बलात्कारियों के लिए अलग मशीनरी बने…

बलात्कारियों के लिए अलग मशीनरी बने…

पूरे देश को झकझोर देने वाले निर्भया कांड ने पूरे देश को प्रभावित किया था।इस केस को लेकर बलात्कार जैसे घिनौने अपराध के लिए सख्त कानूनों के साथ फांसी तक का भी प्रावधान निकाला।लेकिन इसके बावजूद भी रेप की घटनाओं में कोई कमी नही आ रही।निर्भया की तरह हाथरस कांड भी चर्चित हो गया और निर्भया केस की वकील इस केस को भी लड़ रही हैं। बीते रविवार उन्होनें पीडित बिटिया के परिवार से मुलाकात करके सारे मामलें को पूरी तरह जाना। एक बार फिर किस रणनीति के तहत देश की और बेटी की आत्मा को इंसाफ दिलाने के लिए लडाई लड रही अधिवक्ता सीमा कुशवाह से योगेश कुमार सोनी की एक्सक्लूसिव बातचीत के मुख्य अंश…

निर्भया के बाद रेप की घटनाओं में कमी आने की बात कही जा रही थी लेकिन फिर भी ऐसा नही हुआ। आप क्या कहेंगी?

अभी भी कानून और सख्त करने की जरुरत है। चूंकि यदि आपने नोटिस किया हो तो फास्ट ट्रैक कोर्ट के बावजूद भी निर्भया के दोषियों को फांसी होने में सात साल लग गए थे। रेप की सजा में और कडे व सख्त कानून की जरुतत है जिससे ऐसा करने वालों को हजार बार सोचना पडेगा। निर्भया केस देश का सबसे बडा केस था फिर भी उसमें इतना समय लगा जिससे अपराधियों व गलत मानसिकता वाले लोगों को यह समझ में आ गया था कि इस तरह के अपराधों में कानून से बचने या गुमराह करने के तमाम दावपेंच हैं।

फांसी के प्रावधान के बाद सख्त कानून से आपका क्या अभिप्राय है?

हमारे देश के कानून में सजा देने के लिए दो उद्देशय होते है। पहला तो अपराध करने वाले को कानून का डर बन जाए जिससे वह सुधर जाए दूसरा बडे अपराधों को अंजाम देने वाले अपराधी को कम समय में ही सीधे फांसी दी जाए। लेकिन यहां समस्या यह आ जाती है कि रेप या हत्या जैसे अपराध के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट मात्र बडे या हाइलाइट केसों के लिए ही सीमित है जो केवल एक प्रतिशत तक ही सीमित है बाकी 99 प्रतिशत की वजह से अपराधी में डर खत्म हो जाता है।इसके अलावा आज भी पैसे,सत्ता या पीडित पार्टी को डराकर केस को खत्म या गवाह व सबूतों को खरीद या मिटाकर बच निकलते हैं। यदि इस तरह के अपराधों के लिए एक अलग मशीनरी बने तो एक सकारात्मक उम्मीद की जा सकती है।

अलग मशीनरी को कैसे परिभाषित करेगीं?

किसी भी घिनौने अपराध के लिए एक अलग कोर्ट बने जिसमें केवल इस तरह के अपराधों की सुनवाई हो जिससे किसी भी केस में किसी भी प्रकार की कोई गुंजाइश न रह जाए। हर पहलू की समय रहते गंभीरता समझी जाए। साथ में पुलिस की भूमिका पर भी निगाह बनी रहे।

ऐसे केसों में पुलिस की भूमिका को किस तरह समझती हैं आप?
हाथरस वाले केस में ही देख लिया जाए तो जिस तरह पुलिस में रातों रात आनन-फानन में पीडिता का अंतिम संस्कार कर दिया उससे कई तरह के सवालिया निशान खडे हो गए। हांलाकि सरकार ने सब पर कार्यवाही करते हुए एसपी व डीएसपी समेत पांच पुलिसकर्मियों का निलंबित कर दिए लेकिन डीएम और एसडीएम पर कार्रवाई न करके अपने ऊपर कई प्रश्न खडे करवा लिए। स्पष्ट है कि पुलिस को रोल घटना के तुरंत बाद शुरु हो जाता है जिसमें बहुत कुछ पुलिस के हाथ में होता है। और करीब अस्सी प्रतिशत पुलिस वाले पैसों के लालच में गडबडी कर जाते हैं। पीडित या उसके परिवार को तो यह भी नही पता होता कि वह पुलिस को किस तरह का ब्यान दें। इस तरह के केसो में विडियो रिकार्डिगं होने चाहिए जिसमें बाद में किसी भी ब्यान को बदलने की गुंजाइश न हो।क्योंकि बोलने व लिखने के कई मायने निकाले जाते हैं डिजिटल टेक्नोलोजी द्वाया ब्यान का अर्थ बदलना मुश्किल होगा।

हाथरस केस मे यह भी कहा गया है कि लड़की का रेप नही हुआ। यह कैसे संभव है?

एफएसएल रिपोर्ट करीब 15 दिन बाद आई है और जो एमएलसी हुई थी रेप की पुष्टि हुई है जिसका इलाज अलीगढ़ में चला था। पहली रिपोर्ट की बात मानी जाएगी एफएसएल रिपोर्ट को इसके सामने प्रमाणित नही मानी जा सकती। इसके अलावा यह ट्रायल का पार्ट भी है। अभी हर पहलू को समझना पडेगा। लेकिन रेप हुआ है यह तय है।

हिन्द वतन समाचार की रिपोर्ट…