने एक-एक कर उन्हें गिरफ्तार कर लिया लेकिन पीडि़ता के साथ दरिंदगी होने के बावजूद पुलिस ने गैंगरेप का मुकदमा लिखने में 9 दिन लगा दिए। उसका परिवार पुलिस से गुहार लगाता रहा लेकिन पुलिस ने 9 दिन तक रेप के मामले पर कोई कार्रवाई नहीं की। उत्तर प्रदेश की कानून-व्यवस्था पर लगातार सवाल उठ रहे हैं। अपराधी बेखौफ वारदातों को अंजाम दे रहे हैं। उस पर निर्भया जैसी इस वारदात ने एक बार फिर पुलिस की कार्यप्रणाली पर सवालिया निशान लगा दिए। वजह है इस केस में गैंगरेप की धारा लगाने में हाथरस पुलिस ने 9 दिन का वक्त लगा दिया। हालांकि इस दौरान पीडि़ता अस्पताल में जिंदगी के लिए जंग लड़ रही थी और उसके घरवाले रेप की धाराएं बढ़वाने के लिए पुलिस के चक्कर लगा रहे थे।

वैसे तो पुलिस ने घटना के दिन ही परिजनों की शिकायत पर आईपीसी की धारा 307 (हत्या के प्रयास) का मुकदमा दर्ज कर लिया था। पीडि़त लड़की दलित समुदाय से आती है, इसलिए एससी-एसटी एक्ट की धारा भी लगाई गई लेकिन पुलिस गैंगरेप की बात मानने के लिए तैयार नहीं थी। दरअसल, 14 सितंबर की सुबह हाथरस के चंदपा थाना क्षेत्र में बूलगढ़ी गांव में इस निर्भया कांड को चार लोगों ने अंजाम दिया था। युवती अपनी मां के साथ खेत में चारा काट रही थी। चारा काटते-काटते वो मां से थोड़ी दूरी पर जा पहुंची। इसी बीच गांव के ही चार युवक वहां पहुंचे और लड़की को उसके दुपट्टे से खींचकर बाजरे के खेत में ले गए। जहां उन चारों ने उसके साथ दरिंदगी को अंजाम दिया। विरोध करने पर लड़की को जमकर पीटा। चारों आरोपी घटना के बाद लड़की को मरा समझकर फरार हो गए थे। लड़की की मां उसे ढूंढते हुए वहां पहुंची तो घटना का पता चला। लड़की को उपचार के लिए अलीगढ़ के जेएन मेडिकल कॉलेज में भर्ती कराया गया। हाथरस पुलिस को सूचना दी गई।

निर्भया कांड और हाथरस कांड की गंभीरता समान होने के बावजूद राजनीतिक और सामाजिक प्रतिक्रिया अलग अलग हो रही हैं। तमाम कानून बनने और प्रशासनिक सख्ती के बावजूद अपराधिक घटनाएं कभी भी कहीं भी हो सकती हैं और इसके लिए सीधे-सीधे किसी भी मुख्यमंत्री और राज्य के शीर्ष अधिकारियों को तब तक दोषी नहीं माना जाना चाहिए, जब तक कि घटना के बाद उनकी प्रतिक्रिया और आरोपितों के खिलाफ पुलिस प्रशासन की कार्रवाई सामने न आ जाए। कोई भी सरकार और प्रशासन अपराध को रोकने और अपराधियों को कानूनी अंजाम तक पहुंचाने और पीडि़त पक्ष को न्याय दिलाने के लिए कितना प्रयत्नशील है, यही सबसे बड़ी कसौटी होनी चाहिए। जहां निर्भया कांड के बाद बिना किसी भेदभाव के आम जनता और कांग्रेस समेत सभी दल एकजुट होकर अपराधियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने और भविष्य में एसी घटनाएं न हों इसके लिए कानून बनाने के हक में खड़े हो गए थे, वहीं हाथरस कांड पर सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी के कुछ नेताओं के बयान न सिर्फ अपनी प्रदेश सरकार के बचाव में आ रहे हैं बल्कि बलात्कार और हत्या के आरोप में गिरफ्तार किए गए युवकों का बचाव करते दिख रहे हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी तब जागे जब इस मामले को लेकर मीडिया और विपक्ष ने खासा शोर मचाया। तब उन्होंने आनन-फानन में पीडि़त परिवार को 25 लाख रुपए के मुआवजे की घोषणा की। मामले की एसआईटी जांच का एलान किया गया और जब दबाव ज्यादा बढ़ा तो एसपी समेत कुछ पुलिस अधिकारी निलंबित किए गए और सीबीआई जांच की सिफारिश की गई।

इन सवालों का जवाब किसी के पास नहीं हैं कि पीडि़त लड़की को किन परिस्थितियों में तब खींच कर ले जाया गया जब वह अपनी मां के साथ काम कर रही थी और जब पुलिस से इसकी शिकायत की गई तो त्वरित कार्रवाई क्यों नहीं की। लड़की जब खेत में मरणासन्न अवस्था में मिली तो उसे तत्काल बेहतर इलाज के लिए दिल्ली क्यों नहीं भेजा गया और कई दिन बाद परिवार और मीडिया के दबाव जब दिल्ली भेजा गया तो एम्स की जगह सफदरजंग में क्यों दाखिल कराया गया, जहां उसने दम तोड़ दिया। इसके बाद परिवार की सहमति के बिना शव को रात के अंधेरे में क्यों जला दिया गया। यह भाजपा और कांग्रेस की राजनीतिक लड़ाई के लिहाज से ठीक माना जा सकता है लेकिन बलात्कार जैसे जघन्य अपराध पर एक-दूसरे से अपनी कमीज को ज्यादा उजला बनाने की सियासी होड़ दुर्भाग्यपूर्ण है। बेहतर ये होना चाहिए कि कांग्रेस राजस्थान की सरकार पर दबाव बनाए कि बारां के अपराधियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई हो। संबंधित सरकारों-प्रशासन को घटनाओं का संज्ञान लेकर दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करनी होगी। दुर्भाग्य और दुखद यह है कि निर्भया कांड के बाद देश में बलात्कार और यौन शोषण के खिलाफ जो एक आम सहमति बनी थी, वह दोहरे रवैए की वजह से टूटती जा रही है। जिसकी वजह से महिलाओं की सुरक्षा का सवाल और गंभीर हो गया है।

हिन्द वतन समाचार की रिपोर्ट…