क्या वास्तव में शिक्षा विभाग के अधिकारी शिक्षकों का सम्मान करते हैं?…
5 सितंबर को हर वर्ष शिक्षक दिवस की रुप में शिक्षकों को बधाई व सम्मान देकर मनाते हैं।
विभिन्न बड़े मंचों में शिक्षकों को कई पुरस्कार देकर सम्मानित किया जाता है। परंतु क्या वास्तविक रूप से बेसिक का मास्टर सम्मान का पात्र अपने ही विभाग के अधिकारियों की नजर में होता है निश्चित रूप से शायद आप कहेंगे नहीं??
आए दिन समाज कभी अक्षमता के नाम पर,कभी विद्यालय ना जाने के नाम पर,कभी ज्ञान ना होने के नाम पर अक्सर शिक्षकों को अपमानित करते नजर आते हैं। हम सब ने कभी ना कभी इस तरह के वीडियो जरूर देखे होंगे परंतु क्या वास्तव में समाज में शिक्षक की महती भूमिका बदलती जा रही है।
क्या आज का बेसिक में कार्यरत सरकारी शिक्षक वाकई इतना ज्ञान नहीं रखता कि समाज को सही दिशा और दशा प्रदान कर सकें।क्या वर्तमान में गुरु की प्रासंगिकता खत्म होती जा रही है निश्चित रूप से आप कहेंगे नहीं.…… गुरु आज भी समाज और छात्र के लिए प्रासंगिक है।
सर्व शिक्षा अभियान के तहत पूरे देश में दूरदराज के गांवों में शिक्षा की ज्योति जलाने वाले बेसिक के शिक्षक अपने अधिकारियों द्वारा भी शोषण के शिकार होते रहे हैं शायद शोषण और अपमान की पहली सीढ़ी यहीं से प्रारंभ होती है।
शिक्षक बच्चों को सिखाता है कि नैतिकता का पालन करें, भ्रष्टाचार से बचें, झूठ ना बोले, ईमानदारी और सत्यता से अपने काम को अंजाम दें।
परंतु जैसे ही वह विद्यालय से बाहर कदम रखता है विभिन्न प्रकार के झूठ बेईमानी और फरेब के चक्रव्यू उसे घेरने के लिए आतुर रहते हैं। अगर किसी शिक्षक का वेतन किसी अधिकारी द्वारा 1 दिन के लिए भी अवरुद्ध कर दिया जाता है तो शायद उसे जुड़वाने के लिए उसे कई प्रकार के भ्रष्टाचार के प्रावधानों में होते हुए, अवरुद्ध वेतन जुड़वाने के लिए महीने में 28 दिन बेसिक शिक्षा विभाग के अंतर्गत वित्त एवं लेखा कार्यालय के चक्कर लगाने पड़ते हैं।
अभी लखनऊ में वेतन विसंगति का बहुत ही नायाब उदाहरण देखा है पहली बात लखनऊ में बहुत वर्षों से शिक्षकों प्रमोशन नहीं हुए क्योंकि अंतर्जनपदीय ट्रांसफर से प्रमोशन के पद भर दिए जाते हैं जो कि लखनऊ में कार्यरत शिक्षकों के साथ अन्याय का सीधा और जीता जाता उदाहरण प्रस्तुत करता है,यानी कि लखनऊ में सहायक अध्यापक के पद पर कार्यरत शिक्षक रिटायर भी इसी पद से हो जाता है।
चलिए ठीक है एक स्तर के अन्याय हो गया अगर प्रमोशन नहीं किया जाता है तो बेसिक शिक्षा विभाग की नियमावली में तथा कर्मचारी नियमावली के अनुसार शिक्षक कर्मचारी को 10 वर्ष की संतोषजनक सेवा के बाद यदि उसे प्रमोशन नहीं मिला तो चयन वेतनमान दिया जाए।निश्चित रूप से यह प्रक्रिया सभी कर्मचारियों को सम्मान पूर्ण जीवन तथा वेतन क्रम में समानता बनाए रखने के लिए किया गया था ।
चलिए अच्छी बात है शिक्षक भी खुश हुए कि कोई बात नहीं प्रमोशन नहीं मिल रहा है कम से कम वेतन के रूप में सेवा सम्मान तो मिला ।परंतु हद और विस्मय की स्थिति तो तब पैदा होती है जब लखनऊ जैसे संपन्न और राज्य सरकार की राजधानी जनपद में बेसिक शिक्षा विभाग में कार्यरत शिक्षकों को नियत समय से डेढ़ साल की अवधि बीत जाने के बाद भी फरवरी 2009 की नियुक्ति होने के कारण फरवरी 2019 में चयन वेतनमान का लाभ दिया जाना चाहिए था जो कि सितंबर 2020 तक भी पूर्ण रूप से नहीं दिया गया। निश्चित रूप से लखनऊ के अधिकारी इतने भी अनभिज्ञ नहीं कि यह अनियमितताएं अनजाने में हो जाए।
जिन्हें चयन वेतनमान का लाभ मिला भी उन्हें हजारों पापड़ बेलने भी पड़े।चलिए ठीक है अपने हित के लिए कई बार दफ्तरों के चक्कर लगाना भी कोई गुनाह नहीं है प्रयास किया बेसिक शिक्षा अधिकारी के दफ्तर के कई चक्कर लगाए वित्त एवं लेखाधिकारी की जी हुजूरी की इसके बाद चयन वेतनमान तो लगा दिया गया। अब दूसरा शोषण का स्तर शुरू हुआ कि सातवें वेतन में फिक्स हुआ जुलाई का इंक्रीमेंट नहीं दिया जाएगा। जब शिक्षकों ने इसका जवाब पूछा तो बता दिया गया अगस्त 18 में कोई शासनादेश आया था जिसके आधार पर अब विकल्प लेने का आधार खत्म कर दिया गया ।
जब प्राइमरी के विभिन्न शिक्षकों द्वारा तथा विभिन्न संगठनों द्वारा अधिकारियों से जिसमें से मुख्यतः वित्त एवं लेखा अधिकारी लखनऊ महोदय से इससे संबंधित शासनादेश मांगा गया तो उन्होंने शिक्षकों का माखौल उड़ाते हुए कहा कि क्या मैं जियो अपने मोबाइल में लेकर घूमता हूं ,मैंने नियम बता दिया अब आप ढूंढ लीजिए।
चलिए अच्छी बात है बेसिक शिक्षा में कार्यरत प्राइमरी के मास्टर में अभी भी हार नहीं मानी और महोदय द्वारा बताए गए जिओ को भी खोज लाया गया जिसमें कहीं भी चयन वेतनमान निर्धारण के लिए विकल्प खत्म करने की बात नहीं लिखी थी तथा उसके बाद आए शासनादेश 13 अप्रैल 2020 जिसमें साफ लिखा है कि यदि 10 साल की संतोषजनक सेवा हो गई है और नियुक्ति 1 जनवरी तथा 1 जुलाई के मध्य है तो ऐसे शिक्षकों को एक अतिरिक्त उच्चीकृत वेतनमान का लाभ दिया जाए अर्थात यदि फरवरी 2009 में नियुक्त शिक्षक एक प्रार्थना पत्र देता है कि वह अपना चयन वेतनमान जुलाई से स्वीकृत करवाना चाहता है तो उसे जुलाई में ही चयन वेतनमान और इंक्रीमेंट दोनों का लाभ दिया जाएगा।
शिक्षकों के बहुत समझाने पर भी माननीय वित्त एवं लेखा अधिकारी लखनऊ इस बात को मानने को तैयार नहीं हुए उन्होंने एक पत्र का हवाला देते हुए शिक्षकों से कहा कि रोज-रोज यहां यह सब पूछने मत आया करो मैंने वित्त नियंत्रक को पत्र लिखा है जोकि मई माह 2020 को लिखा गया था अभी तक उसका कोई जवाब नहीं आया है जब जवाब आ जाएगा तब उसी के अनुसार निर्णय मैं करूंगा।
बेसिक शिक्षा प्राइमरी का मास्टर बेचारा स्कूल के बाद जो समय मिलता है शाम के वक्त लेखा कार्यालय के चक्कर लगाता और वहां से लेखा अधिकारी महोदय की डांट खाकर वापस भी लौट आता है और कितने दिन तक यह आने और जाने का सिलसिला चलता रहेगा और कब तक प्राइमरी का मास्टर अपमान का घूंट पीकर रहेगा यह वाकई समझ के परे है बेसिक शिक्षा नियमावली तथा शासनादेशों में जो बात एक आम शिक्षक को समझ में आ रही है ,जो हक और अधिकार उत्तर प्रदेश शासन ने उसे प्रदान किए हैं उसे देने में माननीय वित्त एवं लेखाधिकारी आनाकानी क्यों कर रहे हैं यह समझ के परे है।
चलिए समझ के परे होने के बाद भी दो मुद्दे तो साफ समझ में आते हैं
1. जिन शिक्षकों की नियुक्ति 2009 में ही अगस्त और दिसंबर के महीने में हुई थी उन्हें चयन वेतनमान और इंक्रीमेंट दोनों का लाभ दे दिया गया जिसके कारण कनिष्ठ होने के बावजूद अगस्त और दिसंबर में नियुक्त शिक्षक फरवरी वाले से वेतन मान में उच्च कृत श्रेणी को प्राप्त करने लगा। अर्थात एक बहुत बड़ी वेतन विसंगति जानबूझकर वित्त एवं लेखा अधिकारी लखनऊ द्वारा उत्पन्न कर दी गई जिसमें बाद में नियुक्त शिक्षक को ज्यादा वेतन दिए जाने लगा और पहले वाले को कम।
2. दूसरी बड़ी विसंगति यह पैदा हुई कि लखनऊ में नियुक्त जिन शिक्षकों ने पैरवी अपनी आर्थिक और राजनीतिक पहल के द्वारा माननीय वित्त एवं लेखाधिकारी को संतुष्ट कर लिया उनके लिए सभी नियम और कानून किनारे रखते हुए फरवरी 2009 में नियुक्त होने के बावजूद चयन वेतनमान और इंक्रीमेंट दोनों ही लगा दिए गए ।जिसके कारण लखनऊ में एक ही माह में नियुक्त समान सेवा अवधि रखने वाले शिक्षकों में ही कुछ शिक्षकों को भ्रष्टाचार की आड़ में वेतनमान और इंक्रीमेंट का लाभ दिया गया जिससे कुछ शिक्षकों को अपने ही समकक्ष से भी वेतन मान के क्रम में जूनियर बना दिया गया।
पिछले डेढ़ साल से लगातार शिक्षक बीएसए कार्यालय में स्थित वित्त एवं लेखा अधिकारी महोदय से गुहार लगा रहे हैं कि इस अनियमितता को दूर करें तथा नियमानुसार फरवरी 2009 की नियुक्ति वाले शिक्षकों को विकल्प लेकर चयन वेतनमान और इंक्रीमेंट दोनों का लाभ जुलाई में देने का कष्ट करें।
परंतु शिक्षकों की यह जायज मांग वित्त एवं लेखा अधिकारी महोदय को रास नहीं आ रही और वह अक्सर शिक्षकों को अपने दफ्तर से अपमानित करके दोबारा उनके दफ्तर ना आने को कहते रहते हैं। निश्चित रूप से शायद उनका शिक्षकों को अपमानित करना जायज होता यदि शिक्षक किसी नाजायज मांग के लिए वित्त एवं लेखा अधिकारी लखनऊ से आग्रह करते।
उत्तर प्रदेश शासन द्वारा जारी विभिन्न शासनादेशों के संज्ञान तथा सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के आधार पर और विभिन्न जनपदों में चयन वेतनमान और इंक्रीमेंट दोनों ही दिए जाने का संज्ञान विभिन्न शिक्षक संगठनों ने कई बार वित्त एवं लेखा अधिकारी महोदय को कराया परन्तु अधिकारी महोदय को शायद गांव गांव जाकर गांव के बच्चों को पढ़ाने वाला प्राइमरी का मास्टर सड़क छाप दिखाई देता है, वह अक्सर महिला शिक्षकों को कम दिमाग रखने की दुहाई देते हैं ,वह कहते हैं की महिला शिक्षिकाएं शुक्र मनाए कि उन्हें वेतन दिया जा रहा है। वित्त एवं लेखा अधिकारी महोदय अक्सर महिला शिक्षकों को अपमानित करते हुए कहते सुने गए हैं कि पढ़ाओ और जितनी तनख्वाह मिल रही है उसी में खुश रहो ज्यादा दिमाग लगाने की जरूरत नहीं है मैं यहां बैठा हूं मैं जो करूंगा सही ही करूंगा।
वाकई बेसिक शिक्षा विभाग के अधिकारियों का वहां पर कार्यरत छोटे कर्मचारियों के लिए इस तरह की सोच रखना हास्यास्पद तथा अपमानजनक तो है ही साथ ही शिक्षकों के अपमान की बुनियाद तैयार करने के लिए एक महत्वपूर्ण कारक भी बनता है।
ऐसे ही अधिकारी समाज में जाकर शिक्षकों को सड़क छाप च निकम्मा, बेईमान और भ्रष्टाचारी सिद्ध करने में कोई भी कोर कसर नहीं छोड़ते। जबकि शायद प्रदेश में वित्त एवं लेखा की सबसे बड़ी अनियमितता लखनऊ जनपद में ही हो रही है।
यदि नियमानुसार ,इमानदारी से शिक्षकों के वेतन और भत्ते उन्हें समय पर दे दिया जाए तो क्यों प्राइमरी के शिक्षक बीएसए कार्यालय तथा वित्त एवं लेखा कार्यालय का चक्कर लगाएंगे।
क्या बेचारा प्राइमरी का मास्टर को विभिन्न अधिकारियों के दफ्तर में चक्कर लगाने से मुक्ति नहीं मिल सकतीउनकी सभी वित्तीय देनदारियों को सत सम्मान नहीं दिया जा सकता ?
प्राइमरी का शिक्षक जो दूरदराज के विद्यालयों में जाकर बच्चों के शिक्षा देता है तथा शिक्षा से संबंधित उन सभी गतिविधियों में अपने आप को लगाए रखना चाहता है जिससे समाज उसके द्वारा पढ़ाए गए बच्चों का हित हो सके।
क्या बेसिक के शिक्षकों को विभिन्न अधिकारियों द्वारा किए गए इस अपमान से मुक्ति नहीं मिल सकती?
क्यों शिक्षक के सभी आर्थिक देनदारियां समय से पूरी नहीं करी जाती , क्या अन्य विभागों की तरह इनका निस्तारण नियमानुसार समय से नहीं किया जा सकता।
क्यों अक्सर उसे वेतन बिल वेतन में हो रही अनियमितता के लिए खुद को अपमान की भट्टी में झोंकना पड़ता है।
यदि वास्तव में समाज , अधिकारी और सरकार बेसिक के शिक्षकों सहित विभिन्न वर्गों में कार्यरत शिक्षकों का सम्मान करना चाहते हैं तो उन्हें अनायास के अपमानजनक कार्यों में ना उलझा कर उनकी सभी आर्थिक देयताओ को समय से निष्कासित कराएं,भ्रष्टाचार के तंत्र से शिक्षकों को मुक्त रखें।
इस तरह जब प्रथम सीढ़ी के अधिकारी ही शिक्षकों को सम्मान से देखेंगे तथा उन्हें सड़क छाप ना समझ कर …..गुरुदेव गुरु ब्रह्मा के रूप में समझेंगे तो निश्चित रूप से समाज में जितनी भी नकारात्मक छवि बेसिक के शिक्षकों के लिए कायम की जा रही है वह सभी दूर हो सकेगी।
🙏शिक्षक दिवस की आप सबको बधाई💐💐💐
एक शिक्षक की कलम से…… न्याय और सम्मान की तलाश में….
*गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरुरेव परंब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः*
हिन्द वतन समाचार की रिपोर्ट…