लचीले पाठ्यक्रम,विषयों की रचनात्मक संयोजन एवं व्यवसायिक शिक्षा से युक्त राष्ट्रीय…
शिक्षा नीति 2020 कानपुर: पी पी एन इंटर कॉलेज कानपुर नगर के द्वारा आयोजित राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 पर वेबीनार मीटिंग मे पी पी एन इंटर कॉलेज कानपुर के प्रधानाचार्य राकेश कुमार यादव ने बताया कि देश की शिक्षा की तस्वीर यह बताती है कि सरकार की प्राथमिकता में शिक्षा की जगह क्या है और वह इससे कितना सरोकार रखती है। गौरवतलब है की 1968 और 1986 के बाद यह तीसरी राष्ट्रीय शिक्षा नीति है ,इसका मसौदा 2019 में ही तैयार कर लिया गया था ।इसरो प्रमुख रह चुके डॉ०कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता में 2017 में इस एक समिति का गठन किया गया था,और इसी समिति ने इस शिक्षा नीति का मसौदा तैयार किया था।प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली कैबिनेट कमेटी ने इस मसौदे को मंजूरी देकर स्कूल समेत उच्च शिक्षा व्यवस्था में परिवर्तन की राह को हरी झंडी दे दी है साथ ही मानव संसाधन विकास मंत्रालय का नाम बदलकर शिक्षा मंत्रालय कर दिया गया है इसका मकसद शिक्षा और सीखने की ओर पुनः अधिक ध्यान आकर्षित करना है।ऐसे में यह जानना समझना बेहद जरूरी है कि सरकार शिक्षा व्यवस्था को गुणवत्तापूर्ण बनाने के लिए क्या-क्या नीतियां लेकर आई है पहले के मुकाबले में नई तस्वीरें कैसी होंगी ।इस पर सबकी निगाहें टिकी है।आइए जाने कि इसकी मुख्य मुख्य बातें क्या है स्कूली शिक्षा में बदलाव नई शिक्षा नीति में 10 +2 के फॉर्मेट को पूरी तरह से खत्म कर दिया गया है।अभी तक हमारे देश में स्कूली पाठ्यक्रम 10+2 के हिसाब से चलता है लेकिन अब से 5 +3+3+4+के हिसाब से होगा जो क्रमशः 3 -8, 8-11, 11- 14और 14 -18 साल की उम्र के बच्चों के लिए है फाउंडेशन स्टेज के तहत पहले 3 साल बच्चे आंगनबाड़ी मे प्री- स्कूलिंग शिक्षा लेंगे फिर अगले 2 साल कक्षा एक एवं दो में बच्चे स्कूल में पढ़ेंगे। इन 5 सालों की पढ़ाई के लिए एक नया पाठ्यक्रम तैयार होगा। आगे कक्षा 3 से 5 तक की पढ़ाई होगी,इस दौरान प्रयोगों के जरिए बच्चों को विज्ञान, गणित ,कला आदि की पढ़ाई कराई जाएगी। मिडिल स्टेज में कक्षा 6-8 की कक्षाओं की पढ़ाई होगी और इन कक्षाओं में विषय आधारित पाठ्यक्रम पढ़ाया जाएगा कक्षा 6 से ही प्रोफेशनल और कौशल विकास कोर्स भी शुरू हो जाएंगे।व्यवसायिक शिक्षा और कौशल विकास पर जोर देने का मकसद बच्चों को स्कूली शिक्षा के दौरान ही रोजगार हासिल करने की योग्य बनाना है।सेकेंडरी स्टेज में कक्षा 9 से 12 की पढ़ाई दो चरणों में होगी जिसमें विषयों का गहन अध्ययन कराया जाएगा इसमें विषयों को चुनने की आजादी भी होगी । कक्षा 10वीं और 12वीं बोर्ड परीक्षाओं में बड़े बदलाव किए जाएंगे नई नीति के तहत कक्षा तीसरी पांचवी और आठवीं में भी परीक्षाएं होंगी कक्षा 10वीं और 12वीं कक्षाओं में साल में दो बार परीक्षाएं कराई जाएंगी एक में बहुविकल्पी तथा दूसरे में व्याख्यात्मक फॉर्मेट की परीक्षा ली जाएगी।बोर्ड परीक्षा में मुख्य जोर ज्ञान के परीक्षण पर होगा,ताकि बच्चों में रटने की प्रवृत्ति खत्म हो। इस लिहाज से सरकार की यह सोच बेहद स्वागतयोग्य है। नई शिक्षा नीति में पांचवी तक और जहां तक संभव हो सके आठवीं तक शिक्षा का माध्यम मातृभाषा, स्थानीय क्षेत्रीय भाषा ही होगी,मोटे तौर पर कहें तो बच्चे द्वारा बोली जाने वाली भाषा और शिक्षा के माध्यम के बीच पुल का काम करने के लिए मातृभाषा में शिक्षा देने का प्रावधान किया गया है ।विदेशी भाषाओं की पढ़ाई सेकेंडरी लेवल से होगी यानी कक्षा 9 से बच्चे विदेशी भाषा ले सकेंगे। विद्यार्थियों को स्कूल के सभी स्तरों और उच्च शिक्षा में संस्कृत को एक विकल्प के रूप में चुनने का अवसर दिया जाएगा त्रिभाषा फार्मूला के तहत राज्य क्षेत्र और छात्र की पसंद को प्राथमिकता दी जाएगी जिनमें कम से कम 2 भारतीय भाषाएं होंगी उदाहरण के लिए मुंबई में अगर कोई छात्र मराठी और अंग्रेजी सीख रहा है तो उसे तीसरी कोई भारतीय भाषा पढ़नी होगी ।इसमें किसी भी विद्यार्थी पर कोई भी भाषा नहीं थोपी जाएगी ।भारत की अन्य पारंपरिक भाषाएं और साहित्य भी विकल्प के रूप में उपलब्ध होंगे।उच्च शिक्षा के संदर्भ में प्रधानाचार्य और शिक्षकों ने अपने विचार दिए की उच्च शिक्षा में पहली बार मल्टीपल एंट्री और एग्जिट सिस्टमलागू किया गया है इसे इस प्रकार समझा जा सकता है कि अगर कोई छात्र बीच में ही कोर्स छोड़ना चाहता है तो उसके साल बर्बाद नहीं होंगे अगर 4 साल का अंडर ग्रैजुएट कोर्स है,तो 1 साल के बाद कोर्स छोड़ने पर सर्टिफिकेट, 2 साल के बाद डिप्लोमा ,3 साल पर कोई इंटरमीडिएट सर्टिफिकेट और 4 साल बाद कंपलीट डिग्री मिलेगी। इससे उनको बहुत फायदा होगा जिनकी पढ़ाई बीच में किसी वजह से छूट जाती है अगर वह कुछ साल बाद दूसरे कोर्स में दाखिला लेते हैं तो पहले वाले कोर्स के सर्टिफिकेट या डिप्लोमा को इस नए कोर्स में अहमियत दी जाएगी इसे क्रेडिट ट्रांसफर कहा जा सकता है विभिन्न उच्च शिक्षण संस्थानों से प्राप्त अंकों या क्रेडिट को डिजिटल रूप में सुरक्षित रखने के लिए एक अकादमी बैंक का क्रेडिट होगा ताकि अलग-अलग संस्थानों में छात्रों के प्रदर्शन के आधार पर उन्हें डिग्री प्रदान की जा सके। नई शिक्षा नीति के मुताबिक यदि कोई छात्र इंजीनियरिंग कोर्स को 2 वर्ष में ही छोड़ देता है ,तो उसे डिप्लोमा प्रदान किया जाएगा इसमें इंजीनियरिंग छात्रों को बड़ी राहत मिलेगी 5 साल का संयुक्त ग्रेजुएट मास्टर कोर्स लाया जाएगा। नई शिक्षा नीति में छात्रों को यह आजादी भी होगी कि अगर वह कोई कोर्स बीच में छोड़कर दूसरे कोर्स में दाखिला लेना चाहते हैं तो वह पहले कोर्स से एक खास निश्चित समय तक ब्रेक ले सकते हैं और दूसरा कोर्स ज्वाइन कर सकते हैं अब 3 साल का डिग्री कोर्स उन छात्रों के लिए होगा जिन्हें हायर एजुकेशन नहीं लेनी है और शोध में नहीं जाना है वही शोध में जाने वाले छात्रों को 4 साल की डिग्री करनी होगी 4 साल की डिग्री करने वाले स्टूडेंट्स 1 साल में एमए कर सकेंगे इसके बाद वे सीधे पीएचडी कर सकेंगे इसके लिए अब छात्रों को एम फिल करने की जरूरत नहीं होगी यह शिक्षा नीति 2030 तक या इसके बाद हर जिले में कम से कम एक बड़ी मल्टी डिसिप्लिनरी या बहु विषयक संस्था बनाने पर ध्यान केंद्रित करने की बात करती है। इसके तहत तकनीकी संस्थाओं में भी आर्टसऑफ मानवीकी के विषय पढ़ाए जाएंगे ।आईआईटी समेत देशभर के सभी तकनीकी संस्थान होलिस्टिक अप्रोच यानी समग्र दृष्टिकोण अपनाएंगे। साइंस आर्ट या कॉमर्स जैसा कोई भी विभाजन नहीं होगा छात्र अपनी पसंद के कोई भी विषय चुन सकेंगे इसे बहुत बड़ा बदलाव माना जा रहा है। मेडिकल और ला को छोड़कर सभी उच्च शिक्षा के लिए हायर एजुकेशन कमिशन आफ इंडिया बनाया जाएगा जो यूजीसी की जगह लेगा ।नई शिक्षा नीति में देशभर के सभी संस्थानों में दाखिले के लिए एक कॉमन एंट्रेंस परीक्षा आयोजित कराए जाने की बात भी कही गई है यह परीक्षा नेशनल टेस्टिंग एजेंसी कराएगी ।हालाकी, यह ऑप्शनल होगा और सभी छात्रों के लिए इस एग्जाम मे बैठना अनिवार्य नहीं होगा।इलेक्ट्रॉनिक पाठ्यक्रम क्षेत्रीय भाषाओं में विकसित किए जाएंगे इनकी वर्चुअल लैब विकसित की जाएगी और एक राष्ट्रीय शैक्षिक टेक्नोलॉजी फोरम बनाया जाएगा। वर्तमान में वैश्विक महामारी के कारण ऑनलाइन शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए सिफारिशों के एक व्यापक स्कोप को कवर किया गया है जहां अभी भी पारंपरिक और व्यक्तिगत शिक्षा प्राप्त करने का साधन उपलब्ध होना संभव नहीं है वहां गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के वैकल्पिक साधनों की तैयारियों को सुनिश्चित करने के लिए सरकार में डिजिटल अवसंरचना, डिजिटल कंटेंट और क्षमता निर्माण के मकसद से एक समर्पित इकाई बनाई जाएगी सभी भारतीय भाषाओं के संरक्षण विकास और उन्हें जीवंत बनाने के लिए नई शिक्षा नीति में पाली ,फारसी और प्राकृतिक भाषाओं के लिए एक इंडियन इंस्टीट्यूट आफ ट्रांसलेशन एंड इंटरप्रिटेशन की स्थापना करने की बात कही गई है उच्च शिक्षण संस्थानों में संस्कृत और सभी भाषा विभागों को मजबूत करने तथा ज्यादा से ज्यादा उच्च शिक्षण संस्थानों के कार्यक्रमों में शिक्षा के माध्यम के रूप में मातृभाषा या स्थानीय भाषा का उपयोग करने की सिफारिश की गई है ।शिक्षा में तकनीकी के इस्तेमाल पर जोर दिया गया है इनमें ऑनलाइन शिक्षा का क्षेत्रीय भाषाओं में कंटेंट तैयार करना वर्चुअल लैब, डिजिटल लाइब्रेरी स्कूलों शिक्षकों और छात्रों को डिजिटल संसाधनों से लैस कराने जैसी योजनाएं शामिल हैं।शिक्षकों के लिए राष्ट्रीय प्रोफेशनल मानक राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद द्वारा वर्ष 2022 तक विकसित किया जाएगा ।इसके लिए vu एनसीईआरटी और एससीईआरटी, शिक्षकों और सभी स्तरों एवं क्षेत्रों के विशेषज्ञ संगठनों के साथ परामर्श किया जाएगा।
हिन्द वतन समाचार की रिपोर्ट…