नहीं निकला 1876 में क़ायम किया दुलदुल का जुलूस…

नहीं निकला 1876 में क़ायम किया दुलदुल का जुलूस…

कोरोना काल के चलते टूटी एक सौ 44 बरस पुरानी परम्परा…

प्रयागराज। पान दरीबा स्थित इमामबाड़ा सफदर अली बेग से 1876 में क़ायम किया गया दुलदुल का जुलूस कोरोना एवं सरकार की रोक के कारण नहीं निकाला गया। दुलदुल को गुलाब और चमेली के फूलों से सजा कर सोशल डिस्टेन्सिंग के साथ मात्र पाँच-पाँच लोगों को इमामबाड़े मे प्रवेश कराकर ज़ियारत कराई गई। अन्जुमन ग़ुन्चा ए क़ासिमया के प्रवक्ता सै०मो०अस्करी के मुताबिक़ दुलदुल जुलूस जो तक़रीबन 144 वर्षों से निकलता था जो अपने (कदिमे) पुराने रास्ते शाहगंज, शाहनूर अली गंज पत्थरगली, बरनतला, पाँचो क़बर, नखास कोहना, सेंवई मण्डी, नूर उल्लाह रोड, अकबरपुर, मंसूर पार्क, बख्शी बाज़ार, पुराना गुड़िया तालाब, दायरा शाह अजमल, बैदन टोला, हसन मंज़िल, रानी मण्डी से चडढ़ा रोड, कोतवाली, लोकनाथ गुड़मण्डी, बहादुरगंज, चक,मीरगंज, घंटा घर, सब्ज़ी मण्डी, फूटा महल हो कर पुनाः सुबह पांच बजे इमाम बाड़ा सफदर अली बेग पहुँच कर सम्पन्न होता था। लेकिन कोरोनावायरस जैसी महामारी कि वजह से इमामबाड़े पर ही लोग जा़यरीन आते रहे। जहाँ फूलों और सूती चादर व लाल हरे पीले दुपट्टे चढ़ा कर मन्नत व मुरादें मांगते रहे। दुलदुल आयोजन कमेटी के छठवीं पीढ़ी के मिर्ज़ा इक़बाल हुसैन, मिर्ज़ा मो०अली बेग, सुहेल, शमशाद, जहाँगीर, मुन्ना,सलीम, माहे आलम,छोटे बाबू,अफसर, नाज़िम,सलमान हैदर, रिज़वान, सादिक़, सैफ, अलमास, सिराज, अहमद हुसैन, मोहम्मद, शहनशाह, शहबाज़, मुरतुज़ा, मुजतबा आदि दुलदुल की ज़ियारत कराने और लोगों को सैनिटाईज़र से हाँथ साफ कर ही इमामबाड़े मे प्रवेश करने और पाँच-पाँच लोगों की संख्या मे ज़ियारत कराने को भेजने में सहयोग करते रहे।

पत्रकार इरफान खान की रिपोर्ट…