मुमताज उलेमा सैयद सैफ अब्बास नकवी, ने एक बयान में कहा कि फितरा, जिसे जकात फितरा भी कहा जाता है, इस्लाम में पूजा की अनिवार्य कामों में से एक…
लखनऊ 17 मई। मुमताज उलेमा सैयद सैफ अब्बास नकवी, ने एक बयान में कहा कि फितरा, जिसे जकात फितरा भी कहा जाता है, इस्लाम में पूजा की अनिवार्य कामों में से एक है जिसका मतलब है ईद फितर के दिन, एक निश्चित मात्रा और स्थिति में माल का भुगतान को कहा जाता है। गरीबों और जरूरतमंदों को फितरा देना अनिवार्य है, जिसकी मात्रा एक साअ (लगभग 3 किलो ग्रेराम) गेहूं, जौ, खजूर या किशमिश या उनका मूल्य, प्रत्येक बालिग और समझदार व्यक्ति, जो पूरे वर्ष अपने और अपने परिवार पर खर्च उठाता हो, वह अपने और अपने परिवार का फितरा भुगतान करने के लिए वाजिब (ज़रूरी) है। फितरा अदा करने का समय ईद-उल-फितर की नमाज से पहले या उसी दिन जुहर की नमाज से पहले का है।। हदीसों के अनुसार, फितरा रोज़ा के स्वीकार होने, उसी वर्ष मृत्यु से सुरक्षित रहने और जकात को पूरा करने का साधन है।
मौलाना सैय्यद सैफ अब्बास ने जारी बयान में फितरे का महत्व का वर्णन करते हुए कहा कि इस्लाम में फितर का महत्व और गुण बहुत जियादह है। रोजे के कबूल हो का सबब फितरा है। मुलयना सैफ ने आगे कहा कि फितरा एक व्यक्ति पर इस वर्ष लगभग 75 रुपये का होगा। फितर हर उस व्यक्ति पर अनिवार्य है जो पूरे वर्ष अपने परिवार का खर्च उठाता है। यहां तक कि जो बच्चा दूध पी रहा है, उसका भी फितरा देना चाहिए। फितरा निकाल कर गरीबों तक पहुंचाएं ताकि वे इस फिरते के पैसे से ईद के जरूरी सामान की खरीदारी करके अपने परिवार मे ईद मना सकें।
मौलाना सैयद सैफ अब्बास ने कहा कि इस साल कोरोना वायरस के कारण लॉकडाउन चल रहा है और गरीबों का काम भी रुक गया है। इसलिए, हम लागों से अपील करते हैं कि वे अपने फितरे का पैसे को गरीबों में जल्द से जल्द वितरित करें और उनकी मदद करें। इसके अलावा, मौलाना सैफ अब्बास ने कहा कि लॉकडाउन के कारण हम ईद को सादगी से मना रहे हैं इसलिए हमें गरीबों की मदद करने में ईद का कुछ हिस्सा खर्च करना चाहिए। मौलाना सैफ अब्बास ने कहा कि अगर हमें सरकार द्वारा छूट भी दी जाती है तो भी हमें सावधान और सतर्क रहना चाहिए और सोशल डिस्टेंसिंग का ख्याल रखते हुए मास्क पहने रहना चाहिए।
संवाददाता सुहेल मारूफ की रिपोर्ट…