तुलसी जसि भवतब्यता तैसी मिलइ सहाइ। आपुनु आवइ ताहि पहिं ताहि तहाँ लै जाइ…
फर्रुखाबाद/ उत्तर प्रदेश:- निरन्तर पैदल यात्रा से थके मजदूर जिस प्रकार से काल के गाल में समा गये, इसे भले ही यह कहा जाय कि होनी को कोई टाल नहीं सकता परन्तु इस हादसे नें पूरे भारत की आँखे खोल कर रख दी। सुपृबन्धन की डीगे हाँकने बाली प्रदेश की सरकारें मजदूरों को अन्य सुबिधाये देना तो दूर भर पेट भोजन भी नहीं दे सकीं। इस भयानक परिस्थिति के लिए वह राज्य सरकारें तो जिम्मेदार हैं ही, परन्तु उन छळव् को क्या हो गया जो गरीबों को स्वास्थ्य और सहायता के नाम पर सरकार के करोड़ों रुपये डकार जाते हैं।
भारत सरकार नेहरू युवा केंद्र जैसी न जाने कितनी संस्थाओं पर करोड़ों रुपये खर्च करती है परन्तु क्या इन सबका यह कर्तव्य नहीं है कि संकट की इस घड़ी में कुछ ऐसा करें जिससे जन कल्याण हो सके। सरकार उन स्वयं सेवी संस्थाओं के नाम की घोषणा करे जिन्होंने सरकारी खजाने से करोड़ों रुपया शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार व पर्यावरण के नाम पर लिया और इस समय उनके अस्तित्व का तिनका भी नहीं दिखाई दे रहा है।
औरंगाबाद से करमाड के मध्य हुई इस दुर्घटना में प्रभावित परिवारों को पर्याप्त सहायता दी जानी चाहिए, जिससे उन्हें कुछ तो राहत मिले।
सरकार को ऐसी दीर्घकालिक उद्योग नीति बनानी ही पड़ेगी जिससे रोजगार के लिए युवाओ को छटपटा कर मेहनत मजदूरी के लिए बहुत दूर न जाना पड़े। मजदूरों के साथ रेल पटरी पर हुए हादसे में स्पष्ट हो गया है कि-
कबीर कहा गरबियो, काल गहे कर केस।
ना जाने कहाँ मारिसी, कै घर कै परदेस।।
फिर भी भाग्य को कोसने से नहीं दुर्घटनाओ से शिक्षा लेकर मजदूरों के लिए कल्याणकारी योजनाए बनाने की परम आवश्यकता है।
– ब्रज किशोर मिश्र एडवोकेट
प्रदेश अध्यक्ष
लोकतंत्र सेनानी समिति,
उ॰ प्र॰
पत्रकार राहुल सिंह चौहान की रिपोर्ट…